बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

राजा है बसंत..


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राजा है बसंत, ऋतुराज नाम कहै देत, सारी ऋतुअन सों नज़राना धरावत है.
सरद में सारदा को करन प्रनाम, एक माह पहिले ही आय आगमन जनावत है ,
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जाड़े की ठिठुरन को ठाकुर ठिराय कहत ,चौरहे सजाये सारे होरिका जरावन को,
संयम को ढील दै जो भावै बकि लेहु, चाहे गारी में, चाहे कबीर अरु फागन सों,
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होरी को हुरंग, जड़-जीव फगुनाय रहे ,  बिसरी मरजाद नर-नारी सुभावन में
बाबा भी देउर समान बनि जात इहाँ,  बिरछ हू जात बौराये ई फागुन में.
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बुरा को माने, ई तो मदन खिलावत, बुहार देत मनोजाल मुक्त द्वार खोलि के
राजा को अदेस को विरोध करे कौन, अंतर को कबाड़ हू जरावत है होलिके.
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रागरंग देखि भूलि साखी औ रमैनी, अंड-बंड बकै लाग, ढंग देखो कबीर को,
मधु और माधव मचाय रहे धूम, जड़-जंगम में मनसिज सों पायो है जीत को?
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19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर .... आंचलिक शब्दों का रंग ही अलग होता है ...

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  2. बहुत ही सुन्दर परस्ती,आपका आभार है प्रतिभा जी.
    मेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
    "ब्लॉग कलश"

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  3. बुरा को माने, ई तो मदन खिलावत, बुहार देत मनोजाल मुक्त द्वार खोलि के
    राजा को अदेस को विरोध करे कौन, अंतर को कबाड़ हू जरावत है होलिके.

    बहुत सुंदर ....

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  4. बहुत सुंदर..वसंत का जादू सिर चढ़ कर बोलता है..

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  5. वाह ... आंचलिक भाषा का आनंद बसंत की खूबसूरती को कई गुना ज्यादा गर देती है ...

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  6. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने

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  7. अद्वितीय प्रतिभा है आपकी ....
    शुभकामनायें आपको !

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  8. बहुत खूबसूरत रचना !
    बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ !!!

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  9. बनन में बागान में बगरो बसंत है ....!!
    शुभकामनायें ....

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  10. सरस्वती पूजन का पर्व मंगलमय हो ...सादर !

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  11. माता जी प्रणाम बस आनंद आ गया

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  12. बसंत से फागुन तक सभी दृश्यों को समाहित करता सुंदर अतिसुंदर छंद, यूँ लगा जैसे सेनापति के युग में पहुँच गये. आभार

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  13. वसंत से फगुआ तक मनभावन... बहुत सुन्दर रचना, शुभकामनाएँ.

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  14. ब्लॉग पर ही बसंत आ गया...आप जो भी लिखती हो सदा बढ़िया होता है...बसंत की शुभकामनाएँ....

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