भाग 2 -
(परीक्षा.)
परीच्छा अहै बहुत भारी ,
इहाँ देखौ कौने हारी!
*
मात-पिता के माथ नवाइल षड्मुख तुरत पयाने,
चढ़ि मयूर- वाहन पल भर में हुइ गे अंतरधाने!
परिल सोच में गनपति ,मूसा देखि वियाकुल भइले,
एतन भारी बदन पहिल, कइसन परिकम्मा कइले!
कौन विधि साधौं पितु महतारी!
*
वेद-पुरान ग्रंथ सुमिरे ,कोऊ उपाय मिलि जाई,
आपुन बुद्धि भरोसो करि ई बाजी जीतौं जाई!
हँसि परनाम किहिल दोउन को विधिवत करि परिकम्मा
सम्मुख आइल चरन परस फिर बोले पाइ अनुज्ञा-
' तीनि लोकन ते तुम भारी !
*
'तिहुँ लोकन की परकम्मा सम माय-पिता की भइली,
सबहि लोक इन चरनन में देखिल ,अस बानी कहली!'
'धन-धन पूत , बड़ो सुख दीन्हों तुहै बियाहिल पहिले,
सब लोकन में बुद्धि प्रदाता ,विघ्न-विनाशक भइले!
अब तुम्हरे बियाह की बारी!'
*
भाग - 3.
(विवाह)
षड्मुख घूमि तीन लोकन में आइ चरन सिर नाये !
स्रम से थकित आइ बइठे, देखित गणेश मुस्काये !
'गये न तुम ,काहे से अपनो वाहन देख डेराने ?'
'पूरन काज कियो बुधिृबल ते गजमुख परम सयाने .
गणपति पहिल बियाहे कन्या ,पहिल पूजि सनमाने !'
शंकर कहिन ,'सबै साधन में श्रद्धा -बुधि है भारी !'
गुस्सइले कुमार,' बातन से मोहे पितु महतारी ,
गई सबहिन की मति मारी !'
*
'समरथ औ सुभ-मति से पूरन उचित पात्र अधिकारी,
इनका धारन करै बिस्व हित होवे मंगल कारी !
तनबल ,मनबल और बुद्धिबल की हम लीन परीच्छा ,
जा सों होय सकारथ रिधि -सिधि हमरी इहै सदिच्छा !'
शिकायत षड्मुख की भारी !
*
'पार्वती समुझावैं ,' तुम अति वीर महा-बलधारी ,
साधन और उपाव सहज करि देत काज सब भारी !
बल ते सरै न काज अगम, तब बुद्धि उपाय सुझावै ,
हर्र-फिटकरी बिना रंग पूरो-पूरो चढ़ि जावे !
पूत तुम समुझौ बात हमारी !'
*
'बुद्धि वीर बे ,वे बाहु वीर तुम दोनिउ मोर दुलारे ,
दुइ कन्यन सों दोऊ भैया ब्याह करहु मोरे बारे !'
खिन्न कुमार उठे बोले 'तुम जौन कहा हम कीन्हा ,
आज्ञा सिर धरि दौरि थक्यो, तौहूँ जस नेक न दीन्हा !
करो तुम ,जो भावै महतारी !
*
'स्रम पुरुषारथ भयो अकारथ हम बियाह ना करिबे ,
उचटि गयो मन, अब हम जाइ कहूँ अनतै ही रहिबे !'
गौरा गनपति करैं जतन ,पै अइस कुमार रिसाने .
बहुत करी विनती कर जोरे ,विधि निरास पछिताने ,
*
पसुपति करि परबोध थकाने केहू भाँति न मानै ,
दोनिहुँ कन्या एकहि बर सों ब्याहन की तब ठाने !
'लिखी जो कउन सकै , टारी !'
*
भयो बियाह वेद-विधि गिरिजा परिछन कीन्ह बधुन को ,
गौरा को परिवार निरखि अति अचरज देव-मुनिन को !
गनपति पाये रिद्धिृ-सिद्धि ,द्वौ पुत्र लाभ-सुभ जनमे ,
सुर-मुनि सबै सिहात कामना करत कृपा की मन में !
बिघनहर्ता गजमुख धारी ,
देउ सारी बाधा टारी !
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(परीक्षा.)
परीच्छा अहै बहुत भारी ,
इहाँ देखौ कौने हारी!
*
मात-पिता के माथ नवाइल षड्मुख तुरत पयाने,
चढ़ि मयूर- वाहन पल भर में हुइ गे अंतरधाने!
परिल सोच में गनपति ,मूसा देखि वियाकुल भइले,
एतन भारी बदन पहिल, कइसन परिकम्मा कइले!
कौन विधि साधौं पितु महतारी!
*
वेद-पुरान ग्रंथ सुमिरे ,कोऊ उपाय मिलि जाई,
आपुन बुद्धि भरोसो करि ई बाजी जीतौं जाई!
हँसि परनाम किहिल दोउन को विधिवत करि परिकम्मा
सम्मुख आइल चरन परस फिर बोले पाइ अनुज्ञा-
' तीनि लोकन ते तुम भारी !
*
'तिहुँ लोकन की परकम्मा सम माय-पिता की भइली,
सबहि लोक इन चरनन में देखिल ,अस बानी कहली!'
'धन-धन पूत , बड़ो सुख दीन्हों तुहै बियाहिल पहिले,
सब लोकन में बुद्धि प्रदाता ,विघ्न-विनाशक भइले!
अब तुम्हरे बियाह की बारी!'
*
भाग - 3.
(विवाह)
षड्मुख घूमि तीन लोकन में आइ चरन सिर नाये !
स्रम से थकित आइ बइठे, देखित गणेश मुस्काये !
'गये न तुम ,काहे से अपनो वाहन देख डेराने ?'
'पूरन काज कियो बुधिृबल ते गजमुख परम सयाने .
गणपति पहिल बियाहे कन्या ,पहिल पूजि सनमाने !'
शंकर कहिन ,'सबै साधन में श्रद्धा -बुधि है भारी !'
गुस्सइले कुमार,' बातन से मोहे पितु महतारी ,
गई सबहिन की मति मारी !'
*
'समरथ औ सुभ-मति से पूरन उचित पात्र अधिकारी,
इनका धारन करै बिस्व हित होवे मंगल कारी !
तनबल ,मनबल और बुद्धिबल की हम लीन परीच्छा ,
जा सों होय सकारथ रिधि -सिधि हमरी इहै सदिच्छा !'
शिकायत षड्मुख की भारी !
*
'पार्वती समुझावैं ,' तुम अति वीर महा-बलधारी ,
साधन और उपाव सहज करि देत काज सब भारी !
बल ते सरै न काज अगम, तब बुद्धि उपाय सुझावै ,
हर्र-फिटकरी बिना रंग पूरो-पूरो चढ़ि जावे !
पूत तुम समुझौ बात हमारी !'
*
'बुद्धि वीर बे ,वे बाहु वीर तुम दोनिउ मोर दुलारे ,
दुइ कन्यन सों दोऊ भैया ब्याह करहु मोरे बारे !'
खिन्न कुमार उठे बोले 'तुम जौन कहा हम कीन्हा ,
आज्ञा सिर धरि दौरि थक्यो, तौहूँ जस नेक न दीन्हा !
करो तुम ,जो भावै महतारी !
*
'स्रम पुरुषारथ भयो अकारथ हम बियाह ना करिबे ,
उचटि गयो मन, अब हम जाइ कहूँ अनतै ही रहिबे !'
गौरा गनपति करैं जतन ,पै अइस कुमार रिसाने .
बहुत करी विनती कर जोरे ,विधि निरास पछिताने ,
*
पसुपति करि परबोध थकाने केहू भाँति न मानै ,
दोनिहुँ कन्या एकहि बर सों ब्याहन की तब ठाने !
'लिखी जो कउन सकै , टारी !'
*
भयो बियाह वेद-विधि गिरिजा परिछन कीन्ह बधुन को ,
गौरा को परिवार निरखि अति अचरज देव-मुनिन को !
गनपति पाये रिद्धिृ-सिद्धि ,द्वौ पुत्र लाभ-सुभ जनमे ,
सुर-मुनि सबै सिहात कामना करत कृपा की मन में !
बिघनहर्ता गजमुख धारी ,
देउ सारी बाधा टारी !
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नचारी के दोनों भाग आज पढ़े ... सुबह सुबह ही मन आनंद से भर गया .. आभार
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंचिट्ठे आपके , चर्चा हमारी
बहुत ही अच्छे पोस्ट है आपके !मेरे ब्लॉग पर जरुर आए ! आपका दिन शुब हो !
जवाब देंहटाएंDownload Free Music + Lyrics - BollyWood Blaast
Shayari Dil Se
bahut sundar vyaskhya :)
जवाब देंहटाएंवाह प्रतिभा जी ,
जवाब देंहटाएंपरिक्रमा पर गजब लिखा है। आप अपना नाम चरितार्थ कर रही हैं । आपकी प्रतिभा के हम कायल हुए।
बहुत ही प्रवाहमय लेखन, पढ़कर अभिभूत हो गये।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया !
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान
दोनों प्रसंगों पर लिखी ये नचारियाँ बहुत अच्छी लगीं, बहुत मधुर
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
दोनों साथ साथ पढ़े...आनन्द आया.
जवाब देंहटाएंआनंद आया प्रतिभा जी...सारे भाग पढ़कर..और विशेष रूप से कार्तिकेय जब खीझतें हैं उसमे| कित्ता ज़बरदस्त प्रवाह रहता है इन रचनाओं में......भौंचक्का सा मन अबाध बहता जाता है शब्दों संग|
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