आज बोझिल जिन्दगी की साँस ,तू चुपचाप मत चल !
*
गन्ध व्याकुल कूल सरि के ,
वन वसन्ती फूल महके !
वह दहकती लाल आभा
ले गगन के गान गहके !
बावली मत कूक कोकिल ,वेदना के बोल विह्वल !
*
आज जादू डालती सी ,
चाँदनी की रूप-ज्योती
और मन को सालती सी कुछ विगत की बात बोती ,
आज चंचल हो उठे ये प्राण फिर उन्माद जागा ,
साँवली सी रात भीगी जा रही उर में समाती !
हो रहे साकार सोये गीत राग-पराग में जल !
*
नींद पलकों से उडाती ,
जागते सपने सजाती ,
आ गई ये कामनाओं से भरी सी
रात मंथर पग उठाती !
लुप्त हुये विराग सारे ,राग भर अ्नराग पागल !
*
आज के दिन तो व्यथा की तान आकुल हो न फूटे ,
आज तो कोई विषमता जिन्दगी का बल न लूटे !
आज हर इन्सान के उर में यही हो एक सा स्वर ,
देख धरती पर किसी की आँख आँसू में न डूबे !
एक दिन तो छँट चले नैराश्य का छाया तिमिर दल !
*
आज गिरते से उठा लो,
बाँह फैला कर बुला लो ,
दूरियाँ सारी मिटा कर
कण्ठ से अपने लगा लो !
राह में पिछडेहुओं को साथ फिर अपने लिये चल !
*
*
गन्ध व्याकुल कूल सरि के ,
वन वसन्ती फूल महके !
वह दहकती लाल आभा
ले गगन के गान गहके !
बावली मत कूक कोकिल ,वेदना के बोल विह्वल !
*
आज जादू डालती सी ,
चाँदनी की रूप-ज्योती
और मन को सालती सी कुछ विगत की बात बोती ,
आज चंचल हो उठे ये प्राण फिर उन्माद जागा ,
साँवली सी रात भीगी जा रही उर में समाती !
हो रहे साकार सोये गीत राग-पराग में जल !
*
नींद पलकों से उडाती ,
जागते सपने सजाती ,
आ गई ये कामनाओं से भरी सी
रात मंथर पग उठाती !
लुप्त हुये विराग सारे ,राग भर अ्नराग पागल !
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आज के दिन तो व्यथा की तान आकुल हो न फूटे ,
आज तो कोई विषमता जिन्दगी का बल न लूटे !
आज हर इन्सान के उर में यही हो एक सा स्वर ,
देख धरती पर किसी की आँख आँसू में न डूबे !
एक दिन तो छँट चले नैराश्य का छाया तिमिर दल !
*
आज गिरते से उठा लो,
बाँह फैला कर बुला लो ,
दूरियाँ सारी मिटा कर
कण्ठ से अपने लगा लो !
राह में पिछडेहुओं को साथ फिर अपने लिये चल !
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हम्म...आज ही जापान में आई प्रकृति की तबाही dekhi......कुछ अपना मन भी अच्छा नहीं था......ये कविता कई बार पढ़ चुकी थी..कहने योग्य शब्द नहीं मिले या अच्छे से समझ नहीं पायी...पता नहीं क्या कारण था........आज लिंक जुड़ा...अपने मन पर एक क्षण में विजय पा ली...दूसरे देश में आई तबाही देख कर....ये कविता आज फिर पढ़ी..तो लगा इस विजय की ही कहानी दूसरे तरीके से पढ़ रही हूँ.....
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा कविता में उतार और फिर चढ़ाव देख कर...अंत सकारात्मकता लिए हुए बहुत पसंद आया..मगर सकारात्मक होते हुए भी खटास सी थी इस पंक्ति में....
'राह में पिछडेहुओं को साथ फिर अपने लिये चल !'
क्या ऐसा होता होगा असल में?? रक्तसम्बन्धियों को लोग घर से निकाले दे रहे हैं...कहाँ कौन हाथ थामेगा किसी का......?जो सुनामियों की परीक्षा देते होंगे..वे ही जानते होंगे ...मेरा शायद अटकलें लगाना भी गलत होगा यहाँ.......:(
खैर..पूरी कविता ही प्रवाहमय है..अबाध बहती हुई...मगर दो पंक्तियाँ विशेष पसंद आयीं...शायद शाब्दिक सौन्दर्य के कारण...
''हो रहे साकार सोये गीत राग-पराग में जल''
'राग भर अ्नराग पागल'
बहुत मधुर शब्द हैं...
बधाई इस रचना के लिए....!!
(waise हो सकता है..कविता का कुछ और abhipraay हो..maine ise अपने arthon में yun dhaal liya....)
सुन्दर रचना ! ईश्वर करे , ये तिमिर जल्द ही छंटे .....
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
बहुत सुन्दर रचना..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना..बावली मत कूक कोकिल ,वेदना के बोल विह्वल !छू गए मन को
जवाब देंहटाएंउद्भ्रांत मन की आकुलता को शांत करती मीठी लोरी सी मधुर रचना ! बहुत सुन्दर भाव और बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! आपको बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआज के दिन तो व्यथा की तान आकुल हो न फूटे ,
जवाब देंहटाएंआज तो कोई विषमता जिन्दगी का बल न लूटे !
आज हर इन्सान के उर में यही हो एक सा स्वर ,
देख धरती पर किसी की आँख आँसू में न डूबे !
एक दिन तो छँट चले नैराश्य का छाया तिमिर दल !
पवित्र से भाव लिए .... व्याकुल मन को एक दिशा देती सुंदर रचना
गन्ध व्याकुल कूल सरि के ,
जवाब देंहटाएंवन वसन्ती फूल महके !
वह दहकती लाल आभा
ले गगन के गान गहके !
बावली मत कूक कोकिल ,वेदना के बोल विह्वल !
बहुत सुन्दर रचना, आशान्वित भाव-शब्दों को बहुत ही सुन्दर तरीके से पिरोया है आपने इस रचना में !