गूँजते हैं अवनि अंबर ,शंख-ध्वनि की गूँज भर भर ,
खुल रहीं पलकें प्रलय की ,छिड़ रहे विध्वंस के स्वर !
सृष्टि क्रम के बाद खुलता जा रहा है नेत्र हर का ,
और भंग समाधियों ने ध्यान लूटा विश्व भर का १
*
बाँध दे घुँघरू पगों में शक्ति, होगा रुद्र नर्तन ,
नैन मे अंगार ज्वाला ,आज फिर होगा प्रदर्शन !
छूट कर ताँडव करेगा ,पुनः हर क3 ध्यान निश्चल !
काँप जायेगा विधाता और तीनो लोक चंचल !
*
झनझनायेंगी तरंगें ,सिन्धु खुल कर साँस लेगा
एक लय के ताल-स्वर पर महालय का साज होगा !
उठी अंतर्ज्वाल ,लहरें ले रहा विक्षुब्ध सागर!!
सनसनाता है प्रभंजन ,नीर गाता राग हर हर !
*
लुढ़कते आते तिमिर घन ,बिजलियाँ ताली बजातीं ,
घुँघरुओँ मे स्वर मिला कर बूँद झऱ-झर छनछनाती !
मंच क्षिति, अपना सजा ले आज हर नर्तन करेंगे !
खुल पडेंगी वे जटायें ,सर्प तन से छुट गिरेंगे !
*
पुष्प-शऱ-संधान क्या चिन्गारियों की उस झड़ी में ,
मुक्त कुन्तल घिर अँधेरा कर चलेंगे जिस घड़ी में !
नाद-डमरू फैल जाये डम डमाडम् ,डमडमाडम् !
बिखर जायेगा चतुरिदिशि मे चिता का भस्म-लेपन !
*
कौंधता तिरशूल झोंके ले रही नरमुण्ड माला ,
रुद्र गति आक्रान्त सारी सृष्टि की यह रंगशाला !
दिग्-दिगंतों मे भरेगा प्रलय का भीषण गहन स्वर ,
गूँजते हैं अवनि अंबर ,शंख-ध्वनि की गूँज भर भर !
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खुल रहीं पलकें प्रलय की ,छिड़ रहे विध्वंस के स्वर !
सृष्टि क्रम के बाद खुलता जा रहा है नेत्र हर का ,
और भंग समाधियों ने ध्यान लूटा विश्व भर का १
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बाँध दे घुँघरू पगों में शक्ति, होगा रुद्र नर्तन ,
नैन मे अंगार ज्वाला ,आज फिर होगा प्रदर्शन !
छूट कर ताँडव करेगा ,पुनः हर क3 ध्यान निश्चल !
काँप जायेगा विधाता और तीनो लोक चंचल !
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झनझनायेंगी तरंगें ,सिन्धु खुल कर साँस लेगा
एक लय के ताल-स्वर पर महालय का साज होगा !
उठी अंतर्ज्वाल ,लहरें ले रहा विक्षुब्ध सागर!!
सनसनाता है प्रभंजन ,नीर गाता राग हर हर !
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लुढ़कते आते तिमिर घन ,बिजलियाँ ताली बजातीं ,
घुँघरुओँ मे स्वर मिला कर बूँद झऱ-झर छनछनाती !
मंच क्षिति, अपना सजा ले आज हर नर्तन करेंगे !
खुल पडेंगी वे जटायें ,सर्प तन से छुट गिरेंगे !
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पुष्प-शऱ-संधान क्या चिन्गारियों की उस झड़ी में ,
मुक्त कुन्तल घिर अँधेरा कर चलेंगे जिस घड़ी में !
नाद-डमरू फैल जाये डम डमाडम् ,डमडमाडम् !
बिखर जायेगा चतुरिदिशि मे चिता का भस्म-लेपन !
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कौंधता तिरशूल झोंके ले रही नरमुण्ड माला ,
रुद्र गति आक्रान्त सारी सृष्टि की यह रंगशाला !
दिग्-दिगंतों मे भरेगा प्रलय का भीषण गहन स्वर ,
गूँजते हैं अवनि अंबर ,शंख-ध्वनि की गूँज भर भर !
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sachmuch rudra ka nartan ......bahut khoob
जवाब देंहटाएंhttp/jyotishkishore.blogspot.com
!लुढ़कते आते तिमिर घन ,बिजलियाँ ताली बजातीं ,
जवाब देंहटाएंघुँघरुओँ मे स्वर मिला कर बूँद झऱ-झर छनछनाती !
मंच क्षिति, अपना सजा ले आज हर नर्तन करेंगे !
खुल पडेंगी वे जटायें ,सर्प तन से छुट गिरेंगे
क्या तो शानदार वर्णन है..!बहुत अच्छा प्रवाह...!!
बहुत बहुत अच्छी लगी ये कविता.....पहले भी पढ़ी थी..magar fir kho गयी थी कुछ कहने के पहले ही.....:(
बहुत ही अच्छा प्रवाह है काव्य का..मैं तो बड़ा जोर दे देकर जोश में पढ़ रही थी.....एक एक शब्द को पीस पीस कर ही उच्चारित किया.......
बहुत अच्छा चित्र खींचा इस कविता के शब्दों ने......नाचते हुए रौद्र रूप में शंकर जी आँखों के सामने आ गए......
कुल milakar...बहुत शिवमय कर दिया आज आपकी कविताओं ने..:) बता नहीं सकती कितना अच्छा मन लेकर विदा हो रही हूँ......आभार बहुत सारा.......
दिन शुभ रहे आपका....:)
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 02-02 -20 12 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज...गम भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब .
रूद्र-नर्तन ने सम्मोहित कर दिया..आभार..
जवाब देंहटाएंवाह वाह....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रवाहमयी प्रस्तुति..
सादर.
रुद्रनर्तन का बहुत ही मनमोहक एवं प्रभावशाली शब्दचित्र खींचा है ! अद्वितीय रचना ! बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंवाह ..आपकी लेखनी हमेशा मोहित करती है.
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंbehad sundar shabd rachna..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत ही अच्छी रचना..
जवाब देंहटाएंअचूक प्रवाह.. इतना मज़ा आने लग पढ़ने में, कि मैं काफ़ी ज़ोर ज़ोर से बोल कर गाने लगा पंकतियों को..
कभी समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आइयेगा.. आशा करता हूं आपको पसंद आएगा.. :)
palchhin-aditya.blogspot.in