*
लहर स्वर में गूँजती रहती सदा ही ,
किस अमर संगीत की प्रतिध्वनि अमर हो !
बाजती रहती अनश्वर रागिनी
कलकल स्वरों मे चिर- मधुर हो !
सजल झंकृत उर्मि तारों मे अलौकिक
राग बजते जा रहे हैं ,
रश्मि कीमृदु उँगलियाँ छू
झिलमलाते नीर मे नव चित्र बनते जा रहे हैं !
*
यह पुनीता ,छू न पाईं आज तक ,
जिसको जगत की कालिमायें ,
दिव्य कलकल के स्वरों में भर न पाईं
विश्व की दुर्वासनायें !
*
झनझना उठते हृदय के तार ,वाणी मुग्ध मौना ,
बाँध लूँ इन स्वरों में किस भाँति तेरा स्वर सलोना !
बज रहा संगीत अक्षय तृप्ति इससे मिल न पाये ,
कर्ण से टकरा हृदय को छू न पा, ये फिर न जाये!
*
अंतरिक्ष बिखेर देता तारकों के फूल झिलमिल ,
नाच उठतीं लोल लहरें किलक उठता नीर निर्मल !
गगन से नक्षत्र झरझर नीर में आ छिप गये हैं
बीन लेने को जिन्हें कर रश्मियों के बढ रहे हैं !
*
इन गहन गहराइयों की माप लेती रश्मि-माला ,
देख हँसता चाँद ,खिलती चाँदनी ,चाँदी भरा यह विश्व सारा !
बाँध लेती चंचला से बाहुओँ में रश्मि तारे उर्मि बाला !
है यही नन्दन विपिन की रानियों की नृत्यशाला !
*
नाचती हैं अप्सरायें ताल सब गंधर्व देते ,
नूपुरों की मन्द रुनझुन ,पायलों के स्वर बिछे से !
स्वर्ग है यह ,स्वर्ण लहरों मे छलकती देव-वारुणि ,
खनखनातीं सोमरस की प्यलियाँ ,हीकरमयी .नवज्योति धारिणि !
*
युगल तट के वृक्ष करते भेंट सुरभित सुमनमाला ,
अंक भरने दौड पडती चपल चंचल उर्मि- बाला !
तरल लहरों में प्रतिक्षण जागता नूतन उजाला ,
कौन सी वह शक्ति करती सदा संचालन तुम्हारा !
*
कौन वह अज्ञात इतना रूप जो अविरल बहाता ,
कौन जीवन सा मधुर साँसें सदा तेरी जगाता !
शान्त धरणी में बिछी रहती सुज्योत्स्ना शुभ्र गहरी ,
देखते हैं वृक्ष विस्मित से ,क्षितिज बन मौन प्रहरी !
*
यह अपरिमित रूप-श्री ,बुझती नहीं मेरी पिपासा ,
हृदय लोभी ,देख यह सुषमा ,रहा जाता ठगा सा !
झलमलाती ऊर्मियाँ या स्वयं विधि की चित्र रेखा ,
किस नयन ने आज तक भी रूप वह अपरूप देखा !
*
एक ही आभास जिसका स्वप्न सीमाहीन बुनता ,
एक ही आह्वान जिसका प्राण-मन मे ज्योति भरता !
नीर पावन निष्कलुष वन देवियों का दिव्य दर्पण ,
हहर कर वनराजि करती नवल विकसित पुष्प अर्पण !
*
प्रकृति की श्री झाँकती है ,बिंब स्थिर रह न पाता ,
रूप जो क्षण-क्षण बदलता ,उर्मि कण-कण मे समाता !
तरल स्वर में स्वर मिला कर बोलती आवाज कोई ,
पट हटा फेनिल, रुपहले झाँक जाती आँख कोई !
*
मुक्त तोरों भरे नभ की झिलमिलाती दीपमाला ,
नित्य ही मनती दिवाली ,नित्य ही जगता उजाला !
यामिनी जब उतरती है बाँध कर नक्षत्र नूपुर
झुर्मुटों की ओट से जब झाँकता चुप-चुप विभाकर !
*
तभी क्षिप्रा की लहर गाती मिलन संगीत अक्षय,
दूर तरु से कूक उठती कोकिला की तान मधुमय !
पश्चिमी नभ पर सजीले रंग आ देते बिदाई
लौट जातीं स्वर्ण- किरणें चूम वृक्षों की उँचाई !
*
सान्ध्य नभ के मंच पर आ अप्सरायें नृत्य करतीं,
ले सुरंगी वस्त्र शोभित , नित्य नूतन रूप धरतीं ,
तब लहर के पालने में सप्तरंगी मेघ सोते ,
गगन के प्रतिबिंब शतशत बार जल के तल सँजोते
*
जा रही है हर लहर आनन्द की वीणा बजा कर ,
तिमिर पथ के पार कोई मधुर सा संदेस पाकर !
हीर कण ले लिख रही है ,कौन यह रमणीय बाला ,
लहर की गति है न चंचल ,यह नियति की वर्णमाला !
*
युगयुगों से यहाँ बिखरे दीखते हैं स्वप्न स्वर्णिम ,
मुखर हो उठते यहीं शत शत भ्रमर के मंजु गुंजन !
वार कुंकुम खोलती प्राची क्षितिज प्रत्यूष बेला ,
जब गगन के पार से आ झाँकता दिनकर अकेला !
*
जब अरुण होकर दिशायें स्वर्ण पानी से महातीं ,
अंशुमाली की अँगुलियाँ जब धरा के कण जगातीं ,
मोतियों के हार ले तब विहँसती लहरें सजीली ,
खिलखिलाती ,झिलमिलाती खेलती रहतीं हठीली !
*
खो गईं सदियाँ इन्हीं मे ,सो गईं अनगिन निशायें
झाँकता रहता गगन भी डोलती रहती दिशायें !
रुक न पाया नीर चंचल थम न पाईँ ये लहरियाँ
पिघलती प्रतिपल रहेंगी ये दमकती शुभ्र मणियाँ !
*
प्राण मेरे बाँध लो चंचल लहर चल बंधनों से
पुनः नव जीवन मिले इन लहरते स्पन्दनों से!
मोह है मिटती लहर ले ,स्नेह क्षिप्रा नीर से है ,
राग से अनुराग भी ,अपनत्व क्षिप्रा तीर से है !
*
चाँदनी के अंक में कल्लोल करता मुक्त शैशव ,
दे रहा कब से निमंत्रण मोतियों से सिक्त वैभव !
यही जादू भरी लहरें डाल देती मोहिनी सी ,
अमिट कर फिर छोड जातीं रूप-श्री की चाँदनी सी !
*
अरे क्षिप्रा की लहर ,ओ स्वर्ण स्वप्नों की कहानी ,
काल- चक्रों में सुरक्षित ,विगत की भोली निशानी 1
कल्पना में बँध न पाये ,भाव में चित्रित न होगा ,
चित्र खीँचूँ मै भला क्या ,शब्द मे चित्रित न होगा !
*
अंक मे ले लो मुझे ,इन आँसुओं मे झिलमिलाओ ,
लहर में श्वासें मिला लो ,कल्पना के पास आओ !
बाँध पायेंगी न लहरें मुक्त ,युग की शृंखलायें
स्नेह आलिंगन तुम्हार पा अपरिमित शान्ति पायें !
*
पिघलती करुणामयी जलराशि कण-कण मे समाये ,
इन तरंगों का मधुर आलोक अणुअणु को जगाये !
लहर स्वर में गूँजती रहती सदा ही ,
किस अमर संगीत की प्रतिध्वनि अमर हो !
बाजती रहती अनश्वर रागिनी
कलकल स्वरों मे चिर- मधुर हो !
सजल झंकृत उर्मि तारों मे अलौकिक
राग बजते जा रहे हैं ,
रश्मि कीमृदु उँगलियाँ छू
झिलमलाते नीर मे नव चित्र बनते जा रहे हैं !
*
यह पुनीता ,छू न पाईं आज तक ,
जिसको जगत की कालिमायें ,
दिव्य कलकल के स्वरों में भर न पाईं
विश्व की दुर्वासनायें !
*
झनझना उठते हृदय के तार ,वाणी मुग्ध मौना ,
बाँध लूँ इन स्वरों में किस भाँति तेरा स्वर सलोना !
बज रहा संगीत अक्षय तृप्ति इससे मिल न पाये ,
कर्ण से टकरा हृदय को छू न पा, ये फिर न जाये!
*
अंतरिक्ष बिखेर देता तारकों के फूल झिलमिल ,
नाच उठतीं लोल लहरें किलक उठता नीर निर्मल !
गगन से नक्षत्र झरझर नीर में आ छिप गये हैं
बीन लेने को जिन्हें कर रश्मियों के बढ रहे हैं !
*
इन गहन गहराइयों की माप लेती रश्मि-माला ,
देख हँसता चाँद ,खिलती चाँदनी ,चाँदी भरा यह विश्व सारा !
बाँध लेती चंचला से बाहुओँ में रश्मि तारे उर्मि बाला !
है यही नन्दन विपिन की रानियों की नृत्यशाला !
*
नाचती हैं अप्सरायें ताल सब गंधर्व देते ,
नूपुरों की मन्द रुनझुन ,पायलों के स्वर बिछे से !
स्वर्ग है यह ,स्वर्ण लहरों मे छलकती देव-वारुणि ,
खनखनातीं सोमरस की प्यलियाँ ,हीकरमयी .नवज्योति धारिणि !
*
युगल तट के वृक्ष करते भेंट सुरभित सुमनमाला ,
अंक भरने दौड पडती चपल चंचल उर्मि- बाला !
तरल लहरों में प्रतिक्षण जागता नूतन उजाला ,
कौन सी वह शक्ति करती सदा संचालन तुम्हारा !
*
कौन वह अज्ञात इतना रूप जो अविरल बहाता ,
कौन जीवन सा मधुर साँसें सदा तेरी जगाता !
शान्त धरणी में बिछी रहती सुज्योत्स्ना शुभ्र गहरी ,
देखते हैं वृक्ष विस्मित से ,क्षितिज बन मौन प्रहरी !
*
यह अपरिमित रूप-श्री ,बुझती नहीं मेरी पिपासा ,
हृदय लोभी ,देख यह सुषमा ,रहा जाता ठगा सा !
झलमलाती ऊर्मियाँ या स्वयं विधि की चित्र रेखा ,
किस नयन ने आज तक भी रूप वह अपरूप देखा !
*
एक ही आभास जिसका स्वप्न सीमाहीन बुनता ,
एक ही आह्वान जिसका प्राण-मन मे ज्योति भरता !
नीर पावन निष्कलुष वन देवियों का दिव्य दर्पण ,
हहर कर वनराजि करती नवल विकसित पुष्प अर्पण !
*
प्रकृति की श्री झाँकती है ,बिंब स्थिर रह न पाता ,
रूप जो क्षण-क्षण बदलता ,उर्मि कण-कण मे समाता !
तरल स्वर में स्वर मिला कर बोलती आवाज कोई ,
पट हटा फेनिल, रुपहले झाँक जाती आँख कोई !
*
मुक्त तोरों भरे नभ की झिलमिलाती दीपमाला ,
नित्य ही मनती दिवाली ,नित्य ही जगता उजाला !
यामिनी जब उतरती है बाँध कर नक्षत्र नूपुर
झुर्मुटों की ओट से जब झाँकता चुप-चुप विभाकर !
*
तभी क्षिप्रा की लहर गाती मिलन संगीत अक्षय,
दूर तरु से कूक उठती कोकिला की तान मधुमय !
पश्चिमी नभ पर सजीले रंग आ देते बिदाई
लौट जातीं स्वर्ण- किरणें चूम वृक्षों की उँचाई !
*
सान्ध्य नभ के मंच पर आ अप्सरायें नृत्य करतीं,
ले सुरंगी वस्त्र शोभित , नित्य नूतन रूप धरतीं ,
तब लहर के पालने में सप्तरंगी मेघ सोते ,
गगन के प्रतिबिंब शतशत बार जल के तल सँजोते
*
जा रही है हर लहर आनन्द की वीणा बजा कर ,
तिमिर पथ के पार कोई मधुर सा संदेस पाकर !
हीर कण ले लिख रही है ,कौन यह रमणीय बाला ,
लहर की गति है न चंचल ,यह नियति की वर्णमाला !
*
युगयुगों से यहाँ बिखरे दीखते हैं स्वप्न स्वर्णिम ,
मुखर हो उठते यहीं शत शत भ्रमर के मंजु गुंजन !
वार कुंकुम खोलती प्राची क्षितिज प्रत्यूष बेला ,
जब गगन के पार से आ झाँकता दिनकर अकेला !
*
जब अरुण होकर दिशायें स्वर्ण पानी से महातीं ,
अंशुमाली की अँगुलियाँ जब धरा के कण जगातीं ,
मोतियों के हार ले तब विहँसती लहरें सजीली ,
खिलखिलाती ,झिलमिलाती खेलती रहतीं हठीली !
*
खो गईं सदियाँ इन्हीं मे ,सो गईं अनगिन निशायें
झाँकता रहता गगन भी डोलती रहती दिशायें !
रुक न पाया नीर चंचल थम न पाईँ ये लहरियाँ
पिघलती प्रतिपल रहेंगी ये दमकती शुभ्र मणियाँ !
*
प्राण मेरे बाँध लो चंचल लहर चल बंधनों से
पुनः नव जीवन मिले इन लहरते स्पन्दनों से!
मोह है मिटती लहर ले ,स्नेह क्षिप्रा नीर से है ,
राग से अनुराग भी ,अपनत्व क्षिप्रा तीर से है !
*
चाँदनी के अंक में कल्लोल करता मुक्त शैशव ,
दे रहा कब से निमंत्रण मोतियों से सिक्त वैभव !
यही जादू भरी लहरें डाल देती मोहिनी सी ,
अमिट कर फिर छोड जातीं रूप-श्री की चाँदनी सी !
*
अरे क्षिप्रा की लहर ,ओ स्वर्ण स्वप्नों की कहानी ,
काल- चक्रों में सुरक्षित ,विगत की भोली निशानी 1
कल्पना में बँध न पाये ,भाव में चित्रित न होगा ,
चित्र खीँचूँ मै भला क्या ,शब्द मे चित्रित न होगा !
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अंक मे ले लो मुझे ,इन आँसुओं मे झिलमिलाओ ,
लहर में श्वासें मिला लो ,कल्पना के पास आओ !
बाँध पायेंगी न लहरें मुक्त ,युग की शृंखलायें
स्नेह आलिंगन तुम्हार पा अपरिमित शान्ति पायें !
*
पिघलती करुणामयी जलराशि कण-कण मे समाये ,
इन तरंगों का मधुर आलोक अणुअणु को जगाये !
रश्मि कीमृदु उँगलियाँ छू
जवाब देंहटाएंझिलमलाते नीर मे नव चित्र बनते जा रहे हैं !
bahut kuch padhaa aapke blog par ati sundar shabdoN ki kya khhob mala buni hai aapne yakinan kabil -e-daad ...subhkamnayen aapko is khoobsurat rachna ke liye or dhanyvaad aapne meri hausla afzaai kii