रंग-बिरंगी अपनी गठरी खोल के ,
साँझधुबिनियाँ नभ के तीर उदास सी ,
लटका अपने पाँव क्षितिज के घाट पे
थक कर बैठ गई ले एक उसाँस सी !
फेन उठ रहा साबुन का आकाश तक ,
नील घोल दे रहीं दिशाएं नीर मे ,
डुबो-डुबो पानी मे साँझ खँगारती
लहरें लहरातीं पँचरंगे चीर मे !
धूमिल हुआ नील जल रंग बदल गया
उजले कपड़ों की फैला दी पाँत सी !
रंग-बिरंगी अपनी गठरी खोल के ,
साँझ-धुबिनियाँ ,नभ के तीर उदास सी !
माथे का पल्ला फिसला-सा जा रहा ,
खुले बाल आ पड़े साँवले गाल पर
किरणों की माला झलकाती कंठ मे
कुछ बूँदें आ छाईं उसके भाल पर !
काँधे पर वे तिमिर केश उलझे पड़े ,
पानी मे गहरी सी अपनी छाया लम्बी डालती !
लटका अपने पाँव ,क्षितिज के घाट पे
थक कर बैठ गई ले एक उसाँस सी !
रंग-बिरंगी अपनी गठरी खोल के ,
साँझ-धुबिनियाँ ,नभ के तीर उदास सी !
साँझधुबिनियाँ नभ के तीर उदास सी ,
लटका अपने पाँव क्षितिज के घाट पे
थक कर बैठ गई ले एक उसाँस सी !
फेन उठ रहा साबुन का आकाश तक ,
नील घोल दे रहीं दिशाएं नीर मे ,
डुबो-डुबो पानी मे साँझ खँगारती
लहरें लहरातीं पँचरंगे चीर मे !
धूमिल हुआ नील जल रंग बदल गया
उजले कपड़ों की फैला दी पाँत सी !
रंग-बिरंगी अपनी गठरी खोल के ,
साँझ-धुबिनियाँ ,नभ के तीर उदास सी !
माथे का पल्ला फिसला-सा जा रहा ,
खुले बाल आ पड़े साँवले गाल पर
किरणों की माला झलकाती कंठ मे
कुछ बूँदें आ छाईं उसके भाल पर !
काँधे पर वे तिमिर केश उलझे पड़े ,
पानी मे गहरी सी अपनी छाया लम्बी डालती !
लटका अपने पाँव ,क्षितिज के घाट पे
थक कर बैठ गई ले एक उसाँस सी !
रंग-बिरंगी अपनी गठरी खोल के ,
साँझ-धुबिनियाँ ,नभ के तीर उदास सी !
माथे का पल्ला फिसला-सा जा रहा ,
जवाब देंहटाएंखुले बाल आ पड़े साँवले गाल पर
किरणों की माला झलकाती कंठ मे
कुछ बूँदें आ छाईं उसके भाल पर !
बहुत अलग हटके पाया आपको यहाँ इस कविता में...उपमाओं का सुंदर प्रयोग....हालाँकि उर्दू नज़्मों में इस तरह के बिंब बहुत देखें हैं..परन्तु हिंदी की बात और है..:)
जाने किस मूड में आपने ये रचना लिखी होगी,मैं सोच ही नहीं पायी..?? :)
वैसे आज ही आपकी कविता पढने के तुरंत बाद दिमाग ने कहा..कि सांझ क्यूँ उदास होगी....?? शाम तो कितनी मुस्काने लेकर आती है....कितने बच्चे स्कूल से घर वापस आतें हैं..कितनी पत्नियों का इंतज़ार अपने पतियों के मुख को देख ख़त्म होता होगा...सबसे ज़्यादा तो गोधूली बेला में घर वापस लौटने वालीं गायें....इतनी व्याकुलता से शीघ्रता से पग बाधा बाधा कर घर में प्रवेश करती होंगी और अपने अपने बच्चों को देख प्रसन्नता से मातृत्व से दमक उठती होंगी....:)
शाम उदास नहीं......आस है...प्रतीक्षा को ख़त्म करने वाला उल्लास है.....:)