कितने दिन निकल गये ,चार बरस बाकी हैं !
तीन पहर बाद रहा चौथेपन का उतार ,
उठती पुकार एक, जाना है दूर पार !
किसको संबोध करूँ ,कैसे विवोध करूँ ,
आखिरी प्रघट्टक की कथा अभी बाकी है !
*
किसको बिसारूँ और किसके लिये करूँ सोच ,
सब कुछ है ठीक यहाँ ,करना किसका विरोध !
जीवन की खण्ड-कथा ,साक्षी हो तुम्ही मित्र ,
चलती ये दुनिया हमेशा बदल जाती है !
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बोझिल से पहरों में डूबता अकेलापन ,
रीतती उमर के घाट,खडे-खडे देखते हम !
हाथी तो निकल गया,पूँछ खिंचती ही नहीं
थोडी सी बोरुखी भी गहरे कसक जाती है !
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