शनिवार, 25 मार्च 2023

एक दिन...

 


एक दिन 

एक दिन अति शान्त मन ,
मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !
*
और, विचलित न हो जब थिर हो सकूँ`
मौसमों से दोस्ती के बीज फिर से बो सकूँ
अभी थोड़ा भ्रम बचा ही रह गया होगा ,
उबर कर मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !
एक दिन अति सहज,आरोपण हटाकर .चली आऊंगी तुम्हारे पास
*
अभी राहें कहाँ चल कर पास आने को
रीति-नीति सभी निभाने को पड़ी हैं ,
निर्णयों में देर ही होती चली जाती,
और भी कठिनाइयाँ आकर अड़ी हैं ,
अभी कहाँ निवृत्ति मेरी ,शेष हैं कुछ ऋण चुकाने को
एक दिन जब चुप न रह कर बहूँ निर्झऱ सी बिना आयास
*
मत बुलाना ,फिर कहीं
कोई विवशता टेर लेगी
टेरना मत अभी
द्विविधा लौट कर फिर घेर लेगी
रस्ते से बुला ले कोई रुकावट कहीं ,फिर जाऊँ वहीं चुपचाप
दीप की कँपती हुई लौ जल सके निर्वात ,
तभी आऊँगी तुम्हारे पास
*
एक दिन सबसे उबर लूँ ,सिर चढ़े जो दोष
उसी दिन ऐसा लगेगा अब न कोई टोक ,
बीत जाये यह विषम घड़ियाँ बड़ी हैं
तपन औ', विश्रान्ति शीतल हो कि जब अनयास .
*
कुछ समझना रह गया होगा .
कहीं कच्चापन बचा होगा .
पार हो जायें सभी व्यवधान ,
पूर्ण अपने स्वयं का संधान ,
एक दिन आँसू जमे जब,
पिघल-गल बह जायँ अपने आप !
एक दिन अति स्निग्ध औ'निष्पाप
चली आऊंगी तुम्हारे पास .
*

देह के , मन के अभी तो शेष हैं घेरे
यहाँ के व्यवहार के
बाकी अभी फेरे
कामना के साथ कितने जाल
घेरते बन व्याल .
नृत्य सी लालित्यमय बन जाय हर पदचाप,
तभी आऊंगी तुम्हारे पास
*
(पूर्व लिखित)

2 टिप्‍पणियां:

  1. देह और मन के घेरे, कामनाओं के जाल, समझ की कमी, अंतर की दुविधा, आत्मग्लानि, दुनियादारी, मन की अशांति यह तो अंतिम श्वास तक साथ चलने वाले हैं, इसलिए जहाँ जाना हो अभी जाना होगा, कहीं ज़्यादा देर ही न हो जाए !!

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