मंगलवार, 17 जनवरी 2023

एक बरस बीत गया,

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एक बरस बीत गया,

जीवन-घट जल अधिकांश बीत, रीत गया 

पहुँचे सभी को प्रणाम और जुहार विनत ,     

बोले-अनवोले मीत,पांथ-पथिक संग-नित,            ,

देखे-अनदेखे संग चलते मुखर-मौन भले 

उन सब को मेरा हृदय से प्रेम-भाव मिले,

कह न सकूँ जो भी पर मन तो भरा आता है 

सबसे जुड़ा रास्ते का अनकहा-सा नाता है .

उसके ही बल पर कभी मै बोलती रही 

अपने को, कभी और को भी तोलती रही 

 *

कोई जो कहता  कान खोल  सुन लेती हूँ 

 बहुतेरी बार कुछ कहे बिन गुन लेती हूँ 

हम सब सुदूर कहीं यों ही  बह जायेंगे /

पतझर के पत्तों से, कभी न साथ आएँगे! 

कहा-सुना भला बुरा यहीं छूट जाएगा 

समय के साथ मीत, सभी बीत जाएगा!

हाथ जोड़ मेरी इस  विनती का मान धरें

मुझसे दुख पहुँचा हो,, कृपया, क्षमादान करें !


6 टिप्‍पणियां:

  1. सारे विश्व के नाम या उस अनाम के नाम एक प्रेम भरे विनय सा लग रहा है आपका यह गीत !

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  2. बहुत सुंदर कहा आदरणीय दीदी।
    रीत जाना ही समय की नियति है।

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  3. वर्ष बीतने का सिलसिला तो हर साल आता है ... निरंतरता का प्रतीक है बदलता वर्ष ... उमे है जो घाट रही है दिन नहीं ... आपने शब्द हमेशा किसी आँचल की तरह सुकून दे जाते हैं ... नमस्कार ...

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  4. कहा-सुना भला बुरा यहीं छूट जाएगा

    समय के साथ मीत, सभी बीत जाएगा!

    एकदम सटीक....
    लाजवाब।

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  5. अंतर्मन के बहुत ही उत्कृष्ट भाव। जब पूरा जग ही अपना लगे। सुंदर रचना ।

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