रविवार, 1 सितंबर 2024

बीज - मंत्र .

*

शब्द बीज हैं!

बिखर जाते हैं,

जिस माटी में ,  

उगा देते हैं कुछ न कुछ.

संवेदित, ऊष्मोर्जित

रस पगा बीज कुलबुलाता

 फूट पड़ता , 

रचता नई सृष्टि के अंकन !

*

शब्द मंत्र हैं,
उच्चरित-गुञ्जित 
अंतराग्नि में आहुतियाँ देते
 चलता रहे जीवन-यज्ञ!
फिर-फिर हरियाये धरा.
जीवन-गंध बाँटे पवन
विश्व-मंगल और ,
सृष्टि का  नव-नवोन्मीलन!
*

10 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. ज्यादा जगह छूट गई है अनुच्छेद के बाद | ठीक कर लें |

      हटाएं
  2. अति सुंदर सृजन।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ३ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. शब्दों से उपजे आनंद का छंद ! सुखद अनुभूति, प्रतिभा जी। नमस्ते।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर सृजन।

    आपके शब्द मोहक हैं
    मोह जाते हैं मन को।

    जवाब देंहटाएं