बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

बुज़ुर्ग पेड़.

कुछ रिश्ता है ज़रूर मेरा इन बुज़ुर्ग पेड़ों से !

देख कर ही हरिया जाती हैं आँखें,
उमग उठता है मन ,वैसे ही जैसे
मायके की देहरी देख कंठ तक उमड़ आता हो कुछ !
बाँहें फैलाये ये पुराने पेड़ पत्तियाँ हिलाते हैं हवा में ,
इँगित करते हैं अँगुलियों से -
आओ न ,कहाँ जा रही हो इस धूप में
थोड़ी देर कर लो विश्राम हमारी छाया में !

मेरी गति-विधियों से परिचित हैं ये ,
मुझमें जो उठती हैं उन भावनाओं का समझते हैं ये !
नासापुट ग्रहण करते हैं हवाओं में घुली
गंध अपनत्व की !
एक नेह-लास बढ़ कर छा लेता है मुझे !
बहुत पुराना रिश्ता है मेरा !
इन बुज़ुर्ग पेड़ों से !

2 टिप्‍पणियां:

  1. आहा! पेड़..............:D
    मगर मुझे नए पौधों में ज़्यादा अपनत्व मिलता है...उनको सहलाना..पुचकारना और डांटना पसंद है...:D...बड़े पेड़ों से generation gap महसूस होता है...मगर एक शीशम का पेड़ था घर में...उसके तने से लग के बहुत रोती थी मैं......संबल देता था वो..:)
    और पीड़ा की बात करें तो....एक बुजुर्ग पेड़ जब काट दिया जाता है........उस पीड़ा का कोई सानी नहीं....उस खालीपन की कोई तुलना नहीं...दुर्भाग्य से बहुत झेला है ये दर्द हमारे परिवार ने....:(

    खैर.....एक शेर याद आ रहा है शज़र पर मगर बहुत बिखरा बिखरा...यहाँ लिखने लायक नहीं..कभी याद आया तो आकर यहाँ लिखूंगी...:)

    पेड़ों से अपना तो गहरा नाता है...सो उन पर लिखी हर चीज़ भाती है मुझे.....वृक्षों की तासीर का एक प्रतिशत भी अपने व्यवहार में ढाल सकूं...तो नाम चरितार्थ हो जाये मेरा...इसी कोशिश में जीवन चल रहा है मेरा..:)
    बधाई पोस्ट के लिए....आयु से नहीं मन से बुजुर्ग एक तरु की तरफ से......:)

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  2. उमग उठता है मन ,वैसे ही जैसे
    मायके की देहरी देख कंठ तक उमड़ आता हो कुछ !

    इस पर कहना भूल गयी थी..........ये एकदम perfect उपमा है...या जो भी है........ऐसा मुझे भी अनुभव होता है......बहुत बहुत प्यारा एहसास है......मगर ज़रा ज़रा पीड़ा में गुंथा हुआ..:)
    एक बड़े से पेड़ की छाया में खड़ा आपका धुंधला सा साया दिख रहा था कविता पढ़ते हुए..खासकर जब वो ''इंगित'' वाली बात पढ़ी तब...........:)
    ये वाली रचना आपके और निकट ले आई मुझे तो....:)

    चलिए शुभ रात्रि !

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