*
मेरे मन में है जो तुम्हारे लिये ,
आत्मज मेरे ,
शब्दों में समा जाये संभव नहीं .
बहुत प्रखर ,जीवन्त वे भाव,
पर भाषा की क्षमता बहुत सीमित है !
*
और प्रशंसा तुम्हारी ,
स्वयं करूँ मैं ?
कभी नहीं कर सकी जो
नहीं होगी मुझ से .
औरों के मुख से निकली
तुम्हारी सराहना ,
कानों से ग्रहण करना ,
अधिक सुखदायी है .
*
तृप्त होता है मन ,
आशीष भर कहता है -
यहाँ तक आते-आते पाया जितना ,
आगे बढ़ते बहुत अर्जित करो ;
जीवन में जो श्रेष्ठ है ,
सुन्दर है ,
प्रिय है ,
वह सब पाने में
सदा समर्थ रहो !
मेरे मन में है जो तुम्हारे लिये ,
आत्मज मेरे ,
शब्दों में समा जाये संभव नहीं .
बहुत प्रखर ,जीवन्त वे भाव,
पर भाषा की क्षमता बहुत सीमित है !
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और प्रशंसा तुम्हारी ,
स्वयं करूँ मैं ?
कभी नहीं कर सकी जो
नहीं होगी मुझ से .
औरों के मुख से निकली
तुम्हारी सराहना ,
कानों से ग्रहण करना ,
अधिक सुखदायी है .
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तृप्त होता है मन ,
आशीष भर कहता है -
यहाँ तक आते-आते पाया जितना ,
आगे बढ़ते बहुत अर्जित करो ;
जीवन में जो श्रेष्ठ है ,
सुन्दर है ,
प्रिय है ,
वह सब पाने में
सदा समर्थ रहो !
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आगे बढ़ते बहुत अर्जित करों ;
जवाब देंहटाएंजीवन में जो श्रेष्ठ है ,
सुन्दर है ,
प्रिय है ,
वह सब पाने में
सदा समर्थ रहो !
मन में अमृत घोल गयी ...अद्भुत रचना ...
सादर नमन आपके भावों को ....!
कुछ आशीर्वाद मैंने भी ग्रहण कर लिया ...!!माँ तो माँ ही है न ...?...:))
जवाब देंहटाएंमन गद गद हो गया पढ़ कर ...मेरी माँ भी ऐसी ही बातें करती थीं ...!!
बहुत आभार ....!!
जब अपने बच्चों कि प्रशंसा दूसरे करें तब ही ज्यादा सुख मिलता है ... आपके आशिर्वचन अवश्य ही फलीभूत होंगे ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .... मन तृप्त हुआ
कहा अनकहा, सब दिल को छूने वाला!
जवाब देंहटाएंऔरों के मुख से निकली
जवाब देंहटाएंतुम्हारी सराहना ,
कानों से ग्रहण करना ,
अधिक सुखदायी है .
माँ और संतान का अद्भुत रिश्ता है
अपने बच्चों की प्रशंसा दूसरों के मुंह से सुनने से बड़ा और क्या सुख !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और प्रभावी पंक्तियाँ..सुन्दर और सुखद भाव..
जवाब देंहटाएंआशीष और दुआएं मन से मन ही मन निकलती रहें, यही काफ़ी है। बाक़ी तो दिए हुए संस्कार उसे जीवन पथ पर आगे बढ़ाते ही रहेंगे।
जवाब देंहटाएंसुन्दरता से परिपूर्ण सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं्बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ..सुखद भाव लिए सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकितने सुखद भाव .
जवाब देंहटाएंतृप्त होता है मन ,
जवाब देंहटाएंआशीष भर कहता है -
यहाँ तक आते-आते पाया जितना ,
आगे बढ़ते बहुत अर्जित करों ;
जीवन में जो श्रेष्ठ है ,
सुन्दर है ,
प्रिय है ,
वह सब पाने में
सदा समर्थ रहो !
माता जी प्रणाम और आपका आशीर्वचन बहुत ही सुखद
अद्भुत..... मन के भावों का उत्तम शाब्दिक चित्रण
जवाब देंहटाएंvery inspiring creation..
जवाब देंहटाएंbahut sunder aasheervachan hain. dua hai double speed se falibhoot hon.
जवाब देंहटाएंadbhut bhaavon se susajjit rachna.
आत्मज के लिए जो भाव हैं वो भाषा के सीमित क्षेत्र से परे हैं !
जवाब देंहटाएंरचना टिप्पणी हेतु निःशब्द करती हुयी!
आभार जो आपने मेरे चिट्ठे का अवलोकन करके प्रोत्साहित किया !
वो जो अनकहा है
जवाब देंहटाएंगर सुन पाओ
जब मिल जाए सब
समझना,खुश हूं मैं
आत्मज मेरे!
प्रेरणादायी संदेश..!!! बहुत सुनदर है एक-एक शब्द..!!
जवाब देंहटाएंनेह और आशीष भरे हाथ यों ही सदा सिर पे रहें... शब्द से भी और स्पर्श से भी... सादर शार
जवाब देंहटाएंआस्थावान शीश झुका आया इन शब्दों पर ... सादर!
जवाब देंहटाएंकविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंउत्तम भाव!!
जवाब देंहटाएंशब्दों का अद्भुत तिल्लिस्म . बहुत भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव !
जवाब देंहटाएंतृप्त होता है मन ,
जवाब देंहटाएंआशीष भर कहता है -
यहाँ तक आते-आते पाया जितना ,
आगे बढ़ते बहुत अर्जित करों ;.........करो ............यहाँ आशीष है करो ........करों तो टैक्सिज़ के लिए आयेगा कर का बहुवचन करों .....
भाव जगत का अपनों के प्रति रागात्मक मन का विशेष प्रक्षेपण है इस रचना में बहुत सुन्दर प्रस्तुति .
आप सही कह रहे हैं वीरेन्द्र जी 'रो' पर अनुस्वार मेरी टाइपिंग में असावधानी से लग गया है ,अभी ठीक किये ले रही हूँ .
जवाब देंहटाएंध्यान दिलाने के लिये धन्यवाद !
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआत्मज के प्रति
आभार प्रकट करने में मन बुद्धि
सब मूक हो जाते हैं.
SUNDAR KAVITA !
जवाब देंहटाएंह्रदय तक सहजता से पहुँचती हुई सुन्दर रचना..
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