सोमवार, 24 जून 2013

शापोद्धार

*
पाप का पहले करो प्रतिकार 
क्रम बदल दो एक ही उपचार 
मन बदल दो यही शापोद्धार !
*
तन मिला जो तुम्हें परम  समर्थ ,
मन मिला औ'  बुद्धि, सोच-विचार ..  
जन्म सार्थक हुआ  क्या मनु-पुत्र ,
प्राप्त कर इतना  रुचिर संसार?
*
तोड़ डाली पर्वतों की रीढ़,
घोल कर  विष ,बाँध दी  जलधार .
खोखली कर दी  धरा की कोख 
और उस पर  घोर अत्याचार.
वायु और प्रकाश का आकाश 
विकल धूमिल  हो रहा उद्भ्रान्त,
 घाटियों में भरा हाहाकार !
*
ऋत नियम ले कर चली थी  सृष्टि 
प्रकृति ही तो सुकृति,शिव की शक्ति,
वशीभूता हो यही उद्देश्य.
विश्व-द्रोही तू बना भर दंभ 
 नाचता भस्मासुरी धर  दाँव ,
 ताल दे उन्मत्त और अबाध .
*
पंचभूत उठे, लिये फुँकार ,
तोड़ जागे  भूतनाथ समाधि .
*
तू हुआ निरुपाय निर् आधार,
सिर झुका रोता पुकार-पुकार !
गिड़गिड़ाता टेरता असहाय,
दोष का लेकिन कहाँ निरवार ? 
 *
काल चेताता रहा हर  बार -
क्रम बदल दो एक ही उपचार 
फलें जिससे शान्ति-सुख के मंत्र 
स्वस्तिमय हो जगत-जीवन-तंत्र
'पाप का पहले करो प्रतिकार' !
मन बदल दो यही शापोद्धार !
*

33 टिप्‍पणियां:

  1. .बिल्कुल सही बात कही है आपने . .बेहतरीन अभिव्यक्ति .आभार मोदी व् मीडिया -उत्तराखंड त्रासदी से भी बड़ी आपदा
    आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

    जवाब देंहटाएं
  2. जूझना हो मन्त्र मन का,
    या प्रकृति की ही विकृति हो,
    या पुरातन छद्म जग का,
    या नवल प्रिय आत्मकृति हो,

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही ओजस्वी रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  4. gahan vedana ukerati ...bahut sundar kriti ....!!
    pranam sweekaren .

    जवाब देंहटाएं
  5. मानव ने किया प्रकृति से खिलवाड़
    प्रकृति के हृदय से भी उठा एक नाद
    खंड खंड हो गए शैल विशाल
    पाप विनाशिनी बन गयी मनुज का काल

    श्राप से मुक्त होने का सही द्वार दिखती सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  6. मानव ने किया प्रकृति से खिलवाड़
    प्रकृति के हृदय से भी उठा एक नाद
    खंड खंड हो गए शैल विशाल
    पापनाशिनी बन गयी मनुज का काल

    श्राप से मुक्त होने का सही मार्ग दिखती सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
    सादर...!
    शशि पुरवार

    जवाब देंहटाएं
  8. सही राह दिखाती सच्ची सशक्त रचना प्रतिभा जी !

    जवाब देंहटाएं
  9. सच है यही प्रकृति की पुकार है

    जवाब देंहटाएं
  10. भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन, ऐसा लगता है कि कुदरत वाकई बहुत ज्यादा खफा है इंसानों से !

    जवाब देंहटाएं
  12. सक्स्च कहा है आपने ... इन्सान ने प्राकृति के साथ बड़ा खिलवाड़ किया है ... समय भी चेतावनी देता रहता है ... पर इंसानी भूक कुछ नहीं सुनना चाहती ...

    जवाब देंहटाएं
  13. काश हम कुछ सबक लें..बहुत सार्थक और प्रभावी प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत बहुत बढ़िया........सही कहा मन बदलने कि ज़रूरत है ।

    जवाब देंहटाएं
  15. यह ही सत्य हैं ....
    सजीव चित्रण पीड़ा-दायक स्थिति की
    सार्थक सामयिक अभिव्यक्ति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  16. माता जी सादर अभिवादन स्वीकारें आपने निवारण बतला दिया प्रणाम हर हर महादेव

    जवाब देंहटाएं
  17. मन बदल दो यही शाप उद्धार बहुत सशक्त रचना .आज के हालात का तप्सरा काव्यमय .

    जवाब देंहटाएं
  18. सामयिक समस्या और उसका समाधान, दोनों विचारणीय हैं।
    अच्छी रचना।

    जवाब देंहटाएं
  19. सार्थक भाव लिए सामायिक रचना है ...सुन्दर रचना के लिए
    आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  20. सही कहा, ये हमारी ही करनी है ।

    जवाब देंहटाएं
  21. सार्थक प्रस्तुति .प्रतिभा जी न केवल ''भारतीय नारी ''ब्लॉग पर कई ब्लोग्स पर यही दिक्कत पेश आ रही कि ब्लॉग खोलने पर टिप्पणी फार्म खुल रहा है .इसका एक ही उपाय है -ब्लॉग का यूआरएल एड्रेस बार में डाले तब ब्लॉग ही खुलेगा .जैसे -http://bhartiynari.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत सुंदर और सार्थक रचना सामयिक भी ।

    जवाब देंहटाएं
  23. Bahut shashakt aur gahri kavita! Aap jaise nootan - puraatan prasangon ko kavita mein piro deti hain wah dekhte hee banta hai!
    Fir aa ke Hindi mein likhungi!

    जवाब देंहटाएं
  24. सहज और सरल ढंग से सुन्दर प्रस्तुति , आपको हाहिृक बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  25. शकुन्तला बहादुर24 जुलाई 2013 को 3:28 pm बजे

    "ऋत नियम लेकर चली थी सृष्टि,प्रकृति ही तो सुकृति ,शिव की शक्ति"

    सत्यं,शिवं सुन्दरम् का समन्वित रूप मन को छू लेता है। ये सशक्त
    एवं प्रभावी अभिव्यक्ति विचारों में डूब जाने को विवश कर देती है।
    आपकी लेखनी को नमन !!

    जवाब देंहटाएं
  26. सुंदर, उच्चकोटि की अभिव्यक्ति!
    भाषा, अभिव्यक्ति, शैली.... हर अलंकार से परिपूर्ण हैं आपकी रचनाएँ...! इन्हें समझने के लिए पढ़ने वाले को भी उतना ग्यान होना आवश्यक है... :))

    ~सादर

    जवाब देंहटाएं