गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

किं-बहुना .



तुमने जो भी दिया ,निबाहा क्षमता भर ,धर सिर-आँखों पर ,
ले इतना विश्वास , कि मेरी लज्जा-मान तुम्हीं रक्खोगे!
-
मेरी त्रुटियाँ ,दुर्बलताएँ,मेरे मति-भ्रम ,मेरे विचलन,
मेरे यत्न देखना केवल बाकी सभी तुम्हारे अर्पण ,
दिशा-ज्ञान  की कौन कहे अनजाना हो गंतव्य जहाँ पर
बोध-शोध सब परे धर दिये ,आगे ध्यान तुम्हीं रक्खोगे !
*
लीन स्वयं में करना लेना मन , सारी चित्त-वृत्तियाँ धारे
जब स्व-भाव भी डूब, विलय हो  इस अगाध सागर में खारे .
निस्पृह हो धर चलूँ यहीं पर ,राग-विराग, जिन्हे ओढ़ा था,
सारी डूब  समाई तुम में, अब संधान तुम्हीं रक्खोगे !
 *
क्षमा-दान मत दो कि,साध्य हो प्रायश्चित तप-तप कर धुलना,
निर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना.
तुमसे कौन शिकायत,शंका या  आशंका चिन्ता मुझको .
मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान  तुम्हीं रक्खोगे !
*
बस इतना विश्वास कि  मेरी लज्जा-मान तुम्हीं रक्खोगे!
*

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव हैं.

    दिशा-ज्ञान की कौन कहे अनजाना हो गंतव्य जहाँ पर
    बोध-शोध सब परे धर दिये ,आगे ध्यान तुम्हीं रक्खोगे !

    जीवन में कभी किसी पर "अंधविश्वास" करना ही होता है. गणना करके भी अक्सर ऐसे उत्तर आते हैं जो अपने आप में प्रश्न होते हैं.

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  2. क्षमा-दान मत दो कि,साध्य हो प्रायश्चित तप-तप कर धुलना,
    निर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना.

    मन भीग गया ....लगा जैसे हमारी ही प्रार्थना है हमारे ही भाव

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  3. क्षमा-दान मत दो कि,साध्य हो प्रायश्चित तप-तप कर धुलना,
    निर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना.
    तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
    मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे !
    *
    बस इतना विश्वास कि मेरी लज्जा-मान तुम्हीं रक्खोगे!

    माता जी प्रणाम और शुभ प्रभात संग आपकी निष्ठां , समर्पण और त्याग संग विश्वास की पराकाष्ठा को नमन ...

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  4. भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ।
    मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है ।
    ख्वाब क्या अपनाओगे ?

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  5. लज्जा-मान को भी समर्पित कर देने के बाद ही मान रख लिया जाता है ...

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  6. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। नव वर्ष 2013 की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। धन्यवाद सहित।

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  7. क्षमा-दान मत दो कि,साध्य हो प्रायश्चित तप-तप कर धुलना,
    निर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना.
    तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
    मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे ...

    बहुत ही सुन्दर प्रवाहमय काव्य ... भावों से ओतप्रोत निर्मल धारा सी ...

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  8. तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
    मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे !

    ....समर्पित भक्ति की बहुत सुन्दर भावमयी रचना..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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  9. शकुन्तला बहादुर31 दिसंबर 2012 को 6:49 pm बजे

    अडिग आस्था , सुदृढ़ विश्वास एवं पूर्णरूपेण समर्पण भाव की सरस प्रवाहमयी अभिव्यक्ति। मन को छू गई । साधुवाद !!

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  10. क्या लिख दिये हो आप, मन में ये भाव समा गए है उतर आये है

    यहाँ पर आपका इंतजार रहेगा शहरे-हवस

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  11. पूर्ण समर्पण का भाव लिये सुंदर रचना ।

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  12. अशेष समर्पण भाव की सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  13. बहुत ही सुंदर भावनात्मक प्रस्तुति !
    ~सादर!!!

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  14. अति सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति...
    :-)

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  15. आपकी हर कविता हमारे लिए आनंद और सीख का विषय होती है। प्रेरणास्रोत होती है।
    अशेष सराहना के साथ ....

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  16. शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का .विचार और भाव की बेहतरीन अभिव्यक्ति हुई है रचना में .बधाई .सुन्दर शब्द चयन .

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  17. अथाह विश्वास और आस्था लिए सुंदर रचना

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  18. एक उत्कृष्ट विचारों की उत्कृष्ट कविता!
    कई पंक्तियाँ याद आ गईं पढ़ते ही, जैसे, "गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा, जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा"

    तुमने जो भी दिया ,निबाहा क्षमता भर ,धर सिर-आँखों पर ,
    ले इतना विश्वास , कि मेरी लज्जा-मान तुम्हीं रक्खोगे! -- उत्कृष्ट
    ,
    दिशा-ज्ञान की कौन कहे अनजाना हो गंतव्य जहाँ पर
    बोध-शोध सब परे धर दिये ,आगे ध्यान तुम्हीं रक्खोगे !--- बहुत सुन्दर!
    *
    निस्पृह हो धर चलूँ यहीं पर ,राग-विराग, जिन्हे ओढ़ा था,
    सारी डूब समाई तुम में, अब संधान तुम्हीं रक्खोगे ! --- अतिसुन्दर!
    *
    निर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना. -- ये सार
    तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
    मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे ! -- बहुत ही सुन्दर
    सादर शार्दुला

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