*
विरति के पल
और इस अतुकान्त की लय
अंतिमाओं तक निभाऊँगी !
*
पंक्तियों पर पंक्ति ,
हर दिन नया लेखा .
पंक्तियों की असम रेखाएँ
क्या पता कितनी खिंची आगे चली जाएँ !
रहेंगी अतुकान्त, औ' बिल्कुल अनिश्चित ,
अल्प-अर्ध-विराम कैसे ले सकूँ निज के .
अवश हो उस असमतर गति में समाऊँगी
*
एक कविता चल रही अनुदिन ,
क्या पता ये पंक्तियाँ कितना चलेंगी .
क्योंकि ये तुक हीन ,
बिन मापा-तुला क्रम ,
विभ्रमित व्यतिक्रम बना-सा
पंक्तियाँ इतनी विषम,बिखरी हुई
किस विधि सजाऊँगी !
*
रास्ता ये आखिरी क्षण तक चलेगा .
क्या पता कितना घटा कितना बढ़ेगा .
तंत्र में अपने स्वयं के हो नियोजित !
रुक गई पल भी ,
अटक रह जायेगी वह पाँत ,
होकर बेतुकी फिर
कथा को आगे कहाँ,
किस विधि बढ़ाऊँगी !
*
ओ कथानक के रचयिता, धन्य तू भी
भार सिर धर कह रहा ,भागो निरंतर ,
दो समानान्तर लकीरें डाल कर पगडंडियों पर
सँभलने- चलने बहकते पाँव धर धर !
चलो, बस चलते रहो अनथक निरंतर
टूटती सी बिखरती ,जुड़ती ,अटकती
इन पगों कें अंकनों से लिखी जाती
रहित अनुक्रम पंक्तियाँ किसको सुनाऊँगी !
*
एक पूर्ण-विराम तक अविराम चलना
क्योंकि अविरत सतत,गति की यात्री मैं,
छंद से उन्मुक्ति संभव कहाँ ?
लय- प्रतिबंध धारे ,
सिक्त अंजलि भर
इसी खारे उदधि के फेनिलों को
सौंप जाऊँगी !
*
आत्म के अनुवाद के ,
इस अनवरत संवाद के
बहते हुये पल ,
क्या पता
किन औघटों पर जा चढाऊँगी !
किन्तु इस अतुकान्त की लय
अंतिमाओं तक निभाऊँगी !
-
(एक पुरानी कविता )
*
एक कहानी तेरी पायी,
जवाब देंहटाएंएक कहानी मैं भी दूँगा।
sundar aur prabhaav shaalee
जवाब देंहटाएंएक लाजवाब और बेहतरीन पोस्ट.
जवाब देंहटाएंआभार !!
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
बेहद प्रभावशाली लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
आत्म के अनुवाद के ,
जवाब देंहटाएंइस अनवरत संवाद के
बहते हुये पल ,
क्या पता
किन औघटों पर जा चढाऊँगी !
किन्तु इस अतुकान्त की लय
अंतिमाओं तक निभाऊँगी ..
निभाना तो है अंतिम समय तक
प्यार से निभाने में श्रम नहीं होगा !
आत्म के अनुवाद की----------किन्तु इस अतुकान्त की लय,अंतिमाओं तक निभाऊँगी--शुभ-संकल्प,
जवाब देंहटाएंरास्ता ये आखिरी क्षण तक चलेगा ----- सुदृढ़ आत्मविश्वास , ओ कथा के रचयिता----भागो निरन्तरमें "चरैवेति" का स्वर ध्वनित हो रहा है। इस अनुपम अभिव्यक्ति के सुललित शब्द-संयोजन तथा मुखरित दार्शनिक भावों ने मुझे भाव-विभोर कर दिया है ।
ओ कथानक के रचयिता, धन्य तू भी
जवाब देंहटाएंभार सिर धर कह रहा ,भागो निरंतर ,
दो समानान्तर लकीरें डाल कर पगडंडियों पर
सँभलने- चलने बहकते पाँव धर धर !
चलो, बस चलते रहो अनथक निरंतर
टूटती सी बिखरती ,जुड़ती ,अटकती
इन पगों कें अंकनों से लिखी जाती
रहित अनुक्रम पंक्तियाँ किसको सुनाऊँगी !
अद्भुत रचना ..... अतुकांत की लय पर अनवरत चलने का क्रम .... आत्मसात कर रही हूँ इस रचना को ।
वाह...वाह...
जवाब देंहटाएंवाह...वाह...
जवाब देंहटाएंयही पंक्तियाँ जीवन को काव्य बनाती hain . अत्युत्तम काव्य...
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सीखने को मिलता है आपकी रचनाओं से..
जवाब देंहटाएंरास्ता ये आखिरी क्षण तक चलेगा .
जवाब देंहटाएंक्या पता कितना घटा कितना बढ़ेगा .
तंत्र में अपने स्वयं के हो नियोजित !
रुक गई पल भी ,
अटक रह जायेगी वह पाँत ,
होकर बेतुकी फिर
कथा को आगे कहाँ,
किस विधि बढ़ाऊँगी
MATA JI PRANAM JIWAN KO KAHATI PANKATIYAAN
अद्भुत रचना
जवाब देंहटाएंअतुकांत में भी गज़ब की तुक है !
जवाब देंहटाएंअनुपम !
शार्दुला जी की टिप्पणी -
जवाब देंहटाएं"ओ कथानक के रचयिता, धन्य तू भी
भार सिर धर कह रहा ,भागो निरंतर ,
दो समानान्तर लकीरें डाल कर पगडंडियों पर
सँभलने- चलने बहकते पाँव धर धर !
चलो, बस चलते रहो अनथक निरंतर
टूटती सी बिखरती, जुड़ती ,अटकती
इन पगों कें अंकनों से लिखी जाती
रहित अनुक्रम पंक्तियाँ किसको सुनाऊँगी "
--- वाह! जीवन है कि कविता है प्रतिभा जी... कविता सा जीवन है और जीवन सी कविता है :)
"आत्म के अनुवाद के, इस अनवरत संवाद के
बहते हुये पल
क्या पता
किन औघटों पर जा चढाऊँगी!
किन्तु इस अतुकान्त की लय
अंतिमाओं तक निभाऊँगी "
--- वाह, मन खुश हो गया कविता पढ़ कर!!
badi भली कविता कही प्रतिभाजी.. शब्दों और वर्णों के बीच दृष्टि उल्टी-सीधी घुमाती हुई जीवन की तुक खोजने का प्रयत्न करती रही।कोई आकार न मिला।हालाँकि मन निराकार की ओर बारम्बार बढ़ता रहा।
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावन लगी ये प्रस्तुति प्रतिभाजी।जाने कितनी बार पढ़ गयी हूँ।समापन तक पलकें मुंद जातीं हैं।मन जाने किन मार्गों पर निकल पड़ता है।उन्ही शांत एकाकी क्षणों में अपने हृदय के स्पंदन सुने तो लगा.. कैसे इनका व्यवस्थित क्रम अपने स्वरों की चुटकी में हर अतुकान्त की लय थामे हुए है।
आदि से अंत तक निरन्तर मानस को स्पर्श करती रही कविता। बहुत ही शीतल रचना है प्रतिभा जी ..बहुत सुखदायी भी! :''-) (विश्वास का एक अदृश्य स्पर्श पाता है मन कि कैसी भी कितनी भी बेतरतीब हो कविता ..जिसकी प्रेरणा से लिखी जा रही है ...उसे अवश्य भाएगी।)
नमन इस कविता की प्रकृति को !!
(शार्दुला जी के शब्दों से फिल्म 'आनंद' में गुलज़ार द्वारा रचित ''मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको'' अनायास ही याद आ गई। :) )
जीवन का काव्य निभाना पढता है ... अन्तिमता तक ...
जवाब देंहटाएंअपने आप को सारथि बना के चलना पढता है ... यही जीवन का मर्म भी तो है ...
एक कविता चल रही अनुदिन ,
जवाब देंहटाएंक्या पता ये पंक्तियाँ कितना चलेंगी .
क्योंकि ये तुक हीन ,
बिन मापा-तुला क्रम ,
विभ्रमित व्यतिक्रम बना-सा
पंक्तियाँ इतनी विषम,बिखरी हुई
किस विधि सजाऊँगी !
लाजवाब कविता
सुंदर अभिव्यक्ति..
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