*
सपना कैसे कहूँ ,
सच लगा मुझे.
पास खड़ी खड़ी,
त्रस्त-सी मैं ,
एकदम चौक गई .
*
श्वेत केश-जाल,
रुक्ष ,रेखांकित मुखमंडल ,
स्तब्धकारी दृष्टि!
उस विचित्र भंगिमा से अस्त-व्यस्त ,
पर आतंकित नहीं .
जान गई कौन तुम,
और तुम्हारा संकेत !
मिली होगी कितनी बार
किसे पता ,
हो कर निकल गई होगी
अनजानी, अनपहचानी
पर ऐसे सामने
कहाँ देखा कभी!
*
स्वागत करूँगी ,
सहज स्नेहमयी, महा-वृद्धे ,
निश्चित समय
सौम्य भावेन
शुभागमन हो तुम्हारा,
समापन कालोचित
शान्ति पाठ पढ़ते
*
समारोह का विसर्जन,
कर्पूर-आरती सा लीन मन
जिस रमणीयता में रमा रहा,
वही गमक समाये ,
धूमावर्तों का आवरण हटा
तुम्हारा हाथ थाम
पल में पार उतर जाए !
*
सपना कैसे कहूँ ,
सच लगा मुझे.
पास खड़ी खड़ी,
कितने ध्यान से
देख रहीं थीं तुम !त्रस्त-सी मैं ,
एकदम चौक गई .
*
श्वेत केश-जाल,
रुक्ष ,रेखांकित मुखमंडल ,
स्तब्धकारी दृष्टि!
उस विचित्र भंगिमा से अस्त-व्यस्त ,
पर आतंकित नहीं .
जान गई कौन तुम,
और तुम्हारा संकेत !
*
इन चक्रिल क्रमों में ,मिली होगी कितनी बार
किसे पता ,
हो कर निकल गई होगी
अनजानी, अनपहचानी
पर ऐसे सामने
कहाँ देखा कभी!
*
स्वागत करूँगी ,
सहज स्नेहमयी, महा-वृद्धे ,
निश्चित समय
सौम्य भावेन
शुभागमन हो तुम्हारा,
समापन कालोचित
शान्ति पाठ पढ़ते
*
समारोह का विसर्जन,
कर्पूर-आरती सा लीन मन
जिस रमणीयता में रमा रहा,
वही गमक समाये ,
धूमावर्तों का आवरण हटा
तुम्हारा हाथ थाम
पल में पार उतर जाए !
*
सपना कैसे कहूँ ,
जवाब देंहटाएंसच लगा मुझे
एकदम चौक गई थी , त्रस्त-सी .
कितने ध्यान से
देख रहीं थीं तुम मुझे !
पास खड़ी खड़ी.
बेहतरीन अभिव्यक्ति. कई बार सपना बिलकुल सजीव लगता है.
स्वागत करूँगी ,
जवाब देंहटाएंसहज स्नेहमयी, महा-वृद्धे ,
निश्चित समय
शुभागमन हो तुम्हारा,
जो उस पार जाने के लिए स्वागत कर सके आगत का उसे सच ही जीने की कला आ गयी ... बहुत सुंदर और भाव पूर्ण रचना ....
अनुभूति अनुभूत सच की प्रगाढ़ता है इस रचना में जो बांधती है मन को .
जवाब देंहटाएंकष्टहारिणी,समस्त प्राणियों में समदृष्टि वाली चिर शान्तिदायिनी देवी का
जवाब देंहटाएंहम सुशान्त मन से वरण कर सकें- इससे अधिक वांछनीय और क्या हो सकता है ? अतीव भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
"भूल जाता आदमी पर असलियत यह ज़िन्दगी की,
मृत्यु से संघर्ष में जीवन सदा ही हार जाता ।।"
सही समय पे सही आगत के स्वागत के तैयारी ...
जवाब देंहटाएंआगमन की प्रतीक्षा ...
बेहतर लेखन !!
जवाब देंहटाएंओह ..बेहद भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंदो संकेत, अपने संकेतों से
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना आभार
जवाब देंहटाएंabhi se uske swagat ko tatpar hain.....??? bahut himmat chahiye uska hans k swagat karne k liye...aur is saty ko apna liya to baki sab to tuchh rah jata hai.abhivandneey !!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत सुन्दर और गहन भाव लिए हुए. बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंअत्यंत गहन भाव अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंस्वागत करूँगी ,
जवाब देंहटाएंसहज स्नेहमयी, महा-वृद्धे ,
निश्चित समय
सौम्य भावेन
शुभागमन हो तुम्हारा,
समापन कालोचित
शान्ति पाठ पढ़ते
गहन भाव !!!
स्वागत करूँगी ,
जवाब देंहटाएंसहज स्नेहमयी, महा-वृद्धे ,
निश्चित समय
सौम्य भावेन
शुभागमन हो तुम्हारा,
समापन कालोचित
शान्ति पाठ पढ़ते
सुन्दर शब्दचयन,प्रभावशाली और भावपूर्ण रचना|
सहजभाव स्वागत है ..
जवाब देंहटाएंमंगल कामनाएं आपको सादर !
अति सूक्ष्म हो उठा मन..
जवाब देंहटाएं'संकेत' ने स्नेह और मोह की अदृश्य डोर को सबसे पहले छुआ।चूँकि कविता की पृष्ठभूमि में मैंने अपने समस्त प्रियजनों और स्वयं को भी देखा तो पीड़ा के तंतु तत्काल ही नेत्रों में सजग हो उठे। परिणामस्वरूप मन उदास भी रहा कुछ समय तक।संयत हुई तो ज्ञान ने विचारों को बदलना शुरू किया।
जवाब देंहटाएंसंकेत पुन: स्थूल से सूक्ष्म और सूक्ष्म से अव्यक्त हो जाने का ..साथ ही एक और संकेत (अप्रत्यक्ष रूप से) जो मैंने पाया ..हर अस्तित्व को केवल एक अविनाशी ऊर्जा के मूल स्वरुप में अपनी चेतना से जोड़ने का भी। ऐसा करके शायद मैं भी ऐसे हर संकेत का हर परिस्थिति में स्वागत कर सकूँगी।और अधिक क्या कहूँ? मुझे तो बहुत गहरे में ले गयी रचना। कांपते मन से अपने शब्द लिख रही हूँ। जो नहीं लिख पा रही, क़ाश!! वो भी कह पाती!
लहरें सी उठ गयीं अंतर्मन में
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव और उतनी ही सार्थक शब्दावली...आभार!
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना बधाई
जवाब देंहटाएंvery appealing creation.
जवाब देंहटाएंकर्पूर-आरती सा लीन मन
जवाब देंहटाएंजिस रमणीयता में रमा रहा,
वही गमक समाये ,
धूमावर्तों का आवरण हटा
तुम्हारा हाथ थाम
पल में पार उतर जाए
यही इच्छा है हे महा वृध्दे ।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।
कविता में जब आध्यात्मिकता उतरती है तो उसकी गरिमा अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुँच जाती है।
जवाब देंहटाएंसमारोह का विसर्जन,
जवाब देंहटाएंकर्पूर-आरती सा लीन मन
जिस रमणीयता में रमा रहा,
वही गमक समाये ,
धूमावर्तों का आवरण हटा
तुम्हारा हाथ थाम
पल में पार उतर जाए !
हृदयस्पर्शी अतिसुन्दर भाव ......
उत्कृष्ट ...अद्भुत रचना ....