तुमने जो भी दिया ,निबाहा क्षमता भर ,धर सिर-आँखों पर ,
ले इतना विश्वास , कि मेरी लज्जा-मान तुम्हीं रक्खोगे!
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मेरी त्रुटियाँ ,दुर्बलताएँ,मेरे मति-भ्रम ,मेरे विचलन,
मेरे यत्न देखना केवल बाकी सभी तुम्हारे अर्पण ,
दिशा-ज्ञान की कौन कहे अनजाना हो गंतव्य जहाँ पर
बोध-शोध सब परे धर दिये ,आगे ध्यान तुम्हीं रक्खोगे !
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लीन स्वयं में करना लेना मन , सारी चित्त-वृत्तियाँ धारे
जब स्व-भाव भी डूब, विलय हो इस अगाध सागर में खारे .
निस्पृह हो धर चलूँ यहीं पर ,राग-विराग, जिन्हे ओढ़ा था,
सारी डूब समाई तुम में, अब संधान तुम्हीं रक्खोगे !
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क्षमा-दान मत दो कि,साध्य हो प्रायश्चित तप-तप कर धुलना,
निर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना.
तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे !
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बस इतना विश्वास कि मेरी लज्जा-मान तुम्हीं रक्खोगे!
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बहुत सुन्दर भाव हैं.
जवाब देंहटाएंदिशा-ज्ञान की कौन कहे अनजाना हो गंतव्य जहाँ पर
बोध-शोध सब परे धर दिये ,आगे ध्यान तुम्हीं रक्खोगे !
जीवन में कभी किसी पर "अंधविश्वास" करना ही होता है. गणना करके भी अक्सर ऐसे उत्तर आते हैं जो अपने आप में प्रश्न होते हैं.
क्षमा-दान मत दो कि,साध्य हो प्रायश्चित तप-तप कर धुलना,
जवाब देंहटाएंनिर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना.
मन भीग गया ....लगा जैसे हमारी ही प्रार्थना है हमारे ही भाव
क्षमा-दान मत दो कि,साध्य हो प्रायश्चित तप-तप कर धुलना,
जवाब देंहटाएंनिर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना.
तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे !
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बस इतना विश्वास कि मेरी लज्जा-मान तुम्हीं रक्खोगे!
माता जी प्रणाम और शुभ प्रभात संग आपकी निष्ठां , समर्पण और त्याग संग विश्वास की पराकाष्ठा को नमन ...
बड़े सलीक़े से उठाये मन के भाव।
जवाब देंहटाएंभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है ।
ख्वाब क्या अपनाओगे ?
लज्जा-मान को भी समर्पित कर देने के बाद ही मान रख लिया जाता है ...
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। नव वर्ष 2013 की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। धन्यवाद सहित।
जवाब देंहटाएंक्षमा-दान मत दो कि,साध्य हो प्रायश्चित तप-तप कर धुलना,
जवाब देंहटाएंनिर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना.
तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे ...
बहुत ही सुन्दर प्रवाहमय काव्य ... भावों से ओतप्रोत निर्मल धारा सी ...
तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
जवाब देंहटाएंमन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे !
....समर्पित भक्ति की बहुत सुन्दर भावमयी रचना..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
अडिग आस्था , सुदृढ़ विश्वास एवं पूर्णरूपेण समर्पण भाव की सरस प्रवाहमयी अभिव्यक्ति। मन को छू गई । साधुवाद !!
जवाब देंहटाएंक्या लिख दिये हो आप, मन में ये भाव समा गए है उतर आये है
जवाब देंहटाएंयहाँ पर आपका इंतजार रहेगा शहरे-हवस
पूर्ण समर्पण का भाव लिये सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंOutstanding creation !
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंअशेष समर्पण भाव की सुन्दर अभिव्यक्ति.
बहुत ही सुंदर भावनात्मक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
अति सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं:-)
आपकी हर कविता हमारे लिए आनंद और सीख का विषय होती है। प्रेरणास्रोत होती है।
जवाब देंहटाएंअशेष सराहना के साथ ....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का .विचार और भाव की बेहतरीन अभिव्यक्ति हुई है रचना में .बधाई .सुन्दर शब्द चयन .
...काश,यह विश्वास बना रहे !
जवाब देंहटाएंअथाह विश्वास और आस्था लिए सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंएक उत्कृष्ट विचारों की उत्कृष्ट कविता!
जवाब देंहटाएंकई पंक्तियाँ याद आ गईं पढ़ते ही, जैसे, "गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा, जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा"
तुमने जो भी दिया ,निबाहा क्षमता भर ,धर सिर-आँखों पर ,
ले इतना विश्वास , कि मेरी लज्जा-मान तुम्हीं रक्खोगे! -- उत्कृष्ट
,
दिशा-ज्ञान की कौन कहे अनजाना हो गंतव्य जहाँ पर
बोध-शोध सब परे धर दिये ,आगे ध्यान तुम्हीं रक्खोगे !--- बहुत सुन्दर!
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निस्पृह हो धर चलूँ यहीं पर ,राग-विराग, जिन्हे ओढ़ा था,
सारी डूब समाई तुम में, अब संधान तुम्हीं रक्खोगे ! --- अतिसुन्दर!
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निर्मलता में सँजो तुम्हारी करुणा का कण-कण किं-बहुना. -- ये सार
तुमसे कौन शिकायत,शंका या आशंका चिन्ता मुझको .
मन दर्पण बन रहे तुम्हारा , तब तो भान तुम्हीं रक्खोगे ! -- बहुत ही सुन्दर
सादर शार्दुला