शार्दुला जी की एक कविता -जैसे 'तुमुल कोलाहल-कलह में हृदय की बात' कह दी हो किसी ने.
आप सब से बाँटने का लोभ समेट नहीं सकी -
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आप सब से बाँटने का लोभ समेट नहीं सकी -
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मुझे मालूम है नाराज़ हो तुम
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मुझे मालूम है नाराज़ हो तुम मेरी गलती है,
तुम्हें मैंने बताया कब, मुझे प्यारे नमक से हो .
फटे आँचल के कोने में बंधा दुर्लभ रूप्पैया तुम,
गली में गेंद जिसके हाथ आई उस लपक से हो !
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बताया ये भी न मैंने कि हरदम तुमको जीती हूँ,
तुम्हारे गीत लब पे बैठते, चढ़ते, पसरते हैं.
तुम्हारे सुख की गर्मी, दीप मन के बाल जाती है ,
तुम्हारे सुख की गर्मी, दीप मन के बाल जाती है ,
तुम्हारे दुःख की ठंडक से मेरे लम्हे सिहरते हैं!
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उमर की सीढियां चढ़ते, चुनौती तय नई करते
थका मन पीठ अपनी थपथपाना भूल जाता है ,
नहीं आयाम दूरी का कोई जब बीच में अपने
हो तुम कितने अहम्, तुमको बताना भूल जाता है !
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- शार्दुला
बहुत ही प्रभावी अभिव्यक्ति..प्रस्तुत करने का आभार..
जवाब देंहटाएंwaah kya baat hai...kuch shabdon ke naye prayog dekhne seekhne ko mile. aabhar.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमाता जी प्रणाम आप ऐसे ही कभी कभार शार्दूला जी और अन्य से भी परिचित करवाते रहें .बहुत ही भावमय रचना .
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली पंक्तियां.....आभार..
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट.....पढवाने का आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव भरी कविता ! शार्दुला जी को बधाई आपका आभार !
जवाब देंहटाएंआदरणीया और प्रिय प्रतिभाजी, ये मेरे किसी अनजाने कर्म का पुण्य ही होगा कि आप जैसी सामर्थ्यशाली लेखिका मुझ जैसे विधार्थी को इतना मान देती हैं। या फिर ये मेरे आपके प्रति प्रेम का नतीजा है कि आपको मेरे टूटे-फूटे गीत भी सुहा जाते हैं।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पे स्थान देने के लिए कृतग्य हूँ!
आपकी शार
आदरणीय प्रवीण जी, अनामिकाजी, रमाकांत जी, महेन्द्रजी, राजीव जी, मोनिका जी, शास्त्री जी एवं अनीता जी,
जवाब देंहटाएंकविता पसंद करने के लिए आप सब का हार्दिक आभार!
सादर शार्दुला
भावमय ... कोमल निश्छल भावों से बंधी रचना ...
जवाब देंहटाएंआभार पढवाने का ...
उमर की सीढियां चढ़ते, चुनौती तय नई करते
जवाब देंहटाएंथका मन पीठ अपनी थपथपाना भूल जाता है ,
नहीं आयाम दूरी का कोई जब बीच में अपने
हो तुम कितने अहम्, तुमको बताना भूल जाता है !
गहन अनुभति ,एहसास है,शब्द नहीं.
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New post: कुछ पता नहीं !!!
बहुत ही भाव-पूर्ण व खूबसूरत रचना! इस रचना से परिचय कराने का हार्दिक आभार!
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
भावमय करती सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
Very appealing creation.
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जवाब देंहटाएंइस रचना की अपनी विशेषताएँ हैं.मुझे खास लगीं.इसीलिये सबके सामने रखने का मन हुआ.साथ होते हुये भी जीवन की दौड़ में साथी से हृदय की बात कहना-बाँटना नहीं हो पाता, वही सहज-सरल स्वीकारोक्ति कविता बन कर छलक जाये तो विशेष आडंबर-आयोजन उसके आगे बनावटी लगते हैं.यह तुमसे कह रही हूँ शार!
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और आप,सब जिनने पढ़ा और सराहा,की मैं कृतज्ञ हूँ.
इस सुन्दर रचना के लिए हमें भी आपका आभार कहना चाहिए .. पाठक को कुछ खास मिला .. सादर
हटाएंबहुत सुन्दर है ये रचना...रिश्तों उमर की भावनाओं को गहराईयों से बांधती हुई--
जवाब देंहटाएंयह रचना नया रूपकात्मक भेष भरे है , .बढिया बिम्ब ,सशक्त अभिव्यक्ति अर्थ और विचार की .संक्रांति की मुबारकबाद .आपकी सद्य टिप्पणियों के लिए
जवाब देंहटाएंआभार .
सुंदर नये बिंबों से कविता की खूबसूरती और बढ़ गई है।
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत सुन्दर.बधाई .
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंwww.nayafanda.blogspot.in
उमर की सीढियां चढ़ते, चुनौती तय नई करते
जवाब देंहटाएंथका मन पीठ अपनी थपथपाना भूल जाता है ,
नहीं आयाम दूरी का कोई जब बीच में अपने
हो तुम कितने अहम्, तुमको बताना भूल जाता है !
काफी सुन्दर रचना ,,,,
साभार !
जीवन की आपाधापी के बीच जीवनसाथी के साथ अंतरंगता के कुछ क्षण भी अक्सर दुर्लभ हो जाते है । मन की बात न कह पाने का क्षोभ मन को उद्विग्न कर देता है
जवाब देंहटाएं" जिसके हृदय सद्य समीप है , वही दूर जाता है । और क्रोध होता उस पर ही , जिससे अपना नाता है ।।" बिना किसी लाग लपेट के सीधी सरल भाषा में मन की बात जिस सच्चाई
से कह दी है , वह पाठक के मन को छू जाती है ।साधुवाद !!
khoobsurti ke saath likhi sunder kavita.....
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