सोमवार, 26 नवंबर 2012

पारायण तक !

*
हल्दी रँग हाथों में जिसको ,नत शिर दे जयमाल वर लिया ,
चुटकी भर सिंदूर माँग धर ,जीवन जिसके नाम कर दिया,
सात जनम का कौन ठिकाना,नाम-रूप क्या, कौन-कहाँ पर,
जिसके साथ सात भाँवर लीं ,एक जनम तो उसे निभा दूँ ! 
*
 वस्त्राभूषण भेट ज्येष्ठ ,आमंत्रण ले आये कि चलो घर,  
 राह तक रहे  आँगन उतरो ,अब अपने सौभाग्य चरण धर, 
 शुभे पधारो ,राह तक रहा पाहुन-याचक द्वार तुम्हारे .
नये पृष्ठ जो जुड़े कथा में , आगे पारायण तक ला दूँ !
*
पग से धान्य भरा घट पूरा  आँगन ज्यों मंगल- राँगोली 
 कितनो नाते साथ जुड़ गये , आई थी मैं एक अकेली .
 अक्षत भरे थाल धर , दोनों पग  पूजे कुल-कन्याओं ने 
उनका यह सम्मान-भाव शिरसा धारे मै रही ,जता दूँ !
*
 नाम-धाम पहचान सभी बदला, मैं कौन कहाँ सब बिसरी .
 मैं ही व्याप्ति बन गई ,निजता नेह-रची संसृति में बिखरी 
 मेरी सृष्टि ,भोग भी मेरे , विस्तारित  हो गया अहं जब,
तन से, मन से नेम-धरम से मान और प्रतिमान निभा दूँ  !
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21 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी सृष्टि ,भोग भी मेरे , विस्तारित हो गया अहं जब,
    तन से, मन से नेम-धरम से मान और प्रतिमान निभा दूँ !
    *
    अहं को हटा कर ही नेह निभाया जाता है और हर नारी यही प्रयास करती है कि सारे रिश्ते जो उससे बंध गए हैं उन्हें सुघड़ता से निभाए ... बहुत प्यारी और संस्कारवान रचना ।

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  2. बहुत ही बढ़िया रचना ।

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (28-11-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  3. पग से धान्य भरा घट पूरा आँगन ज्यों मंगल- राँगोली
    कितनो नाते साथ जुड़ गये , आई थी मैं एक अकेली .

    बहुत भावप्रबल रचना ....एक एक शब्द हृदय तक पहुंचता हुआ ....प्रणाम आपको ....!!

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  4. बहुत बहुत बढ़िया...
    बेहतरीन प्रस्तुति..

    सादर
    अनु

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  5. नाम-धाम पहचान सभी बदला, मैं कौन कहाँ सब बिसरी .
    मैं ही व्याप्ति बन गई ,निजता नेह-रची संसृति में बिखरी
    मेरी सृष्टि ,भोग भी मेरे , विस्तारित हो गया अहं जब,
    तन से, मन से नेम-धरम से मान और प्रतिमान निभा दूँ !
    अर्थ भाव सब सार्थक ...बहुत ही उम्दा

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  6. अद्भुत रचना ..सच में नारी के पास बड़ी सामर्थ है स्वयम को विस्मृत कर के किसी का हो जाए की .....बधाई

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  7. बहुत सुंदर विदाई और गृह प्रवेश का कितना सुंदर वर्णन । बधाई आपको ।

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  8. बहुत बढ़िया जानपदिक भाषा के तेवर लिए है यह प्रस्तुति ,रंगोली के रंग भी पर यह "शिरसा धारे "

    प्रयोग स्पष्टीकरण मांग रहा है (सिर सा धारे ,सिर माथे पर ?कृपया बतलाये ?)

    अक्षत भरे थाल धर , दोनों पग पूजे कुल-कन्याओं ने
    उनका यह सम्मान-भाव शिरसा धारे मै रही ,जता दूँ !

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    उत्तर
    1. जी हाँ वीरेन्द्र जी,
      वही तात्पर्य है .आगत वधू को लक्ष्मी स्वरूप मान कर पुत्रियों द्वारा किया गया अभिनन्दन शिरोधार्य करने का भाव है यह .

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  9. नारी का सफ़र... कहाँ से कहाँ तक...~ सुंदर चित्रण !
    ~सादर!!!

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  10. सात जनम का कौन ठिकाना,नाम-रूप क्या, कौन-कहाँ पर,
    जिसके साथ सात भाँवर लीं ,एक जनम तो उसे निभा दूँ !

    Awesome...

    .

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  11. शकुन्तला बहादुर4 दिसंबर 2012 को 9:48 am बजे

    वधू के रूप में नारी -जीवन के परम्परागत सुकोमल एवं सुललित मनोभावों और संकल्प - साधना
    की अद्भुत अभिव्यक्ति है ।

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  12. विवाह के सुंदर रस्मों को इतनी सुंदर भावनाओं में आपने पिरोया है। सुंदर प्रस्तुति

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  13. बहुत प्रभावी ... रस्मों को लम्हों को जीते हुवे ... कुछ होने की प्रेरणा लिए ... कमाल की अभिव्यक्ति ...

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