*
लिख रही अविराम सरिता,
नेह के संदेश .
पंक्तियों पर पंक्ति लहराती बही जाती
कि पूरा पृष्ठ भर दे .
यह सिहरती लिपि तुम्हारे लिये ,प्रिय.
संदेश के ये सिक्त आखर .
*
क्या पता कितना हवा सोखे ,
उडा ले जाय .
वर्तुलों में घूमते इस भँवर-जल के
जाल में रह जाय.
उमड़ती अभिव्यक्तियाँ
तट की बरज पा
रेत-घासों में बिखर खो जायँ !
*
राह मेरी-
पत्थरों से
सतत टकराती बिछलती,
विवश सी ढलती-सँभलती .
नियति कितना, कहाँ भटकाये.
नाम से मेरे कभी पहुँचे ,न पहुँचे
और ही जल -राशि में रल जाय !
या कि बाढ़ों में बहक
सब अर्थमयता ,व्यर्थ यों उड़ जाय !
*
लिख रही अविराम ,अनथक
इन सजल लिपि-अंकनों में,
ले , तुम्हारा नाम !
शेष कुछ तो रहे तब तक ,
जहाँ बिखरी पंक्तियाँ
उद्दाम फेनिल के अतल छू ,
लेश हो ,निहितार्थ का पर्याय !
*
लिख रही अविराम सरिता,
नेह के संदेश .
पंक्तियों पर पंक्ति लहराती बही जाती
कि पूरा पृष्ठ भर दे .
यह सिहरती लिपि तुम्हारे लिये ,प्रिय.
संदेश के ये सिक्त आखर .
*
क्या पता कितना हवा सोखे ,
उडा ले जाय .
वर्तुलों में घूमते इस भँवर-जल के
जाल में रह जाय.
उमड़ती अभिव्यक्तियाँ
तट की बरज पा
रेत-घासों में बिखर खो जायँ !
*
राह मेरी-
पत्थरों से
सतत टकराती बिछलती,
विवश सी ढलती-सँभलती .
नियति कितना, कहाँ भटकाये.
नाम से मेरे कभी पहुँचे ,न पहुँचे
और ही जल -राशि में रल जाय !
या कि बाढ़ों में बहक
सब अर्थमयता ,व्यर्थ यों उड़ जाय !
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लिख रही अविराम ,अनथक
इन सजल लिपि-अंकनों में,
ले , तुम्हारा नाम !
शेष कुछ तो रहे तब तक ,
जहाँ बिखरी पंक्तियाँ
उद्दाम फेनिल के अतल छू ,
लेश हो ,निहितार्थ का पर्याय !
*
वाह क्या बात है आपको दीपावली की शुभकामना
जवाब देंहटाएंआज 10- 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... खुद की तलाश .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
राह मेरी-
जवाब देंहटाएंपत्थरों से
सतत टकराती बिछलती,
विवश सी ढलती-सँभलती .
नियति कितना, कहाँ भटकाये.
नाम से मेरे कभी पहुँचे ,न पहुँचे
और ही जल -राशि में रल जाय !
या कि बाढ़ों में बहक
सब अर्थमयता ,व्यर्थ यों उड़ जाय !
माताजी प्रणाम अद्भुत लाइन दीपावली की शुभकामनाएं
लिख रही अविराम ,अनथक
जवाब देंहटाएंइन सजल लिपि-अंकनों में,
ले , तुम्हारा नाम !
शेष कुछ तो रहे तब तक ,
जहाँ बिखरी पंक्तियाँ
उद्दाम फेनिल के अतल छू ,
लेश हो ,निहितार्थ का पर्याय ! ... अविस्मर्णीय भाव ...
प्रणाम आपको !
जवाब देंहटाएंदीपावली मंगलमय हो...
मैं तो आपकी रचनाओं में प्रयुक्त शब्दों की खूबसूरती में ही खो जाती हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (मुहब्बत का सूरज) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
राह का बढ़ना सम्हलना,
जवाब देंहटाएंपत्थरों को क्या पता सब,
बने वे अवरोध फिरते,
तदपि रहता स्फुरित जग।
भावनाओं से ओत - प्रोत रचना
जवाब देंहटाएंआपको पढ़कर मन आनंद से भर जाता है..
जवाब देंहटाएंblog jagat mein itna umda padhne ki chah rahti hai.. bahut sundar..
जवाब देंहटाएं