*
प्रिय धरित्री,
इस तुम्हारी गोद का आभार ,
पग धर , सिर उठा कर जी सके ,
तुमको कृतज्ञ प्रणाम !
*
ओ, चारो दिशाओँ ,
द्वार सारे खोल कर रक्खे तुम्हीं ने ,
यात्रा में क्या पता
किस ठौर जा पाएँ ठिकाना.
शीष पर छाये खुले आकाश ,
उजियाला लुटाते ,
धन्यता लो !
*
पंचभूतों ,
समतुलित रह,
साध कर धारण किया ,
तुमको नमस्ते !
रात-दिन निशिकर-दिवाकर
विहर-विहर निहारते ,
तेजस्विता ,ऊर्जा मनस् संचारते ,
नत-शीश वंदन !
*
हे दिवंगत पूवर्जों ,
हम चिर ऋणी ,
मनु-वंश के क्रम में
तुम्हीं से क्रमित-
विकसित एक परिणति .
पा सके हर बीज में
अमरत्व की संभावना ,
अंतर्निहित निर्-अंत चिन्मय भावना .
श्रद्धा समर्पित !
*
- प्रतिभा.
इस धरती , दिशाओं , वायु जल अग्नि सभी का आभार प्रकट करती सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंओह ....गहन कृतज्ञता ....!!!
जवाब देंहटाएंअर्हणा जैसा आपका काव्य ...
निहाल हो जाता है मन पढ़ कर ....!!
आभार ...
सुंदर!!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.............
सादर
सुबह सुबह आपकी इस रचना से अच्छा क्या होगा पढ़ना.
जवाब देंहटाएंदिशाओं को, धरती, आकाश को, पंच तत्वों को नमन करती इस सुंदर शब्दावली को पढ़कर अंतर झुक जाता है..आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमुग्ध होकर पढ़ा आज ....
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
अत्यंत खूबसूरत रचना ..
जवाब देंहटाएंशब्द चयन के तो क्या कहने
इस कृतज्ञता ज्ञापन में हमें भी शामिल कर लें।
जवाब देंहटाएंसबका धन्यवाद, जीवन में कितना कुछ पाया..
जवाब देंहटाएंमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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शुक्रवारीय चर्चा मंच ।
हे दिवंगत पूवर्जों ,
जवाब देंहटाएंहम चिर ऋणी ,
मनु-वंश के क्रम में
तुम्हीं से क्रमित-
विकसित एक परिणति .
पा सके हर बीज में
अमरत्व की संभावना ,
अंतर्निहित निर-अंत चिन्मय भावना .
श्रद्धा समर्पित !
*सबको समर्पित
प्रकृति के इन अवयवों के साथ एक आभार हमारा भी आपके लिए इस उत्कृष्ट रचना को हम तक पहुँचाने के लिए !
जवाब देंहटाएंसृष्टि के समस्त तत्वों एवं पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता-पूर्वक समर्पित
जवाब देंहटाएंइस भावाञ्जलि पर मन मुग्ध हो गया। सृष्टि के रचनाक्रम से संबद्ध वेद-मंत्र " सूर्याचन्द्रमसौ धाता....।" जैसी अनुभूति हुई।
आनन्द के इन क्षणों के लिये आभार।
सृष्टि के समस्त तत्वों के प्रति कृतज्ञता का सुन्दर भाव,,,,अनुपम गहन रचना.
जवाब देंहटाएंक्या सुंदर... एकदम अनोखे अंदाज में ज्ञापित कृतज्ञता....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई ।
समस्त पञ्च तत्वों का आभार प्रकट करती रचना अद्दभुत
जवाब देंहटाएंसृष्टि के प्रति जिसमें कृतज्ञता भाव है,उसी को पाकर सृष्टि भी धन्य है।
जवाब देंहटाएंसचमुच वैदिक उच्चार ही है इस कविता में!
जवाब देंहटाएंमैंने भी इस अर्चना में कृतज्ञ हो शीश नवाया।
बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंपंच तत्वों के प्रति हमारे पूर्वजो के प्रति काश सबके मन में ऐसी भावना होती !
जवाब देंहटाएंसृष्टि के प्रति समर्पित भाव, शब्द योजन सब कुछ सुंदर,.....
इस रचना के लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
जवाब देंहटाएंआपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
मेरा एक ब्लॉग है
http://dineshpareek19.blogspot.in/
प्रकृति द्वारा प्राप्त शरीर और प्रकृति के प्रति श्रधा का भाव प्रगट करती सुन्दर कृति ...
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat rachna......
जवाब देंहटाएंअस्तित्व के प्रति सुंदर आभार वंदन। ईश को सच्ची शब्दांजलि है।
जवाब देंहटाएंकितने सुन्दर शब्दों में आभार सजाया है .....आप को जब भी पड़ती हूँ तब ही ये अहसास होता है कि आपकी हिंदी बड़ी अद्भुत है कुछ कुछ निराला जी से मिलती जुलती आभार
जवाब देंहटाएंप्रणाम आपको...
जवाब देंहटाएंहे दिवंगत पूवर्जों ,
जवाब देंहटाएंहम चिर ऋणी ,
मनु-वंश के क्रम में
तुम्हीं से क्रमित-
विकसित एक परिणति .
पा सके हर बीज में
अमरत्व की संभावना ,
अंतर्निहित निर्-अंत चिन्मय भावना .
श्रद्धा समर्पित !....
Beautiful presentation...
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वाह !
जवाब देंहटाएंहे दिवंगत पूवर्जों ,
जवाब देंहटाएंहम चिर ऋणी ,
मनु-वंश के क्रम में
तुम्हीं से क्रमित-
विकसित एक परिणति .
पा सके हर बीज में
अमरत्व की संभावना ,
अंतर्निहित निर्-अंत चिन्मय भावना .
श्रद्धा समर्पित
आपकी रचना का हमेशा इंतजार रहता है .इतनी भावपूर्ण रचना कैसे ओझल हुई मन में मलाल है .प्रणाम सहित बधाई
दार्शनिकता और श्रद्धा के भाव, बधाई.
जवाब देंहटाएं" कृतज्ञ "................वास्तव में हम कृतज्ञ हैं....उन सभी के जिन्होंने इस जगत में, हमारे अस्तित्व में आने के बाद से हमारा पालन पोषण किया...हमें इस काबिल बनाया की आज हम उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर पा रहे हैं......................
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार कविता.
सृष्टि भी धन्य है।
जवाब देंहटाएंदर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंगहन और प्रभावी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंश्रद्धा समर्पित..आपको...
जवाब देंहटाएंअहा!! कितनी तृप्ति मिली प्रतिभा जी इस कविता को पढ़ कर...कितना आनंद पाया हृदय ने!
जवाब देंहटाएंसोच रही हूँ..कितनी संतुष्ट हुईं होंगी आप भी इस रचना को रच कर?आपकी संतुष्टि शब्दों में घुलकर पाठकों की दृष्टि को भी संतोष दे रही है।
मन एकदम शांत हो गया इस कविता तक आते आते।बहुत सी प्रिय-अप्रिय मुखाकृतियाँ, प्राकृतिक सौन्दर्य से सराबोर दृश्य और सूर्यास्त के समय का नारंगी लाल आकाश नयनों को छाये हुए है।
कविता के साथ साथ अपना शीश भी नवाती चल रही हूँ :)
(मगर ऐसी कविता पढके भय भी होता है :( ..)
भय काहे का ,तरु?
हटाएंbahut hi achhi, jeevan darshan se bhari abhivyakti
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
sach me ved mantron ki ladi thi ye to.
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