नेह भर सींचो कि मैं अविराम जीवन-राग दूँगा .
*
हरित-वसना धरा को कर ,पुष्प फल मधुपर्क धर कर
बदलते इन मौसमों का शीत-ताप स्वयं वहन कर
पंछियों की शरण बन कर ,जीव-धारी की तपन हर ,
वृक्ष हूँ मैं व्रती ,पर-हित देह भी अर्पण करूँगा .
*
गीत-गुंजन से मुखर कर वीथियों को और गिरि वन
प्राण के पन से भरूँगा जो कि माटी से लिया ऋण
मैं प्रदूषण का का गरल पी ,स्वच्छ कर वातावरण को
कलुष पी पल्लवकरों से प्राण वायु बिखेर दूँगा .
*
लताओं को बाहुओँ में साध कर गलहार डाले ,
पुष्पिता रोमांचिता तनु देह जतनों से सँभाले ,
रंग दीर्घाएँ करूँ जीवंत अंकित कूँचियाँ भर,
स्वर्ग सम वसुधा बने, सुख-शान्ति-श्री से पूर दूँगा !
*
तंतु के शत कर पसारे , उर्वरा के कण सँवारे ,
नेह भीगे बाहुओं से थाम कर तृणमूल सारे
मूल के दृढ़ बाँधनों में खंडनों को कर विफल
इन टूट गिरते पर्वतों को रोक कर फिर जोड़ लूँगा .
*
जलद-मालायें खिंचें, आ मंद्र मेघ-मल्हार गायें ,
अमिय कण पा बीज, शत-शत अंकुरण के दल सजायें,
धरा की उर्वर सतह को सींच कर मृदु आर्द्रता से ,
पास आते मरुथलों को और दूर सकेल दूँगा .
*
रूप नटवर धार करते कुंज-वन में वेणु-वादन
जल प्रलय वट- पत्र पर विश्राम रत हो सृष्टि-शिशु बन
तरु खड़ा जो छाँह बन वात्सल्यमय अग्रज तुम्हारा
मैं कृती हूँ ,नेह से भर, सदा आशिर्वाद दूँगा !
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नेह भर सींचो कि मैं अविराम जीवन राग दूँगा .
*****
आपके गीत प्राणवायु फूंकने में समर्थ हैं !
जवाब देंहटाएंआभार ...
कहाँ से लाऊं शब्द कुछ कहने को.................
जवाब देंहटाएंनमन आपकी लेखनी को.
सादर.
साँसें फूंकता गीत. बेहद सुन्दर.
जवाब देंहटाएंवृक्षों के मन की बात कितने सुंदर और सार्थक शब्दों में व्यक्त की है .... आपकी रचनाएँ पढ़ना हमारे लिए सौभाग्य की बात है ... आभार
जवाब देंहटाएंवृक्ष पुकार रहा हैं, मानों बाँह पसारे..बहुत ही सुन्दर उद्गार..
जवाब देंहटाएंpadte huye to bahut achha laga,badi aadhunik kavita
जवाब देंहटाएंpr sahi bolu to mujhe kuch samjh me nhi aaya...
http://blondmedia.blogspot.in/
बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई आपको |आशा
जवाब देंहटाएंकई बार पढ़ गयी कविता प्रतिभा जी..मानस-पटल और हृदय-भूमि नम हो चलीं हैं । अभी-अभी एक ऐसी पुस्तक पढ़कर आपकी कविता पढ़ी जिसमे एक समुद्र तट का अत्यंत मनोरम शब्द चित्रण किया गया है।आँखों से दृश्य ओझल भी न हुआ होगा कि आपकी कविता ने जो थोड़ी बहुत छवि भी धुंधली पड़ी होगी...उसमे प्राण फूंक दिए।अंत में सृष्टि शिशु की उपमा पढ़ कर संवेदनाएँ तरल हों आँखों में तैर चलीं।
जवाब देंहटाएंएक घटना जो टीवी पर देखी उसका यहाँ ज़िक्र करना ज़रूरी समझती हूँ।किसी गाँव के विवाह की खबर थी।विवाह भी कोई ऐसा वैसा नहीं,बल्कि जिसमे दान दहेज़ पूरे मान से माँगा गया और दिया भी गया। (ठीक ठीक संख्या मुझे स्मरण नहीं..किन्तु अनुमान से कह रही हूँ)...दहेज़ में वर-पक्ष ने १०० पौधों की मांग की थी..और बक़ायदा कन्या-पक्ष से इसे हर्ष और स्नेह के साथ पूरा भी किया गया।कितना अफ़सोस हुआ था मुझे उस दिन कि मैं अपने तथाकथित बुद्धिजीवी मित्रो (नौसेना के एक मित्र को छोड़कर),परिचितों और नाते-रिश्तेदारों में से एक से भी इस तरह की समझदार और प्रेरणादायी पहल की अपेक्षा नहीं कर सकती।यहाँ तक की शायद स्वयं मैंने भी ऐसा कभी नहीं ही सोचा होगा।
आज ये कविता पढ़ कर कुछ संकल्प मन में दृढ़ किये हैं।प्रकृति को निकट से स्नेह करती हूँ..इस कविता ने और भी निकट ला दिया। कविता से काव्य का रसास्वादन करने के साथ साथ जो मर्म है उस पर भी जीवन में अतिरिक्त और विशेष ध्यान देती रहूँगी।
मूक प्रकृति के स्वरों से सजी ऐसी रचना पढ़ पाई में.. ..मेरा सौभाग्य है।
ऐसी रचनाओं से उपेक्षित संवेदनाओं को मन की शक्तिशाली धमनियों का रक्त उपलब्ध हो जाता है।कम से कम मुझे व्यस्तता के क्षणों में, भागम-भाग दिनचर्या में ये दोहराना और स्वयं को याद दिलाते रहना अनिवार्य लगता है..कि महज मेरे होने के लिए कितनों को क्षय होना पड़ता है ..विशेषकर वो जो मुझसे प्रत्युत्तर में कुछ मागंते भी नहीं।क्यूंकि कभी कभी न चाहते हुए भी ये सब मैं भुला ही बैठती हूँ।
(क्षमा कीजियेगा भावुक होकर अधिक ही लिख गयी। :(..)
एक दम दिनकर की याद दिला दी आपने। ऐसी कविताएं अब कहां लिखी जाती हैं।
जवाब देंहटाएंभाव तो हैं ही, शब्द संचयन भी अद्वितीय! अति सुन्दर!
जवाब देंहटाएंभावुक कवि-हृदय की तरु संबंधी संवेदनशीलता इतनी सूक्ष्म होकर भी इतनी विविधता एवं व्यापकता से अभिव्यक्त हो सकती है-ये मेरे लिये तो
जवाब देंहटाएंअकल्पनीय ही था।ऐसी कविताएँ आजकल दुर्लभ सी हैं जिनमें मन डूब जाए और पाठक देर तक निश्शब्द बैठा रह जाए। कल्पना के इस चमत्कार और लेखनी के इस वैचित्र्य से मैं अभिभूत हूँ।
मानवीकरण के माध्यम से परहितरत तरु की उदात्त भावनाएँ स्पृहणीय हैं ,साथ ही हम मानवों के लिये अनुकरणीय भी। गीत के शब्द-सौष्ठव और प्रवाहमय माधुर्य को नमन!!
जवाब देंहटाएंरूप नटवर धार करते कुंज-वन में वेणु-वादन
जवाब देंहटाएंजल प्रलय वट- पत्र पर विश्राम रत हो सृष्टि-शिशु बन
तरु खड़ा जो छाँह बन वात्सल्यमय अग्रज तुम्हारा
मैं कृती हूँ ,नेह से भर, सदा आशिर्वाद दूँगा !
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नेह भर सींचो कि मैं अविराम जीवन राग दूँगा .
MATA JI PRANAM .koi tippani nahi .aap swasth rahen aur maa saraswati ki aise hi sadhana karati rahain.
पर्यावरण के मौलिक अस्तित्व को आपने बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है। बहुत-बहुत आभार। गीत के पाँचवे बंद में की अंतिम पंक्ति "पास आते मरुथलों को और दूर सकेल दूँगा" में सकेल की जगह ढकेल होना चाहिए। लगता है टंकणगत अशुद्धि है। कृपया ठीक कर दें, तो अच्छा रहेगा। इसी प्रकार एक दो स्थानों पर अनावश्यक अल्प-विराम पड़ा है।
जवाब देंहटाएंआ.आचार्य जी ,
जवाब देंहटाएंआभार कि आपने इतना ध्यान दिया और त्रुटियों की ओर संकेत किया .
अब ठीक कर ली हैं .
स्नेह बनाये रखें .
आदरणीया प्रतिभा जी
जवाब देंहटाएंअहा ! कितना सुन्दर लिखा है आपने !
रूप नटवर धार करते कुंज-वन में वेणु-वादन
जल प्रलय वट- पत्र पर विश्राम रत हो सृष्टि-शिशु बन
तरु खड़ा जो छाँह बन वात्सल्यमय अग्रज तुम्हारा
मैं कृती हूँ ,नेह से भर, सदा आशिर्वाद दूँगा !
अनुपम पंक्तियाँ ! अद्वितीय !
आपकी लेखनी को नमन !
सादर
प्रताप
प्रतिभा जी,
जवाब देंहटाएंपुनः पाठ करने पर मुझे अनायास ही आभास हुआ कि आपके गीत की प्रथम पंक्ति "नेह भर सींचो कि मैं अविराम जीवन राग दूँगा।" में कुछ वैसी ध्वनि है जैसे 'तुम मुझे ख़ून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।" यहाँ "दूँगा" शब्द में जो सुनिर्णीत सुनिश्चित आश्वासन है,प्रतिबद्धता है-वह मन को छू गई।हाँ,आपका "सकेल" शब्द का प्रयोग बहुत प्यारा ,मृदुता लिये और श्रुति-मधुर सा लगा।"ढकेल" अथवा "धकेल" में ज़ोर से धक्का देने वाला भाव कुछ कटुतापूर्ण लगता है।वाह!क्या बात है,धीरे से सकेलने में कुछ बात ही और है।आपका शब्द-संयोजन सराहनीय है।
शकुन्तला जी , व्यावहारिकता और ग्राह्यता की दृष्टि से आप से सहमत हूँ.लोक-शब्दों का प्रयोग मुझे भी आत्मीय-सा लगता है शास्त्रीयता वहीं तक ठीक ,जहाँ तक सरसता और ग्राह्यता का क्षरण न हो. नेह भर सींचो पर
जवाब देंहटाएंbahut sundar sandesh se ot-prot rachna..aabhar!
जवाब देंहटाएंआज आंच पर आपके इस गीत के बारे में पढ़कर इधर चली आई। वाकई बहुत मधुर लिखा है आपने..
जवाब देंहटाएंसच में अभिभूत कर देने वाला गीत है!
जवाब देंहटाएंअद्भुत काव्य, अनुपम शब्द-सौन्दर्य और सन्देश! साधु!
बहुत-बहुत सुन्दर कविता, जो केवल आप ही लिख सकती है ! कृतार्थ हुई पढ़ कर. मन भर आया. रोमांचित हो उठा चित्त!
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