व्यक्त कैसे हो अवर्ण्य स्वरूप ,
हो किस भाँति चिन्तन,
करूँ मैं किस भाँति भावन, रूप-गुणमयि माँ तुम्हारा !
रूप कैसा माँ तुम्हारा ?
*
मैं अव्यक्त, अरूप, ऊर्जा- रूपिणी ,
मैं नित-नवीना , काल की सहचरि निरुक्ता .
मैं प्रकृति , लीला विलासिनि ,
मैं समुच्चय ज्ञान का, इच्छा-क्रिया का !
त्रिगुण मुझमें विलय ,मुझसे ही विभाजित
समाहित धन-ऋण स्वयं में , शून्य को आपूर्ण करती .
धारणा निष्क्रिय ,अरूप विचारणायैं
मैं सुकल्पित रूप दे , अभिव्यक्त करती .
*
देह की जीवन्तता में मोद भर-भर ,
नेह-पूरित चेत भर जड़-जंगमों में
मृदु ,कठोर ,यथोचिता बहुरूपिणी मैं ,
युग्म -क्रीड़ा ,नित नये आकार,अनुक्रम,
दीप्ति भर , माटी कणों में .
प्रकृति हूँ आद्या , उदर में अंड धारे ,
सृजन का दायित्व धारे अवतरी हूँ .
जन्मदात्री हूँ, सतत चिद्भाव-वासिनि ,
आदि रहित, निरंतरा बढ़ती लड़ी हूँ.
अखिल विद्या-रूप , मेरी ही कलायें ,
सकल नारी रूप जग के ,अंश मेरे !
*
धन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
नारि-तन धारे सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ !
*
- प्रतिभा .
माँ के रूपों की व्याख्या माँ के ही शब्दों में ...
जवाब देंहटाएंपढ़े जाएँ बस !
शुभकामनायें !
जय हो! मातृ दिवस की बधाई!
जवाब देंहटाएंमहतारी दिवस की बधाई
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमाँ के उस चेहरे का सौन्दर्य अदभुत होता है जब बच्चा उस चेहरे को अपनी हथेलियों से छूता है , माँ के गले में बाँहें डाले मुस्कुराता है , और जोर से बुलाता है माँ
जवाब देंहटाएंआपके शब्द अर्थ लिये बाट जोहते हैं..सब हृदय में उतर जाता है।
जवाब देंहटाएंमाँ को शत- शत नमन ……सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना...हृदयस्पर्शी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपके शब्दों की हमेशा कायल रही हूँ सीधे मन की तह तक जाते हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी शब्द सामर्थ्य पर टिप्पणी करने की हमारी सामर्थ्य नहीं है ...
जवाब देंहटाएंसादर !
धन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
जवाब देंहटाएंनारि-देही मैं सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ !
वाह!
मां के प्रति इतना सुन्दर काव्यात्मक अभिव्यक्ति मैंने पहले कभी नहीं पढ़ी थी।
हर मां को नमन!!
व्यापकता विशालता की प्रतिमूर्ति माँ
जवाब देंहटाएंधन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
जवाब देंहटाएंनारि-देही मैं सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ ..
bahut sundar rachna..
.
कह दिया यों आपने इतना यहां पर
जवाब देंहटाएंछूटता अब भी बहुत कुछ यद्यपि है!
हे मातृशक्ति! तुमको प्रणाम,शत बार तुम्हारा अभिनन्दन!!!
जवाब देंहटाएंअत्यधिक विविधता एवं व्यापक असीमता के साथ चित्रित महिमामयी माँ के स्वरूप पर मन मुग्ध हो गया। सुललित शब्द-सौष्ठव ने काव्यमयी रचना में प्राण फूँक दिये हैं। माँ पर रची गई ये सारगर्भित सशक्त रचना मनोरम एवं अनूठी है।
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंधन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
जवाब देंहटाएंनारि-देही मैं सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ !
...
बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी प्रस्तुति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना गहन भाव छिपे हैं |
जवाब देंहटाएंआशा
सकल नारी रूप जग के ,अंश मेरे !
जवाब देंहटाएं*ध्वनी सौन्दर्य और ओज से संसिक्त गत्यात्मक रचना .
ram ram bhai
शुक्रवार, 18 मई
ऊंचा वही है जो गहराई लिए है
शाश्वत सत्य यही है .
http://veerubhai1947.blogspot.in/
2012
Posted by veerubhai to दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक at 17 May 2012 12:51
कृपया मेरी रचना भी देखे अच्छी लगे तो जुड़े
जवाब देंहटाएंधन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
जवाब देंहटाएंनारि-देही मैं सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ ..
भावनाओं का अनुपम संगम ... आभार ।
धन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
जवाब देंहटाएंनारि-देही मैं सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ !
MATA JI KO PRANAM .
AAP CHIRAYU HON AAPAKA SNEH AISA HI BARASATA RAHE.KYA KAHUN .......ADBHUT PREM KI ABHIWYAKTI .
धन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
जवाब देंहटाएंनारि-देही मैं सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ !
ati sundar rachna hetu sadar aabhar !
माँ के लिये अपना बच्चा और बच्चे के लिये अपनी माँ दुनिया में सबसे सुंदर हैं । अनुपम प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंधन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
जवाब देंहटाएंनारि-देही मैं सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ !......अनुपम कृति.. प्रतिभा जी.मै पहली बार यहाँ आई बहुत अच्छा लगा..मेरे ब्लांग में आने के लिए आभार......
बहुत अनूठी सौंदर्य शब्दों का बोध कराती अभिव्यक्ति माँ के चरणों में नमन क्षमा चाहती हूँ देर से पढ़ी
जवाब देंहटाएंअद्भुत!
जवाब देंहटाएंअनुपम बिम्बों से सजी पगी यह कविता अत्यंत मनभावन है।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंधन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
हटाएंनारि-तन धारे सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ !
धन्य हुए पढ़कर इसे ...!!
बहुत सुंदर भाव ...
उत्कृशष्ट रचना ....!!
आभार.
धन्य हूँ मैं ,परस ऊर्जा-कण तुम्हारे ,
जवाब देंहटाएंनारि-तन धारे सृजन की अंशिका हूँ ,
महालय-मय गीत की कड़ियाँ सँजोती
रंध्रमयि हूँ, पर तुम्हारी वंशिका हूँ !
अद्भुत शब्द संयोजन .... माँ का सम्पूर्ण रूप दृष्टिगोचर हो रहा है
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएं"माँ तुम्हारे पाँव मेरी गोद में । "----आपको पढकर धर्मवीर भारती जी की यही पंक्ति निकलती है दिल दिमाग से ।
जवाब देंहटाएंगिरिजा जी,
हटाएंये कविता की पंक्ति इस प्रकार है -
'ये शरद के चाँद-से उजले धुले-से पाँव,
मेरी गोद में !
ये लहर पर नाचते ताज़े कमल की छाँव,
मेरी गोद में !'
आगे ये भी है -
ज्यों प्रणय की लोरियों की बाँह में,
झिलमिलाकर औ’ जलाकर तन, शमाएँ दो,
अब शलभ की गोद में आराम से सोयी हुईं
या फ़रिश्तों के परों की छाँह में
दुबकी हुई, सहमी हुई, हों पूर्णिमाएँ दो,
देवताओं के नयन के अश्रु से धोई हुईं ।
चुम्बनों की पाँखुरी के दो जवान गुलाब,
मेरी गोद में !
सात रंगों की महावर से रचे महताब,
मेरी गोद में !'
- ये कुछ पंक्तियाँ है ,कविता लंबी है
शब्द,भाव संयोजन सब कुछ अद्भुत !
जवाब देंहटाएंआज दुबारा पढने पर इसके शब्द मन में कहीं और गहरे पैठ गये।
जवाब देंहटाएं