*
प्रेम की परिकल्पना राधा ,
जहाँ कोई भी न भव बाधा !
भावना सशरीर, मर्यादा अभौतिक,
गहनतम अनुभूति की यह डूब ,
मग्नता का कहीं ओर न छोर.
बिंब औ'प्रतिबिंब दोनों एक ,
राग की अभिव्यंजना राधा !
*
विरह पलती प्रेम की गाथा ,
निविड़ उर- एकान्त ने साधा.
सम समर्पण जहाँ दोनों ओर,
शेष रह जाता अरूपित भाव
नाम हो फिर कृष्ण या राधा !
*
प्रेम की परिकल्पना राधा ,
जहाँ कोई भी न भव बाधा !
भावना सशरीर, मर्यादा अभौतिक,
गहनतम अनुभूति की यह डूब ,
मग्नता का कहीं ओर न छोर.
बिंब औ'प्रतिबिंब दोनों एक ,
राग की अभिव्यंजना राधा !
*
विरह पलती प्रेम की गाथा ,
निविड़ उर- एकान्त ने साधा.
सम समर्पण जहाँ दोनों ओर,
शेष रह जाता अरूपित भाव
नाम हो फिर कृष्ण या राधा !
*
जवाब देंहटाएंएक-एक शब्द गहनतम। बिन मर्यादा प्रेम कहाँ।
प्रेम का अंतिम खंड राधा पे ही समाप्त होता है ... जिसके बाद बस माया ही माया याने कृष्ण रह जाता है जो शायद स्वयं भी राधा ही है ...
जवाब देंहटाएंआपके शब्दों में डूब कर उभारना आसान नहीं ...
" सम समर्पण जहाँ दोनों ओर, शेष रह जाता अर्पित भाव , नाम हो फिर कृष्ण या राधा ।" सचमुच समर्पण की भावना इन्हें दो शरीर एक प्राण का
जवाब देंहटाएंअथवा बिंब-प्रतिबिंब का रूप प्रदान करती है । अद्भुत भावाभिव्यक्ति !!
भाव रूपाकार हुआ । आभार ।
जवाब देंहटाएंकृष्ण राधा को एकाकार करती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं