एक ख़त चलते-चलाते ज़िन्दगी के नाम लिख दूँ !
लिखा है आधा-अधूरा बहुत बाकी रह गया पर ,
तू अगर चाहे बता सारे सुबह औ'शाम लिख दूँ .
जो दिया तूने उसे स्वीकार नत-शिर कर निभाया
हार है या जीत मेरी तो समझ में कुछ न आया,
व्यक्त कर पाऊँ स्वयं को ,शब्द की सामर्थ्य सीमित
जो रहा शायद कभी आ जाय तेरे काम, लिख दूँ
ज़िन्दगी थी क्या कभी तू ,किन्तु अब क्या हो गई है
बदलते परिवेश के सब तथ्य ख़ुद ही धो गई है
दोष दे या सही माने , तू व तेरा काम जाने ,
कहे तो इन अक्षरों में फिर वही पहचान लिख दूँ !
क्या पता कितना जमा था खर्च मेरे नाम कितना ,
जो उधार अभी पड़ा ,मुश्किल बहुत उससे निबटना
बही के इस सफ़े का सारा हिसाब रुका पड़ा है ,
भूल-चूक रफ़ा-दफ़ा यह नोट सब के नाम लिख दूँ ?
जानना चाहा जभी ,सब ब्याज अपने नाम पाया
जोड़ पाई मैं कहाँ कुछ भी न मेरे काम आया
रंग इतने देख कर तो चकित-विस्मित रह गई
अब नफ़ा औ'नुक्सान सब बेकार ,बस अनुमान लिख दूँ !
पाठ का इति तक अगर सारांश बोले तो बता दूँ
व्यक्त जितना हो सके उतना सही, कहकर सुना दूँ
शिकायत कोई नहीं ,बस एक बार जवाब दे दे -
अंत पूर्ण विराम ,या कुछ बिन्दु डाल प्रणाम लिख दूँ ?
लिखा है आधा-अधूरा बहुत बाकी रह गया पर ,
तू अगर चाहे बता सारे सुबह औ'शाम लिख दूँ .
जो दिया तूने उसे स्वीकार नत-शिर कर निभाया
हार है या जीत मेरी तो समझ में कुछ न आया,
व्यक्त कर पाऊँ स्वयं को ,शब्द की सामर्थ्य सीमित
जो रहा शायद कभी आ जाय तेरे काम, लिख दूँ
ज़िन्दगी थी क्या कभी तू ,किन्तु अब क्या हो गई है
बदलते परिवेश के सब तथ्य ख़ुद ही धो गई है
दोष दे या सही माने , तू व तेरा काम जाने ,
कहे तो इन अक्षरों में फिर वही पहचान लिख दूँ !
क्या पता कितना जमा था खर्च मेरे नाम कितना ,
जो उधार अभी पड़ा ,मुश्किल बहुत उससे निबटना
बही के इस सफ़े का सारा हिसाब रुका पड़ा है ,
भूल-चूक रफ़ा-दफ़ा यह नोट सब के नाम लिख दूँ ?
जानना चाहा जभी ,सब ब्याज अपने नाम पाया
जोड़ पाई मैं कहाँ कुछ भी न मेरे काम आया
रंग इतने देख कर तो चकित-विस्मित रह गई
अब नफ़ा औ'नुक्सान सब बेकार ,बस अनुमान लिख दूँ !
पाठ का इति तक अगर सारांश बोले तो बता दूँ
व्यक्त जितना हो सके उतना सही, कहकर सुना दूँ
शिकायत कोई नहीं ,बस एक बार जवाब दे दे -
अंत पूर्ण विराम ,या कुछ बिन्दु डाल प्रणाम लिख दूँ ?
*
बहुत ही सुंदर भाव, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह !
जवाब देंहटाएंमन के भाव कुछ बैरागी अंदाज़ लिए हैं ... ऐसी बातें क्यों ... अभी तो जीवन है .. चहकने की बात होनी चाहिए .. बहुत दिनों बादाप्को पढ़ने को मिला है ... आशा है स्वास्थ ठीक होगा ...
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जीवन बहुरंगी है नासवा जी ,कभी-कुछ कभी कुछ - एक स्थाई भाव कहाँ !
मैं बिलकुल ठीक हूँ -आभार स्वीकारें .
जीवन में वसंत सदा छाया रहे !
हार और जीत के पार जो है वही है जिन्दगी..सचमुच यहाँ न नफा है न नुकसान...इसको किसी भी सीमा में नहीं बांधा जा सकता..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, माँ सरस्वती पूजा हार्दिक मंगलकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .....बसंतोत्सव की शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंमनभावन रचना
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की अनंत हार्दिक शुभकानाएं ---
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई -----
आग्रह है--
वाह !! बसंत--------
बहुत कुछ सीखना है आपसे ! आभार आपका
जवाब देंहटाएंकिसी न किसी मोड़ पर रुक कर जीवन की यात्रा के पन्ने पलटने का मन करता ही है !
जवाब देंहटाएंजिंदगी से बात होती रहे , चाहे प्रेम हो , तल्खी हो !
अति सुंदर सन्देश लिए पंक्तियाँ ....
जवाब देंहटाएंजिंदगी सोचने को मजबूर कर देती है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव हैं.
सच कहा है, न जाने कितना चुकाना है और कितना साथ ले जाना है।
जवाब देंहटाएंये धूप और ये छांव के संग ,
जवाब देंहटाएंज़िंदगी के नित बदलते हैं रंग ,
बस चलते जाना ही तो जीवन ......!!
परिपक्व भाव ...जीवन के तजुर्बे से भरे ....बहुत सुंदर रचना ।
सादर शुभकामनायें .
जीवन के बहुआयामी सत्य को उजागर करती भावपूर्ण कविता...बहुत सुंदर...हार्दिक शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंसादर,
नफा नुक्सान का हिसाब क्या बस ज़िन्दगी बिंदु से भी आगे बढ़ती रहे पूर्ण विराम तो स्वयं ही लग जायेगा ।
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