*
अभी तो पाट पर बैठी ,
छये मंडप तले ,
लपेटे एक पचिया पीत ,
मंगल वस्त्र,आया जो ममेरे से,
कि हल्दी ले करें अभिषेक
भाभी-मामियाँ घेरे .
कुँवारी देह पर चढ़ रहा कच्चा तेल ,
नयनों में झरप का झलमलाता नीर,
हल्दी का सुनहरा रंग ,
तन में दीप्ति बन छलका.
*
अरघ देतीं पथ परिष्कृत कर चलीं ,
गौरी- रोहिणी सी कन्यकाएँ .
समर्पेगी अंजली भर धान्य ,
यह भावी वधू नत-शीश ,
पितरों के चरण तल में .
बिदा को प्रस्तुत तुम्हारी अंशजा ,
यह सृष्टि की कुल-वल्लरी आगे बढ़ाने.
असीसो कुल-देवताओँ !
*
हम ऋणी थे सृष्टि के ,
पर आज, श्री-सुषमामयी
तुमने हमें दाता बना ,
गौरव बढ़ाया.
वहाँ सज्जित देहरी
प्रस्तुत तुम्हारी आरती को.
सत्कृते, शुभ चरण- छापों से,
गृहांगन को सजाती
दाहिने अंगुष्ठ-पग से कलश-धान्य बिखेर ,
नेहिल केन्द्र बन
श्री-अन्नपूर्णा सी विराजो ,
तृप्ति ,पुष्टि बनी प्रतिष्ठित रहो पुण्ये,
धन्य-जीवन हम ,
तुम्हें पा कर, सुकन्ये !
*
अभी तो पाट पर बैठी ,
छये मंडप तले ,
लपेटे एक पचिया पीत ,
मंगल वस्त्र,आया जो ममेरे से,
कि हल्दी ले करें अभिषेक
भाभी-मामियाँ घेरे .
कुँवारी देह पर चढ़ रहा कच्चा तेल ,
नयनों में झरप का झलमलाता नीर,
हल्दी का सुनहरा रंग ,
तन में दीप्ति बन छलका.
*
अरघ देतीं पथ परिष्कृत कर चलीं ,
गौरी- रोहिणी सी कन्यकाएँ .
समर्पेगी अंजली भर धान्य ,
यह भावी वधू नत-शीश ,
पितरों के चरण तल में .
बिदा को प्रस्तुत तुम्हारी अंशजा ,
यह सृष्टि की कुल-वल्लरी आगे बढ़ाने.
असीसो कुल-देवताओँ !
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हम ऋणी थे सृष्टि के ,
पर आज, श्री-सुषमामयी
तुमने हमें दाता बना ,
गौरव बढ़ाया.
वहाँ सज्जित देहरी
प्रस्तुत तुम्हारी आरती को.
सत्कृते, शुभ चरण- छापों से,
गृहांगन को सजाती
दाहिने अंगुष्ठ-पग से कलश-धान्य बिखेर ,
नेहिल केन्द्र बन
श्री-अन्नपूर्णा सी विराजो ,
तृप्ति ,पुष्टि बनी प्रतिष्ठित रहो पुण्ये,
धन्य-जीवन हम ,
तुम्हें पा कर, सुकन्ये !
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आपकी लिखी रचना शनिवार 15/02/2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
कृपया पधारें ....धन्यवाद!
bahut sundar bhavi vadhu ke swagat
जवाब देंहटाएंNEW POST बनो धरती का हमराज !
दुल्हन के आगमन से कैसे उल्लास से भर जाता है घर का आंगन..दोनों कुलों का जो मान बढ़ाती है वह सुकन्या ही तो है..सुंदर शब्द चित्र !
जवाब देंहटाएंकाश ! ऐसा ही मान सबको मिलता..अति सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंशब्द शब्द हृदय पर उतार गया ...!!बहुत सुंदर रचना ....!!संग्रहणीय है ...!!
जवाब देंहटाएंकविता एक वधु के समान पग धरते धरते हृदय में समा गई और एक पुत्री का पिता होने के कारण नेत्र सजल हो उठे... समाज में व्याप्त नारी के प्रति हो रहे अत्याचार को ध्यान में रखते हुए, इस कविता की कोमलता को जब गुनता हूँ तो भयाक्रांत हो उठता है मन!!
जवाब देंहटाएंकोई संगीतकार इस रच्ना को स्वरबद्ध करता तो यह एक अमर गीत बन सकता है!
चरण स्पर्श की अनुमति दें!!
बंधु ,
हटाएंआप तो स्नेह के अधिकारी है!
आपकी टिप्पणी अभिभूत कर गई .
.पुत्री के पिता के मन की संवेदना की थाह कौन पा सका है(मैं आज समझ पाया पुत्री के विवश पिता का दुख अछोर,उर पर पहाड़-सा बोझ धरे आँसू से आँजे नयन कोर ).
अपने रीति-रिवाज़ों में पुत्री और वधू को जो संरक्षण और महत्व प्राप्त है लोग उसे भूलते जा रहे हैं ,जो उचित व्यवहार उनके लिए अपेक्षित है उस पर कोई ध्यान नहीं देता -इसीलिये ,ये विडंबनाएँ !पर संस्कारशील परिवारों में अभी भी ये मर्यादाएं जीवित हैं और बाहर की दुनियाँ के प्रति में उनकी बढ़ी हुई चिन्ताएं जायज़ है
लेकिन समर्थ बना कर और सावधान संरक्षण दे कर पुत्री को ,वांछित जीवन प्रदान कर सकेंगे यह मुझे पूरा विश्वास है .
स्नेह और आदर सहित,
- प्रतिभा सक्सेना.
ओह , स्तब्ध कर देने वाली रचना !!
हटाएंबाकी सलिल लिख चुके हैं यहाँ !!
सादर प्रणाम !!
सुन्दर रचना, विवाह और विवाहितों को ऐसा ही सम्मान देता रहे समाज।
जवाब देंहटाएंवाह! आनंद आ गया पढ़कर।
जवाब देंहटाएंधुमिल ने कहा है- अब कविता में एकालाप ही सुनाई देता है। सही कहते हैं। रिश्तों की रूनझुन नहीं सुनाई देती, एकल आक्रोश ही झलकता है।
लेकिन यहाँ रिश्तों की रूनझुन भी है, संस्कार भी है, संस्कृति भी। पुत्रियों का पिता होने के नाते यह कविता और भी हृदय को झंकृत कर देती है।
संग्रहणीय कविता के लिए आभार।
देवेन्द्र जी,
हटाएंपुत्री के पिता का अंतर कुछ विशेष संवेदनशील हो उठता है,यह सच है .सजग-सचेत पिता पुत्रियों से गौरवान्वित हो कर कितने तुष्ट होंगे हैं ,समय आने पर यह अनुभव भी करने को मिलेगा.
आभार !
ः फअऱथइआ शखअशएआ।
सुन्दर मांगलिक अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंवात्सल्य की सुकोमल भावनाओं की अद्भुत अभिव्यक्ति आँखों के आगे दृश्य उपस्थित कर देती है।कन्या/ पुत्री को महिमामंडित करना मन को छू गया । विवाहोत्सव का आनन्द देने के लिए आभार !! एक अनूठी प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंमन में एक चित्र उकेरती गयी यह रचना. बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंपोस्ट शामिल करने हेतु आभार स्वीकारें !
जवाब देंहटाएंpratibha ji !kya sundar sugathit bhav yojna rahti hai aapki pratyek drishy jo aap dikhana chahti hain swaroopit ho kar sammukh aa jata hai SADHUVAD
जवाब देंहटाएंस्त्री के सम्मान में मेरा भी नमन. सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंमंगलमय आशीष । ऐसे भाव ऐसी कामनाएं नारी को गौरव प्रदान करती है । ऐसा आसीर्वाद हर कन्या को मिले ।
जवाब देंहटाएंआपने तो विवाह दृश्य ही सामने रख दिया जैसे .....बहुत ही कोमल,
जवाब देंहटाएंमंगलमयी संजोकर रख लें ऐसी सुंदर रचना......आभार आपका ...
विवाह नए जीवन की शुरुआत है और नए अर्थ से सजने वाला संस्कार... कोणाल भावों से सजाया है इस रचना को ...
जवाब देंहटाएंअत्यंत ही भावुक और सशक्त, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक कन्या जब दूसरे गृह में प्रवेश करती है तो नव उल्लास संग संग आता है
जवाब देंहटाएंअपने संग कई चीजे लेकर आती है
सुन्दर शब्द चित्र
सादर !
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...अंतस को छूते अहसास...
जवाब देंहटाएंशब्द और भावों का संयोजन बहुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंकाश की हर घर में वधु को ऐसा सम्मान मिले !
विवाह संस्कार का सजीव चित्रण । पुत्रियों को मान देते भाव । अद्भुत रचना ।
जवाब देंहटाएंपुन: पढ़ा तो कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाटक के चतुर्थ अंक
जवाब देंहटाएंमें शकुन्तला की विदा के समय कण्व के शब्द याद आ गए -
"यास्यति अद्य शकुन्तलेति, हृदयम् संस्पृष्टं उत्कंठया ......"यही रचना की सार्थकता है ।