मेरे बचपन की एक और बाल-कविता -
*
चंपा ने कहा,' चमेली ,क्यों बैठी आज अकेली,
क्यों सिसक-सिसक कर रोतीं ,क्यों आँसू से मुँह धोतीं,
क्या अम्माँ ने फटकारा ,कुछ होगा कसूर तुम्हारा ,
या गुड़ियाँ हिरा गई हैं, या सखियाँ बिरा गई हैं?
*
भइया ने तुम्हें खिजाया ,क्यों इतना रोना आया ?
अम्माँ को बतलाती हूँ मैं अभी बुला लाती हूँ , .'
सिसकी भर कहे चमेली,'मैं तो रह गई अकेली
देखो वह पिंजरा सूना ,उड़ गई हमारी मैना !
*
मैं उसे खिला कर खाती ,बातें भी करती जाती
कितना भाती थी मन को ,क्यों छोड़ गई वह हमको?'
'इक बात मुझे बतलाओ तुम भी यों ही फँस जाओ
जब कोई तुम्हें पकड़ के, पिंजरे में रखे जकड़ के!
*
खाना-पानी मिल जाए फिर बंद कर दिया जाए
तो कैसा तुम्हें लगेगा किस तरह समय बीतेगा?
तुम रह जाओगी रो कर, खुश रह पाओगी क्योंकर ?
वह उड़ती थी मनमाना, सखियों सँग खेल रचाना!
*
ला उसे कैद में डाला ,कितना बेबस कर डाला !
पिंजरे में थी बेचारी, पंखोंवाली नभ-चारी .
अब उड़-उड़कर खेलेगी ,वह डालों पर झूलेगी .
छोटा सा नीड़ रचेगी ,अपनो के साथ हँसेगी.
*
उसको सुख से रहने दो ,अपने मन की कहने दो !
धर देना दाना-पानी, खुश होगी मैना रानी !'
तब हँसने लगी चमेली, तूने सच कहा सहेली,
'ये पंछी कितने प्यारे ,आयेंगे साँझ-सकारे !'
*
( बाद के चार छंद मूल कविता के नहीं हैं ,किसी को पता हो तो बता कर उपकृत करे!- प्रतिभा. )
माता जी प्रणाम बहुत ही सुन्दर निःशब्द करती
जवाब देंहटाएंआपकी *जो बिसारा नहीं *मेरे रीडिग लिस्ट में पूरा छप गया है एक नज़र देखें
mata ji pranam bahut hi sundar kawita
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंकितना अच्छा लगता है बाल-कविता को फिर से जीना..
जवाब देंहटाएंWaaah....
जवाब देंहटाएंapki bachpan ki baal kavita padh kar apna baal-pan yaad dila diya. aabhar.
जवाब देंहटाएंपंख लगा लो, उड़ा करो।
जवाब देंहटाएंबचपन में पहुंचा दिया आपने.
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
कोमल बाल मन के भावों से सुसजित बहुत ही प्यारी सी कविता मुझे बहुत अच्छी लगी :) आभार ....
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंकुछ मिलते जुलते भाव मेरे मन भी आये थे देखिएगा
http://vandana-nanhepakhi.blogspot.in/2011/05/blog-post.html?spref=bl
bahut badhiya ji
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता है... बचपन जैसी ही मासूम...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
behad pyari kavita..
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी बाल-कविता....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
bachpan ki yaad taaja kar di..
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
सुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंप्यारी सी बाल कविता..
जवाब देंहटाएंजब से ब्लॉग की दुनिया से साक्षात्कार हुआ है ...बाल-कविताओं का भी आनंद मिल रहा है ....सरल और कोमल भाव होने के कारण मुझे बहुत पसंद हैं .....चमेली की मैना बहुत ही सुंदर और सदविचार प्रेषित करती है ....बुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग आपके स्वागत के इंतज़ार में
स्याही के बूटे
Bahit pyari kawita hai Shipraji. Aur Aapke jode chand bhee usame ek sar hokar jud gaye hain. Dhanyawad aapka.
जवाब देंहटाएंधन्य हो आशा जी ,आपने तो मेरा नामकरण ही कर दिया-
जवाब देंहटाएंनया नाम भी शिरोधार्य!
कई बार मन में उतर जाती हैं ऐसी रचनाएँ जो पढ़ने के बाद बचपन की गलियों में ले जाती हैं ओर सहलाती हैं माँ की तरह ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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