एक नचारी .
*
(शंभु के विवाह को चार दिन शेष रह गये .हिमाचल के घर तैयारियाँ चल रही होंगी .शंभु कैसे क्या करेंगे यही सोच रही हूँ - )
गन सारे जुटि रहे आस-पासे ,कइस औघड़ को दुलहा बनावे,
पूरो संभु को समाज आय ठाड़ो कोऊ जाने न लोक-वेवहारो !
घरनी बिन ,रहे भूतन को डेरा रीत-भाँत कोऊ जाने ना अबेरा ,
दौर-भागि करें चीज-वस्त पूरा, सो समेटि रहे भाँग और धतूरा ,
*
बाट देखि रह्यो नांदिया दुआरे लै के डमरू भये संभु असवारे
चली भूत-प्रेत की जमात संगे,रूप सब को विरूप, विकल अंगे
सारे जग के अनाथ दई-मारे , आय जुटे तबै संभु के दुआरे ,
होहिं पूरन मनोरथ सुभ-काजे , देइ-देइ के असीस संग लागे .
*
लहर लहर करे गंग की तरंगा ,संभु खुदै झूमि रहे भंग-रंगा ,
जटा -जूट जड़ी बाल-इन्दु लेखा,धार गजपट विचित्र वेष-भूषा.
ताल देई-देई डमरू बजावैं, मुंडमाल देखि जिया थरथरावे ,
लै बरात संभु आय गे दुआरे ,लहराय रहे नाग फन निकारे.
*
पुर लोग देखि दुलहा बिचित्तर ,दौरि-दौरि के सुनावैं सब चलित्तर,
नाचें मगन मन भूत- प्रेत सारे , डरि भागे लोग चकित नैन फारे.
परिछन के काज कनिया के वर की , सासु आरती लै संग नार घर की ,
फुंकार नाग, गिरत-परत भागीं , झनझनात गिर्यो थाल अक्षतादि .
*,
रोय नारद को कोसि रही मैना,दाढ़ी-जार विधि ,तोहि नाहिं चैना .
संग बिटिया लै कूदि परौं गिरि ते, कइस रही साथ उमा अइस वर के
एक जोड़ा न जापै एक लुटिया ,केहि भाँति रहि पाई मोर बिटिया ,!
विधि, रूप धारि आये इहि लागे ,भाग जागि गा तुम्हार समुझावैं !
*
जोग धारे संभु अब लौं इकाकी ,संजोग बन्यो जइस दीप-बाती
जेहि लागि उमा जन्म धरि तपानी, हाथ मांगे आयो महा-वरदानी,
आज विश्वनाथ आय द्वार ठाड़ो ,जस लेहु आपुनो जनम सँवारो
गिरि, कन्या समर्पि देहु बर को ,देवि पूरना,संपूरन करो हर को !
*
Great creation !
जवाब देंहटाएंसृजनशीलता को प्रणाम..
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआपका लिखा पढ़ना किसी सौभाग्य से कम नहीं होता.
जवाब देंहटाएं४ दिन बाद भोले की बारात होगी..धूम-धाम होगी....इस बार मेरी बिटिया का जन्मदिन भी २० तारीख को है, बहुत खुश हूँ मेरी भी आराध्य देव है शिव ..लेकिन बिटिया की परीक्षा के चलते ज्यादा धूम धाम नहीं रहेगी..खैर आपकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा मन को...आभार
जवाब देंहटाएंबिटिया को बहुत स्नेह एवं आशीष ,आगत परीक्षा के लिये शुभ-कामनायें.
हटाएंएक नचारी हमारी तरफ़ से हमारी मातॄभाषा की/में
जवाब देंहटाएंहम नहि आजु रहब अहि आँगन
जं बुढ होइत जमाय, गे माई।
एक त बैरी भेल बिध बिधाता
दोसर धिया केर बाप।
तेसरे बैरी भेल नारद बाभन ।
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ ।।
पहिलुक बाजन डामरू तोड़ब
दोसर तोड़ब रुण्डमाल ।
बड़द हाँकि बरिआत बैलायब
धिया लय जायब पड़ाय गे माइ । ।
धोती लोटा पतरा पोथी
सेहो सब लेबनि छिनाय।
जँ किछु बजताह नारद बाभन
दाढ़ी धय घिसियाब, गे माइ। ।
भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
दिढ़ करू अपन गेआन ।
सुभ सुभ कय सिरी गौरी बियाहु
गौरी हर एक समान, गे माइ।।
धन्यवाद मनोजजी ,
जवाब देंहटाएंमुझे नचारी लिखने की प्रेरणा 'मैथिल-कोकिल' विद्यापतिसे ही मिली है .वे मेरे प्रिय कवियों में रहे हैं.
इस नचारी हेतु आभार !
मुझे तो शंभू की बारात के दर्शन हो रहे हैं ... बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपने भोले भंडारी के विवाह समारोह का सुन्दर द्रश्य रचा है इस रचना में |
जवाब देंहटाएंआशा
मैथिली,भोजपुरी आदि लोकभाषाओं पर भी आपका इतना अधिकार देख कर अचम्भित रह जाती हूँ।वाह!वाह!! वाह!!!इस मनमोहक नाचारी के माध्यम से मैंने तो शम्भु की बारात में सम्मिलित होकर पूरा आनन्द लिया।तदर्थ आभार स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि के पुण्य-पर्व पर इस अत्यन्त सामयिक एवं अनूठी अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक-बधाई!!
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-791:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
bahut sunder
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंलगा कि भोले भंडारी के ब्याह से अभी अभी लौटे हैं....
ये मेरा सौभाग्य है कि आपको पढ़ने का अवसर मिला..
अत्यंत मनमोहक!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नचारी है, बहुत सुन्दर!
बहुत ही भाव प्रवण कविता । .मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकमाल है ...
जवाब देंहटाएंकाश हम भी होते !
वाह!!!!!बहुत अच्छी प्रस्तुति,कमाल की रचना,....
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...सम्बोधन...
आपके इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुका हूं । मेरे नए पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपको आमंत्रित करता हूं । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंजोग धारे संभु अब लौं इकाकी ,संजोग बन्यो जइस दीप-बाती
जवाब देंहटाएंजेहि लागि उमा जन्म धरि तपानी, हाथ मांगे आयो महा-वरदानी,
आज विश्वनाथ आय द्वार ठाड़ो ,जस लेहु आपुनो जनम सँवारो
गिरि, कन्या समर्पि देहु बर को ,देवि पूरना,संपूरन करो हर को !
शिवजी को समर्पित एक अद्भुत रचना.......... आपकी रचना पठनीय तो है ही वन्दनीय भी है.
बहुत सुन्दर! क्या आप इन्हें गाती भी हैं? यदि हाँ, तो ऑडियो भी लगाइये न!
जवाब देंहटाएंBahut Sunder geet
जवाब देंहटाएं........
सुन्दर....स्मार्ट इंडियन की मंशा पूरी करें..हम भी प्रसन्न हो लेंगे.
जवाब देंहटाएंसमीर जी,अनुराग जी ,
जवाब देंहटाएंकाफ़ी पहले की बात है,तब उज्जैन मं थी.एक बार मुझे टाइटल मिला था 'प्रतिभा में प्रतिभा है लेकिन नहीं गला है.. '
..अब आगे मैं क्या कहूँ, आप समझ ही गये होंगे.
हाँ,एक बार राजेन्द्र स्वर्णकार जी ने मेरा एक लोक-गीत'गंगिया री, अति दूर समुन्दर' अपनी रुपहली आवाज़ में गा कर मुझे उसकी रिकॉर्डिंग भेजी थी .बहुत प्रसन्नता हुई थी.
अच्छा है। विद्यापति ने भी इस विषय पर बहुत लिखा है।
जवाब देंहटाएं