*
देख रही हूँ अपनी आँखों ,
युग को करवट बदलते.
कितना शोर था
कीचड़ में उछलते लोग
शोर ,छींटे ,बौखलाहटें ,
कितनी बार ,कितने रूप ;
और हर बार
और,और गिरावट .
*
उठा था कभी
एक परिव्राजक का शंखनाद -
"नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से,
भड़भूँजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से;
निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।"
झकझोर दिया था जिसने जन-मानस !
वह नरेन्द्र #था .
*
धार वही नामाक्षर
मिल गया प्रत्युत्तर .
निकल आया
हाट से, बाज़ार से,
सामान्य ही विशिष्ट बन,
माँ के प्रकाश -स्नान हेतु.
अपरिग्रही जीवन की आरती लिए !
*
लक्ष-लक्ष करांकित सहस्रमाली
अश्व-वल्गाएँ सँभाल,
रथ-चक्रों से तमस् विदारता ,
स्याही के धब्बे खँगारता,
रोशनाई घोल लिख दे ,
नये युग का उपोद्घात !
*
शमित हों सारे उत्पात ,
निर्मल हो गगन ,वायु ,
क्षिति ,जल-प्रवाह.
जाग उठे नया विश्वास ,
शुभमय हो , मंगलमय ,
अरुणोदय का नया उजास !
*
(# नरेन्द्र-स्वामी विवेकानन्द)
- प्रतिभा सक्सेना
अनुपम । एक एक भाव सच्चा निर्मल ,जैसे हम सबके हदय से निकला हो लेकिन भाषायी गरिमा की कोई समानता नही । पूर्ण विश्वास है कि आपके आशामय उद्गार मिथ्या नही होसकते ।
जवाब देंहटाएंगरिमामय अंदाज़ बधाई देने का ... आशा अनुरूप कार्य होगा आगे भी ऐसी आशा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वाह :)
जवाब देंहटाएंसच! जन मानस को इस तरह से झझकोरता युग भी देख रहा है युगंकर को.. इस शंख नाद में सब अपनी ध्वनि भी मिला रहे है तो उजास अवश्य फैलेगा..
जवाब देंहटाएंआशा जगाती सुंदर कविता..
जवाब देंहटाएंमाँ! इस कविता के भावों को हृदय में समाहित कर रहा हूँ. परिवर्तन की एक भोर जो परतंत्रता की बेड़ियों (जिसे जनता ने अपना आभूषण स्वीकार कर लिया था) को काटकर एक नवयुग के आगमन की सूचना दे रही है, स्वागत करता हूँ उसका!
जवाब देंहटाएंआपके शब्दों की बराबरी का सामर्थ्य नहीं मुझमें, अत: राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ:
वसुधा का नेता कौन हुआ, भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ,नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर नाम किया।
जब विघ्न सामने आते हैं,सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल, तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही, जाते हैं हमें जगाकर ही।
वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं।
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वन में प्रसून तो खिलते हैं, बागों में शाल न मिलते हैं।
सादर
बहुत सुन्दर .. इसके पीछे के भाव एवं कथ्य से मेरी पूर्ण सहमती है.. कविता की प्रस्तुति भी बहुत स्तरीय .. बहुत बहुत बधाई .. आशा की जाए की करोड़ो , करोड़ो जनों की आकांक्षाएं एक दिन पूर्ण हो और सभी जन सम्मान के साथ समता के स्तर पर जी सकें ..
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक...... ये बदलाव सच में सकारात्मक और उम्मीदों से भरा है
जवाब देंहटाएंमोहक अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंभारतमाँ को गौरवान्वित करने वाले यशस्वी सुपुत्र श्री नरेन्द्र मोदी का अनूठा अभिनन्दन मन को नये उदास एवं विश्वास से भर गया । विश्वास है कि उनका वर्चस्व देश को पुन: महिमामंडित कर देगा । मन मुग्ध हो गया ।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद !!
युग बदल रहा है भारत का उत्थान हो । एक नरेन्द्र ( स्वामी विवेकानंद ) ने लोगों को जगाने का काम किया था तो आज दूसरा नरेन्द्र भी लोगों को जागरूक कर रहा है । आशाओं से भरी सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और गरिमामयी रचना । पूरे देश को आशायें हैं इस नरेन्द्र से .......बुझे हुए दीपक फिर जल उठे हैं । आशायें पुनः प्राणवान हुयीं ....आपका आशीर्वाद फलीभूत हो प्रतिभा दीदी जी ! प्रणाम स्वीकार करें ।
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