( जीवन-धारा के प्रवाह में माँ के साथ जिये हुए तरल-सरल अंतरंग पल , पुत्री के स्मृति-भँवर में अनायास उमड़ कर कुछ करुण-मधुर संवेदनाएं जगा जाते हैं. उसी की अभिव्यक्ति ,मेरी मित्र श्रीमती शार्दुला नोगजा रचित यह कविता , सहयोगी जनों के आस्वादन हेतु प्रस्तुत है -)
छापे माँ तेरे हाथों के -
कोहबर की दीवारों जैसे
छापे माँ तेरे हाथों के -
कोहबर की दीवारों जैसे
मेरे अन्तर के आँगन में ,
धुँधले से, पर अभी तलक हैँ
छापे माँ तेरे हाथों के !
*
कच्चे रंग की पक्की स्मृतियाँ
सब कुछ याद कहाँ रह पाता ,
स्वाद, खुशबुएँ, गीतों के स्वर
कतरे कुछ प्यारी बातोँ के !
*
हरदम एक मत कहाँ हुये हम ,
बहसों की सिगड़ी में तापीं
दोपहरों के ऋण उतने ही
जितने स्नेहमयी रातों के!
*
छापे माँ तेरे हाथों के,
कतरे कुछ प्यारी बातोँ के !
*
सादर
शार (शार्दुला) .
शार (शार्दुला) .
११ मई '१४
अद्भुत रचना पढ़वाई ....
जवाब देंहटाएंकच्चे रंग की पक्की स्मृतियाँ ...वाह
माँ और बेटी का रिश्ता एक अनोखा रिश्ता होता है... मेरी इकलौती बहन और अम्मा को देखता हूँ साथ ही इन दिनों अकेली रहती हुई अपनी पुत्री और पत्नी को देखता हूँ. इस कविता के हर छन्द में उस सम्बन्ध की खुशबू समाई है!
जवाब देंहटाएंपल-पल हर पुलक से प्रतिबिंबित होती है माँ .. बहुत ही अच्छी लगी ..शार्दुला जी को बधाई..
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार 14 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आभारी हूँ !
हटाएंयह रचना शार्दुला नोगजा जी की है ,मेरी नहीं ,कृपया उन्हीं का नामोल्लेख करें ,धन्यवाद.
pratbh ji
जवाब देंहटाएंaapki mitra shardula ji ki maa par likhi rachana achchhi hai
untak kripya mera sadhuvad pahuchayeai
mere blog
http://drramkumarramarya.blogspot.spot
par awasya padharen..
अद्भुत उद्गार एक बेटी के अपनी प्यारी माँ के लिये । सच तो यह है कि यह हर बेटी के अन्तर का आवाज है । धन्य है वह माँ और उनकी बेटी ।
जवाब देंहटाएंदिल को छूते हुए ... अंतस को भिगोते हुए होती हैं कुछ पंक्तियाँ ... माँ के अकेले दिनों में जितना बेटियाँ माँ के करीब होती हैं उतना कोई नहीं ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना माँ की ममता की बात ही निराली है सदा यादगार
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
जवाब देंहटाएंमाँ-बेटी के भावों का स्पर्श दिख रहा है अतीत के आँगन में.…
ममत्व भरी बहुत ही सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
:-) माँ से अच्छा कौन होगा , उससे अधिक ऋण किसका?
जवाब देंहटाएंश्रद्धा से शीश नवाया मैंने भी.
सुन्दर ममतामयी रचना!
जवाब देंहटाएंममता से भरी सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअसरदार रचना , न भूलने वाली ! शार्दूला के ठिकाने का पता देते तो अच्छा रहता !
जवाब देंहटाएंइनका नाम राकेश खंडेलवाल के ब्लॉग पर देखा था , रचना आज देखी ! आभार आपका !
शार्दुला जी सिंगापुर में रहती हैं ,लेकिन दुनिया भर में कब कहाँ होंगी ये शायद ख़ुद ही न जानती हों .वे ब्लाग भी नहीं लिखतीं ,कभी ईकविता पर आता-जाती मिल सकती हैं .
जवाब देंहटाएंक्या बात है, वाह बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआदरणीया प्रतिभाजी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम! अपने उत्कृष्ट ब्लॉग पर मुझे जगह देने के लिए हार्दिक आभार! आपके सभी पाठकों का अभिनन्दन जिन्होंने इतना उत्साह वर्धन किया. आपने सच कहा, ठिकाना कहाँ है - अभी आस्ट्रेलिया से लौटी हूँ और मलेशिया की तैयारी है :)
माँ बेटी के अंतस को माँ के हाथों के छापे में अभिव्यत कर शार्दूला जी ने इस रिश्ते को रेशमी डोर से बाँध दिया है । आभार सुन्दर भावोंसे रचोत रचना पढवाने के लिए ।
जवाब देंहटाएं