रविवार, 16 जून 2013

पितृत्व

*
नहीं, 
मैं नहीं  एकान्त निर्मात्री ,
इस सद्य-प्रस्फुट जीवन की ,
रचना मेरी, आधान तुम्हारा 
सँजो कर गढ़ दिया मैंने नया रूप .
प्रेय था !
*
पौरुष का माधुर्य छलक उठा जब
नयनों में वात्सल्य बन ,
जैसे चाँदनी में नहाई बिरछ की डाल ,
स्निग्ध कान्ति से दीप्त तुम्हारा मुख !
मुग्ध हो गई  मैं .
*
 कृतज्ञ दृष्टि कह गई -
'जहाँ मैं अगुन-अरूप-अव्यक्त रहा,
तुमने गृहण किया.
प्रतिष्ठित कर दिया मुझे!
अपने से  पार 
पुनर्जीवन पा गया मैं ,
तुम्हारे रचे प्रतिरूप में ! '
*
सृष्टि का श्रेय आँचल में समाये  
मुदित परितृप्ति का प्रसाद ,
मिल गया मुझे ,
और देहानुभूतियों से परे,
मन की विदेह-व्याप्ति ! 
   * 
- प्रतिभा सक्सेना.





20 टिप्‍पणियां:

  1. पिता के लिये बहुत ही सुंदर भाव, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. अत्यंत गहन एवँ उत्कृष्ट रचना ! पितृत्व की यह अनुभूति हर स्थूल आनंद से परे है ! बहुत सुंदर !

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  3. बहुत सुन्दर भाव, शब्द शब्द में टपकता स्नेह।

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  4. बहुत सुंदर ... पितृत्व को सार्थक रच दिया है ।

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण पितृत्व की अभिव्यक्ति.
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post पिता
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  6. पिरत्व का भाव जो अधिकतर मुखर नहीं हो पाता ... आपने सहज ही लिख दिया ... नमन है मेरा ...

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  7. माता जी प्रणाम तीसरे अन्विति में पिता के अद्भुत रूप के दर्शन हुए प्रणाम

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  8. अद्भुत भाव ....बहुत सुंदर रचना .....प्रणाम स्वीकारें ...!!

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  9. वाह....शब्दों की अद्भुत जादूगरी.....भावों को गढ़ते, एक-दुसरे में गुंथे हुए से ......

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  10. बहुत सुन्दर अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर।

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  11. यदि भाषा की सुंदरता महसूस करने का मन करे तो आपको पढ़ना चाहिए ..
    प्रणाम !

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  12. मे नही जानता क्या कहना चाहिए
    पिता का हृदय दर्शन
    उच्च कोटि का काव्य है महोदया ।

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  13. adbhut !! mugdh ho gaya mann bhi aur aatma bhi...ek anokha sa aanand ghul gaya mujhme is rachna ko padhne ke baad..jitni baar padha ..maadhurya badhta hi gaya...kamaal kee anubhooti hui..jo maine kabhi anubhav hi nahin ki thi..actuallly kabhi socha hi nahin ki mamta ke saath saath pitritatva bhi itna madhur aur snehil ho sakta hai :)
    dher sa aabhaar is meethi rachna ke liye..:)

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