बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

नारीत्व - एक गाली .


नारी-जन्म एक गुनाह  ,
आजीवन-दंड का प्रावधान !
कितना कुछ है दुनिया में
 सुख-सुविधा के लिये आदमी के ,
जिसमें यह  भी एक वस्तु ,
 शुरू से छँटती-ढलती
उसी के निमित्त ,
स्वयं पर लादे निषेधों का विधान !
*
नारीत्व -
एक गाली,
 आदमी के मुँह चढ़ी ,
 अपनी सामर्थ्य
प्रमाणित करने को !
मन की नालियों का बहाव ,
 उमड़-उमड़ फूट  निकलता है ,
अपनी कुत्सा औरों पर छींटते !
*
औरत, एक खिलौना
मन बहलाने को ,
कमज़ोर  माटी का भाँडा -
सारी छूत समेटे .
बस में न रहे , तोड़ फेंको .
अधिकारी हो न ,
शक्ति-सामर्थ्य संपन्न तुम !
*

18 टिप्‍पणियां:

  1. sach kaha aapne nari ki to yahi gati hai...
    maine bhi pichhli apni ek post me aisa hi kuchh likha...

    सब सहे ये नारी, फिर भी कहें
    नारी नरक का द्वार है
    माध्यम बनी क्या आज नारी
    सामर्थ्य दिखाने के लिए ?

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  2. निर्वाह सहजीवन में ही है, यह दोनों को ही समझना होता है..

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  3. एक नारी के लिए ज़माना कभी नहीं बदलता वो जैसा आज है वैसा ही हमेशा रहेगा। यही नारी जीवन का एक कड़वा सच है और यही रहेगा

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    उत्तर
    1. पल्लवी जी ,
      यह कड़वा सच बदल सकता है अगर नारी अपनी क्षमता को जान ले और उसका उचित उपयोग करे .भिन्न समाजों में इसे आप अनेक रूपों में देख सकती हैं .हमारे यहाँ भी तो एक दर्गा और एक जिसे हमेशा लाचार, रोता दिखाया जाता है

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  4. अनेक बड़ियों को निडर होकर तोडना होगा। एक मुक्त नारी अन्यों की भी मुक्ति का साधन बनती है।

    जवाब देंहटाएं
  5. नारी-जन्म एक गुनाह ,
    आजीवन-दंड का प्रावधान !
    कितना कुछ है दुनिया में
    सुख-सुविधा के लिये आदमी के ,
    जिसमें यह भी एक वस्तु ,
    शुरू से छँटती-ढलती
    उसी के निमित्त ,
    स्वयं पर लादे निषेधों का विधान !
    सब कुछ कह डाला इन पंक्तियों ने !

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  6. उच्च चेतना के स्तर पर यह कुंठा नहीं रहती एक प्रश्न के उत्तर में माँ का बेटी को प्रबोध ...

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  7. ओह , प्रतिभाजी हर शब्द गहरे उतर गया ...... साथ साथ चलने का दिन कब आएगा ..?

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  8. आपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

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  9. ह्रदयस्पर्शी रचना..
    कटु सत्य को उजागर करती..

    आभार...

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  10. शकुन्तला बहादुर12 फ़रवरी 2012 को 10:47 pm बजे

    कटु मार्मिक सत्य है,जो मन को वितृष्णा से भर देता है। किन्तु मुझे लगता है कि अब कहीं कहीं स्थिति में कुछ सुधार का आभास सा हो रहा है।

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  11. बहुत मार्मिक शब्द-चित्र हैं प्रतिभा जी.

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  12. मन की नालियों का बहाव ,
    उमड़-उमड़ फूट निकलता है ,
    अपनी कुत्सा औरों पर छींटते !

    समाज की कटु सच्चाई को कहती विचारणीय रचना

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  13. nar krit shastro ke bandhan sab hai nari ko hi lekar,
    apne liye sabhi suvidhayen pahle hi kar baithe nar.

    जवाब देंहटाएं
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