सुकृति -सुमंगल मनोकामना ,पूरो भारति!
नवोन्मेषमयि ऊर्जा ,ऊर्ध्वगामिनी मति-गति !
*
तमसाकार दैत्य दिशि-दिव में , भ्रष्ट दिशायें ,
अनुत्तरित हर प्रश्न , मौन जगतिक पृच्छायें ,
राग छेड़ वीणा- तारों में स्फुलिंग भर-भऱ ,
विकल धूममय दृष्टि - मंदता करो निवारित !
मनोकामना पूरो भारति !
*
निर्मल मानस हो कि मोह के पाश खुल चलें ,
शक्ति रहे मंगलमय,मनःविकार धुल चलें .
अ्मृत सरिस स्वर अंतर भर-भर
विषम- रुग्णता करो विदारित !
मनोकामना पूरो भारति !
*
हो अवतरण तुम्हारा जड़ता-पाप क्षरित हो ,
पुण्य चरण परसे कि वायु -जल-नभ प्रमुदित हो.
स्वरे-अक्षरे ,लोक - वंदिते ,
जन-जन पाये अमल-अचल मति !
मनोकामना पूरो भारति !
*
मैं तो फिर से सबसे पहले आ गयी..:D
जवाब देंहटाएंऔर बहुत बहुत प्रसन्न हुई कविता पढ़कर...सब कुछ एक ही कविता में समेट लिया आपने..ऐसी मनोकामनाएँ अवश्य पूरी होंगी...पूरी होनी ही चाहिए..
नमन माँ भारती को...:)
आभार कविता ke liye....ऐसा कुछ पढ़ना ही चाह रहा था मन...santushti हुई हृदय को.. :)
अद्भुत पोस्ट |
जवाब देंहटाएंनिश्चय पूरी हो नव मंगल स्तुति अबकी,
जवाब देंहटाएंआवश्यकता से अधिक भरे मन-गगरी सबकी,
बहुत सुन्दर आकांक्षा...बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबंसतोत्सव की अनंत शुभकामनाऍं
जवाब देंहटाएंतमसाकार दैत्य दिशि-दिव में , भ्रष्ट दिशायें ,
जवाब देंहटाएंअनुत्तरित हर प्रश्न , मौन जगतिक पृच्छायें ,
राग छेड़ वीणा- तारों में स्फुलिंग भर-भऱ ,
विकल धूममय दृष्टि - मंदता करो निवारित !
मनोकामना पूरो भारति ....kitni sundar rachna....sundr shbdon se saji ,maa avashya prsnn huee hogi .... bdhai...
गौ रक्षा करने की जाग्रति हेतु एक ब्लॉग का निर्माण किया है ,आप सादर आमंत्रित है सदस्य बनने और अपने विचार /सुझाव/ लेख /कविता रखने के लिए ,अवश्य पधारियेगा.......
जवाब देंहटाएंhttp://gauvanshrakshamanch.blogspot.com/
रचना जीवन की अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंwelcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
नमन कर इन शब्दों को, वंदना में मैंने भी शीश नवाया।
जवाब देंहटाएंइस स्तुति के लिए नमन ..
जवाब देंहटाएंआदरणीया प्रतिभा जी
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी को नमन !
बहुत दिनों के बाद आपकी कविता पढ़ पाया.
मन आनंदित हो उठा !
सादर
प्रताप
निर्मल मानस हो कि मोह के पाश खुल चलें ,
जवाब देंहटाएंशक्ति रहे मंगलमय,मनःविकार धुल चलें .
अ्मृत सरिस स्वर अंतर भर-भर
विषम- रुग्णता करो विदारित !
मनोकामना पूरो भारति !...ab isse behtar kya
हो अवतरण तुम्हारा जड़ता-पाप क्षरित हो ,
जवाब देंहटाएंपुण्य चरण परसे कि वायु -जल-नभ प्रमुदित हो.
स्वरे-अक्षरे ,लोक - वंदिते ,
जन-जन पाये अमल-अचल मति !
मनोकामना पूरो भारति !
Bahut hi sundar rachana bilkul sangrhneey.... sadar abhar Pratibha ji.
Awesome !...Great creation..
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