*
कब से ,
छटपटा रही हूँ
कुचली हुई विरूप देह के पंजर में .
रोम-रोम जकड़ा
वहीं के वहीं जड़ीभूत
आहत मन ,
पल-पल तड़पते
प्राणों की रगड़.
*
सैंतीस साल !
दारुण यंत्रणा ,
सच पर अड़ने का ,
नारी होकर नर के आगे
न झुकने का दुस्साहस .
परिणाम ?
*
परिणाम ?
यही -मैं ,
कभी रही थी -
अरुणा शानबाग.
आज उदाहरण मात्र !
टू़टी -फूटी खंडित देह की कारा ,
वही भयंकर भूमिका
निश्चेत, जकड़ा मन ,
न जीवन न मृत्यु,
अहर्निश ,असह्य !
*
उदाहरण बनी पड़ी हूँ ,
सँजोओगे कब तक ,
मानवी देह का उपहास ?
या नारीत्व ही एक शाप !
सिमटी-लिपटी ममी हूँ ,
या ज़िन्दा लाश ?
*
दे दो अब छुटकारा !
मत बाँधे रहो
साँसों की जर्जर डोर ,
कटे इस जनम का पाप,
बस मुक्त कर दो ,
मुक्त कर दो अब मुझे !
*
कब से ,
छटपटा रही हूँ
कुचली हुई विरूप देह के पंजर में .
रोम-रोम जकड़ा
वहीं के वहीं जड़ीभूत
आहत मन ,
पल-पल तड़पते
प्राणों की रगड़.
*
सैंतीस साल !
दारुण यंत्रणा ,
सच पर अड़ने का ,
नारी होकर नर के आगे
न झुकने का दुस्साहस .
परिणाम ?
*
परिणाम ?
यही -मैं ,
कभी रही थी -
अरुणा शानबाग.
आज उदाहरण मात्र !
टू़टी -फूटी खंडित देह की कारा ,
वही भयंकर भूमिका
निश्चेत, जकड़ा मन ,
न जीवन न मृत्यु,
अहर्निश ,असह्य !
*
उदाहरण बनी पड़ी हूँ ,
सँजोओगे कब तक ,
मानवी देह का उपहास ?
या नारीत्व ही एक शाप !
सिमटी-लिपटी ममी हूँ ,
या ज़िन्दा लाश ?
*
दे दो अब छुटकारा !
मत बाँधे रहो
साँसों की जर्जर डोर ,
कटे इस जनम का पाप,
बस मुक्त कर दो ,
मुक्त कर दो अब मुझे !
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सच में, यह दारुण यंत्रणा ही तो है।
जवाब देंहटाएंअसह्य वेदना में घनीभूत ममी ही तो रह गया है अरुणा जी का शरीर।
विडम्बना यह कि मांगे मुक्ति भी नहीं मिल रही।
अरुणा जी की व्यथा को मर्मस्पर्शी शब्दों में उकेर दिया है ...
जवाब देंहटाएंउफ़ ...
जवाब देंहटाएंकष्ट कारक है यह पढना तक ....
आखिर कब तक चलेगा यह सब !
जवाब देंहटाएंइंसानियत की कोई खुशबू बची है क्या ? यह यक्ष प्रश्न तब तक हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा जब तक अरुणा शानाबगों पर ढाए जा रहें जुल्म की सिसकती कहानियां ख़त्म नहीं होतीं !
कविता ने मन को झकझोर दिया !
bahut samvedansheel vyatha.
जवाब देंहटाएंबेहद दर्दनाक सच्चाई.
जवाब देंहटाएंनये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव.
उन्नति के मार्ग में बाधक महारोग - क्या कहेंगे लोग ?
हम्म...... इस कविता के मर्म से ज़्यादा ध्यान आपके इस प्रयास ने आकर्षित किया........आप लेखिका हैं..कवियत्री हैं....और अपनी कलम का बहुत सकारात्मक उपयोग किया है सही दिशा में........सच कहूं तो ये कविता यहाँ देखकर ह्रदय में आशा के कुसुम खिल रहे हैं..........शायद दुनिया के किसी किसी कोने में आप जैसे और लोग भी ऐसे ही प्रयास अपने अपने स्तर पर कर रहे हों... ....और क्या पता सबके सम्मिलित प्रयास एक दिन अरुणा जी और ऐसे ही दूसरे मरीजों के लिए मुक्ति का या यूँ कहूं न्याय का ठोस आधार ही बन जाएँ.....और हमारी न्यायपालिका भी सूझबूझ से काम लेते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय की तरफ कदम बढ़ा सके...!
जवाब देंहटाएंमैंने बहुत करीब से देखा है ऐसे मरीजों और साथ साथ उनके परिजनों का भी जीवन.....बिना स्वयं पर बीते हम समझ भी नहीं सकते.........केवल डॉक्टर होने के नाते ही नहीं वरन एक इंसान होने के कारण भी आपकी कविता में अरुणा जी की स्थिति के मार्मिक चित्रण के बजाय दृष्टि ने कविता की आत्मा का ज़ोरदार समर्थन किया......और शायद इसी लिए स्वभाव के एकदम विपरीत व्यवहार करते हुए...मैं मुस्कुरा उठी कविता पढ़कर.....
बहुत आभार है प्रतिभा जी प्रभावशाली लेखन के लिए.......और कविता में वर्णित मानवता के अंश को नमन है...!
(व्यक्तिगत तौर पर एक बात कहूँगी....तफसील से पिछले दिनों ''इच्छा मृत्यु'' पर कानूनी जानकारों एवं वकीलों,वरिष्ठ चिकित्सकों और ऐसे मरीजों के परिजनों के विचार पढ़े थे एक अखबार में....उनमे से क़ानून वाला हिस्सा बहुत सशक्त लगा..क्यूंकि वहां वरिष्ट न्यायधीशों और वकीलों के वक्तव्य बहुत प्रभावी और बेफिक्र कर देने वाले थे...''कि अगर सही तरह से ये क़ानून बना दिया जाए तो इसका दुरूपयोग कम से कम किया जा सकता है....और जिन्हें वाक़ई इस तरह की मुक्ति की आवश्यकता है....उनके साथ हम न्याय कर सकेंगे.....'' उम्मीद है आपने पढ़ा होगा...और यदि नहीं तो एक बार ज़रूर देखिएगा....)
दिल को दहलाने वाली इस दारुण यन्त्रणा एवं अन्तर्व्यथा की गहन मार्मिक अभिव्यक्ति ने मन को विक्षुब्ध कर दिया और नेत्रों को सजल।
जवाब देंहटाएंभगवान अरुणा जी को इस कष्ट से मुक्ति प्रदान करें और उनकी आत्मा को चिर शान्ति दें।
मुक्ति की है चाह सबको,
जवाब देंहटाएंसब बँधे हैं भँवर में।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
अरुणा -त्रासदी के मानवीय पक्ष पर चिंतन करती रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत गहराई से सोचा है आपनी अरुणा और उसके परिवार के दर्द को ...
आभार !
गहन वेदना से भरी रचना -
जवाब देंहटाएंसोचने पर मजबूर कर रही है -
कितनी गहराई तक पहुँच गए हैं भाव!
जवाब देंहटाएं