।।ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः।।
कायस्थ -
श्री चित्रगुप्त का अंशज जो मसिजीवी,विधि का अनुगाता.
पुस्तिका सहचरी,वर्ण मित्र,लेखनि से जनम-जनम नाता,
जीवन अति सहज,निराडंबर अनडूबा लोभों-लाभों में ,
अनुशासन शिक्षा संस्कार स्वाधीन-चेत रह भावों में.
व्यवहार,आचरण, खान-पान ,काया संसारोचित स्वभाव,
पर अंतर का अवधूत, परखता अपने ग्राह्य-अग्राह्य सतत,
सब में रह कर भी सबसे ही कुछ विलग भिन्न-सा रह जाता,
इस चतुर्वर्ण में गण्य न जो, कायस्थ वही तो कहलाता !
- प्रतिभा
(चित्र- गूगल से साभार)
आपकी अभिव्यक्तियां लाजवाब होती हैं। प्रणाम।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-11-2020) को "धीरज से लो काम" (चर्चा अंक- 3889) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,उं नमो भगवते श्री चित्रगुप्ताय नमः
जवाब देंहटाएंकायस्थ की बहुत अच्छी परिभाषा.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना - - मेरी पत्नी कायस्थ समाज से ताल्लुक़ रखतीं हैं, और बंगाल की सभ्यता व संस्कृति में कायस्थ समाज का सब से बड़ा योगदान है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंनमन कायस्थ जातिमासाध्यम।।।।
जवाब देंहटाएंवाह ! कायस्थ की समुचित सामाजिक, सांस्कृतिक, अभिनव परिभाषा
जवाब देंहटाएंवाह ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंकमाल की जन्म कुण्डली लिख दी आपने कायस्थ समाज की ...
बहुत बहुत सराहनीय |
जवाब देंहटाएंBahut sunder mam
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कायस्थ समाज को नमन
जवाब देंहटाएंnice post, thanks, sharing for this post
जवाब देंहटाएंZee Talwara
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