सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

विसर्जन के फूल

विसर्जन के फूल
*
फूल उतराते रहे दूर तक,
 महासागर के अथाह जल में. 
समा गये संचित अवशेष
कलश से बिखर हवाओं से टकराते,
सर्पिल जल-जाल में
 विलीन हो गए .
*
अपार सिंधु की
उठती-गिरती लहरों में
ओर- छोरहीन,
अनर्गल पलों में परिणत,
बिंबित होते  बरस- बरस,
जैसे अनायास पलटने लगें
एल्बम के पृष्ठ.
 *
समर्पित फूल
जल के वर्तुलों में
चक्कर खाते, थरथराते, थमते
लौट आने के उपक्रम में
फिर-फिर पलटते
उमड़ती लहरों के साथ.
अनजान तट बह गए.
*
नाव की पहुँच ,
आगे बस पटाक्षेप.
अरूप-अनाम निष्क्रम
गहन प्रशान्त के अतल
अपरम्पार में,
शेष का विसर्जन .
अराल सिन्धु-छोर  ,
आगे कुछ नहीं !
*





9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सजीव चित्रण...विसर्जन के फूलों का यही तो हश्र होना है..जीवन भी ऐसा ही है अभी जो आँखें प्रेम लुटाती हैं कुछ पल बाद मुंद जाएँगी जब,विलीन हो जायेगा उनका प्रकाश किसी महाप्रकाश में..

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-02-2019) को "बहता शीतल नीर" (चर्चा अंक-3239) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  4. विसर्जन के कुछ फूलों के सहारे मन में दबी भावनाओं का विसर्जन ... लौटने पलटने के प्रयास के साथ सिन्धु छोर पर अंत आशेष ...
    कितना कुछ कह दिया है इन लघु रचनाओं के माध्यम से ... अनंत में मिल के तो अंततः सब एकाकार हो जाना है ...

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