*
कृष्ण ,तुम्हारे श्री-चरणों में , मेरे गुण औ दोष समर्पित !
जनम भटकते बीता,अब बस इतना करो कि मिटें द्विधायें,
यह गठरी अब तुम्हीं सँभालो, करो वही जो तुम्हें सुहाये ,
किया-धरा सब तुम्हें सौप हों जायें राग-विराग विसर्जित !
क्षमता इतनी दो कि निभा जाऊं जो कुछ हिस्से में आया ,
डोर तुम्हीं से संचालित ये सभी तुम्हारा रास रचाया ,
मेरे भाव-अभाव तुम्हारे , तुमसे रचित तुम्हीं से प्रेरित !
अंतर्यामी ,तुम ही समझो मेरा कौन और, जो जाने ,
परखनहारे ,तेरे आगे टिक पाये कब कौन बहाने .
दोनों खाली हाथ जोड़,बढ़ जाऊं आगे हो कर थिर-चित् !
*
- प्रतिभा.
कृष्ण ,तुम्हारे श्री-चरणों में , मेरे गुण औ दोष समर्पित !
यह गठरी अब तुम्हीं सँभालो, करो वही जो तुम्हें सुहाये ,
किया-धरा सब तुम्हें सौप हों जायें राग-विराग विसर्जित !
क्षमता इतनी दो कि निभा जाऊं जो कुछ हिस्से में आया ,
डोर तुम्हीं से संचालित ये सभी तुम्हारा रास रचाया ,
मेरे भाव-अभाव तुम्हारे , तुमसे रचित तुम्हीं से प्रेरित !
अंतर्यामी ,तुम ही समझो मेरा कौन और, जो जाने ,
परखनहारे ,तेरे आगे टिक पाये कब कौन बहाने .
दोनों खाली हाथ जोड़,बढ़ जाऊं आगे हो कर थिर-चित् !
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- प्रतिभा.
बहुत खूबसूरत कलम को प्रणाम !
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, वलेंटाइन डे पर वन विभाग की अपील “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार आपका!
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-02-2018) को 'रेप प्रूफ पैंटी' (चर्चा अंक-2876) (चर्चा अंक-2875) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर दिल से निकली प्रार्थना..तथास्तु !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर! प्रणाम!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
जवाब देंहटाएंउम्दक पंक्तियां
जवाब देंहटाएंनमन भाव से कितना कुछ समर्पित किया इन शब्दों ने ... काश इस विनीत भाव को हर इंसान समझ सके ... जीवन सुखी हो जाये ...
जवाब देंहटाएंsidhe dil nikli panktiyan
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