*
कूड़े के ढेर पर
बिखरा पड़ा कितना सामान,
किसी ज्योनार का फिंका खाना तमाम.
जूठन लगी पेपर प्लेटें,
पिचकी बोतलें, गिलास,
पालिथीन की ,मुड़ी-चुड़ी थैलियाँ .
और बहुत-कुछ एक साथ.
मक्खियों के संग
मँडराती खट्टी-सी गंध.
दो बच्चे ,उम्र आठ-दस बरस ,
कंधे पर झोली टाँगे ,छडी़ से मँझा रहे हैं
बजबजाते अंबार को.
पतली-पतली टाँगों से फलाँग-फलाँग
छड़ी से उकत-पुकत कर रहे हैं ढेर.
उठाते ,कुछ खाते कुछ झोली में डालते,
चिपकते हाथ पीछे पोंछते
टुकड़ों में तृप्ति बटोरते,
हँसते हैं.
(काश ,पहले मिल गया होता !)
किसने फेंका ?
हिसाब चुकाना पड़ेगा एक दिन.
कितना समेटा, बढ़-चढ़ के जोड़ लिया
और बर्बाद कर दिया पल भर में.
बहुत तृप्त हुआ मन ?
पर यहाँ हर चीज़ का,
हरेक का हिस्सा तय है.
एक-एक अन्न जतन से सँजोती है धरती ,
पूरे मौसम की फ़सल .
फोकट में नहीं मिलता अन्न-जल !
(ईश्वर न करे कभी तुम्हारी संतान को तरसना पड़े यों ही.)
याद रखना -
समय बख्शता नहीं किसी को,
हिसाब पूरा कर छोड़ता है !
*
(कुछ दिनों की छुट्टी)
बिखरा पड़ा कितना सामान,
किसी ज्योनार का फिंका खाना तमाम.
जूठन लगी पेपर प्लेटें,
पिचकी बोतलें, गिलास,
पालिथीन की ,मुड़ी-चुड़ी थैलियाँ .
और बहुत-कुछ एक साथ.
मक्खियों के संग
मँडराती खट्टी-सी गंध.
दो बच्चे ,उम्र आठ-दस बरस ,
कंधे पर झोली टाँगे ,छडी़ से मँझा रहे हैं
बजबजाते अंबार को.
पतली-पतली टाँगों से फलाँग-फलाँग
छड़ी से उकत-पुकत कर रहे हैं ढेर.
उठाते ,कुछ खाते कुछ झोली में डालते,
चिपकते हाथ पीछे पोंछते
टुकड़ों में तृप्ति बटोरते,
हँसते हैं.
(काश ,पहले मिल गया होता !)
किसने फेंका ?
हिसाब चुकाना पड़ेगा एक दिन.
कितना समेटा, बढ़-चढ़ के जोड़ लिया
और बर्बाद कर दिया पल भर में.
बहुत तृप्त हुआ मन ?
पर यहाँ हर चीज़ का,
हरेक का हिस्सा तय है.
एक-एक अन्न जतन से सँजोती है धरती ,
पूरे मौसम की फ़सल .
फोकट में नहीं मिलता अन्न-जल !
(ईश्वर न करे कभी तुम्हारी संतान को तरसना पड़े यों ही.)
याद रखना -
समय बख्शता नहीं किसी को,
हिसाब पूरा कर छोड़ता है !
*
(कुछ दिनों की छुट्टी)
सच ही तो है ... सामान्य गति से चलने वाला समय हर पल का हिसाब रखता है और समय आने पर माँगता है उसका हिसाब ... हर क्षणिका एक प्रश्न बैन कर जवाब माँगती है ...
जवाब देंहटाएंसही लिखा आपने , जवाब देना होगा संसाधन बचा कर रखें मानव को अभी बहुत दूर जाना है !
जवाब देंहटाएंसंभल जाओ इससे पहले कि समय अपना रूप दिखाए.
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉगिंग दिवस की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसमय हिसाब लेता ही है
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएं#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०३८
हाँ ...समय एक सा कहाँ रहता है ? सचेत करते भाव
जवाब देंहटाएंअन्तर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स डे की शुभकामनायें .....
जवाब देंहटाएंसही कहा लेकिन हम तो कहेंगे
जवाब देंहटाएंताऊ के डंडे ने कमाल कर दिया
ब्लोगर्स को बुला कमाल कर दिया
#हिंदी_ब्लोगिंग जिंदाबाद
यात्रा कहीं से शुरू हो वापसी घर पर ही होती है :)
मम्मी आपने तस्वीर खींच दी है... मैंने एक पोस्ट लिखी थी इसी विषय पर बहुत पहले.
जवाब देंहटाएंमार्मिक !
जवाब देंहटाएंसही कहती हैं आप ।
जवाब देंहटाएंतभी कहते हैं न कि अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन article लिखा है आपने। Share करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 1 जनवरी 2018 के नववर्षीय विशेषांक के लिए लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
यथार्थ का रंग रूप बताती रचना.
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनायें.
यथार्थ का रंग रूप बताती रचना.
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनायें.
वाह!!बहुत खूब लिखा ....।
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