रविवार, 4 जून 2017

माँ -


*
 थक गई है माँ ,
 उम्र के उतार पर लड़खड़ाती,
 अब समय के साथ चल नही पाती .
 बेबस काया पर
बड़प्पन का बोझ लादे,
झुकी जा रही है माँ. 
*
त्याग के, गरिमा के ,पुल बाँधे, 
 चढाने बैठे हैं लोग
 पार नहीं पाती, 
 घिसी-गढ़ी मूरत देख अपनी 
जड़ सी हो जाती मा्ँ, 
दुनिया के रंग बूझती 
चुपचाप झुराती है .

सुविधाओं की दुराशा ले 
दुविधाओं में फँसी ,
निस्तार न पा, 
गुहराती,' हे,भगवान ,मेरे कागज कहाँ खोये हो , 
निकालो अब तो .'
किसी और से 
कुछ कह नहीं पाती,माँ. 
*


9 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar abhivyakti ma ka vyaktitwa koi samajh nahi pata , ek avran odhe rahati hai ma . badhiya sarthak post

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  2. बहुत सुन्दर वर्णन ,जीवन से संघर्ष करती एक माँ की ,आभार। "एकलव्य"

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  3. माँ झुकने के बाद भी गरिमामय है ... सुन्दर है रूपवती है ... उसकी छवि शीतल है ... पर उसका तिरस्कार या उसे स्वयं के बारे में ऐसा सोचना पड़े तो व्यर्थ है जीना ...

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  4. माँ कैसे थकेगी ? कष्ट उसके पास आकर राहत पाएंगे ,मंगलकामनाएं !

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  5. जीवन की कटु सच्चाई..जरावस्था का यथार्थ वर्णन..

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  6. मर्मस्पर्शी .... माँ यूँ ही सब कुछ सहेजते सहेजते खुद बिखर जाती है

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  7. त्याग और गरिमा के पल बांधे माँ कभी नहीं थकती ...बहुत खूबसूरत रचना !

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  8. माँ जिसने सब कुछ साधा हो काया की विवशता से कितनी बेबस हो जाती है ....

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