ये मेरे भारत के सपूत अब हिन्दी पढ़ना भूल गए ,
हिन्दी की गिनती क्या जाने, वो पढ़े पहाड़े भूल गए !
सारे विशेष दिन भूल गए त्यौहार कौन सा कब होता,
क्रिसमस की छुट्टी याद कि जैसे पट्टी पढ़ लेता तोता ,
लल्ला-लल्ली से ज्यादा अपने लगते हैं पिल्ला-पिल्ली ,
अंग्रेजी,असली मैडम है ,हिन्दी देसी औरत झल्ली.
वे सारी तिथियाँ भूल गए, वे सारी विधियाँ भूल गए !
दादी-नानी ये क्या जाने सब इनकी लगती हैं ग्रम्मा
मौसा फूफा क्या होते हैं,,चाची मामी में अंतर ना
फागुन और चैत बला क्या है कितनी ऋतुएं कैसी फसलें,
कुछ अक्षर जैसे ठ ढ़,ण अब श्रीमुख से कैसे निकलें
ञ,फ ,ङ,क्षत्रज्ञ बिसरे ,अंग्रेज़ी पढ़ कर फूल गए !
करवा पर टीवी का बतलाया ठाठ सिंगार सुहाता है
पर गौरा की पूजा कैसे हो कहाँ समझ में आता है ,
मामा-काका की संताने बस हैं उनके कज़िना-कज़नी,
जीजा-भाभी के नाते इन-लॉ लग कर बन जाते वज़नी,
उनसठ-उन्तालिस-उन्तिस का अन्तर क्या जाने, कूल भए !
इन-लॉ बन कर सब हुआ ठीक ,बिन लॉ के कोई बात नहीं .
है सभी ज़ुबानी जमा-खर्च रिश्तों में खास मिजाज़ नहीं.
ये अँग्रेज़ी में हँसते हैं ,इँगलिश में ही मुस्काते हैं,
इंडिया निकलता है मुख से भरत तो समझ न पाते हैं
वे सारे अक्षर ,लघु-गुरु स्वर ,मात्राएँ आदि समूल गए !
हा,अमरीका में क्यों न हुए ,या लंदन में पैदा होते
क्यों नाम हमारा चंदन है ,डंकन होते ,विलियम होते
आँखें नीली-पीली होतीं ,ये केश जरा भूरे होते ,
ये वेश हमारा क्यों होता ,क्यों ब्राउन हैं गोरे होते
हम काहे भारत में जन्मे, क्यों हाय जनम के फ़ूल भये !
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ये वाकई घोर संकट है आज की पीढ़ी के लिए। इसके लिए बहुत हद तक अभिभावक भी दोषी हैं.
जवाब देंहटाएंकितना सटीक वर्णन किया है आपने, सुबह उठते ही मोबाइल हाथ में आ जाता है और दिन भर आँखें स्क्रीन पर ही चिपकी रहती हैं तो इधर-उधर देखने जानने की फुर्सत किसके पास है, जब सारी दुनिया (ग्लोबल विलेज)एक परिवार हो रही है तो बाहर वालों का असर तो पड़ना ही था..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-03-2017) को
जवाब देंहटाएं"आओ जम कर खेलें होली" (चर्चा अंक-2604)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हटाएंआ.शास्त्री जी, आभारी हूँ .
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बहादुर महिला, दंत चिकित्सक और कहानी में ट्विस्ट “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ ,शिवम जी .
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं
हिंदी के पहाड़े तो अब बीते जमाने की बातें हो गयी हैं ... हिंदी और उसके साथ रिश्ते भी ख़त्म हो रहे हैं ... आपकी इस व्यंगात्मक रचना को काश कोई समझे और बदलाव को दिशा दे ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया article है ..... ऐसे ही लिखते रहिये और मार्गदर्शन करते रहिये ..... शेयर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
जवाब देंहटाएंहाँ , यही तो हाल है अब हिन्दी का ।
जवाब देंहटाएंसटीक ...आज कल तो हिन्दी में पहाड़े याद ही नहीं कराये जाते ..गिनती भी बहुत कम बच्चे ही सौ तक सुना पाते होंगे .
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