साँझ-चिरैया उतरती अपने पंख पसार,
जल-थल-नभ में एक सा कर अबाध संचार.
मुट्ठी भर-भर कर गगन दाने रहा बिखेर,
उड़ जायेगी देखना चुन कर बड़ी सबेर.
श्यामल देह पसार कर रचती रूप अपार
सब पर टोना कर रही मूँद दिशा के द्वार.
आँखों में भर मोहिनी सभी ओर से घेर,
डाली माया नींद की फैला कर अँधेर .
तम के पट में रात भर चलता वामाचार,
अंजलि भर भर छींटती शाबर मंत्र उचार.
कामरूपिणी भैरवी, विचरे परम स्वतंत्र
रही साधती पूर कर चक्र, अघोरी तंत्र.
भ्रष्ट योगिनी भटकती धरती के हर छोर
फेरा देती नित्य ही, टिकती किसी न ठौर .
मोहन-मारण साधती, करती नये प्रयोग
रातों की चादर तले नित नवीन संजोग.
मुँह लटका, हतप्रभ हुआ मौन रहा है हेर ,
सारा आँगन छोड़, जा बैठा चाँद मुँडेर !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद कर्नल संतोष को हार्दिक श्रद्धांजलि , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 20 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ,यशोदा जी !
हटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (20.11.2015) को "आतंकवाद मानव सम्यता के लिए कलंक"(चर्चा अंक-2166) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!
राजेन्द्र जी ,बहुत आभारी हूँ !
हटाएंसुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंक्या बात...सुन्दर
जवाब देंहटाएंनौ किंतु नव-दोहों में प्रकृति के एक अहर्निश चक्र का सुंदर और अनोखा वर्णन ।
जवाब देंहटाएंअहा! बहुत सुन्दर, बधाई.
जवाब देंहटाएंसांझ का सुन्दर चित्रण ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और कोमल रचना।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर और भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट दोहे हैं आदरणीया
नमन
आज अचानक आपको प्रणाम कहने की इच्छा हुई तो ब्लॉग की ओर आ गया
अन्यथा फेसबुक सारा समय ले लेता है
आप फेसबुक पर हों तो कृपया लिंक दें अपना
सादर शुभकामनाओं सहित...
सांझ चिरैया ... पहले तो शीर्षक ही इतना अध्बुध की सोचता रह गया ... और रचना में जैसे डूब के रह गया ... बहुत सुन्दर रचना बहुत दिनों बाद पढ़ पाया ... बहुत बहुत शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस लेख को पढ़कर एकाएक एक गीत मेरे मन में आने लगा "चुन-चुन करती आई चिड़िया".....प्रतिभा जी बहुत ही रोचक व मंत्रमुग्ध करने वाली यह रचना है...ऐसी ही दिलचस्प रचनाएँ आप शब्दनगरी में भी प्रकाशित कर सकती है.....
जवाब देंहटाएंआपकी इस लेख को पढ़कर एकाएक एक गीत मेरे मन में आने लगा "चुन-चुन करती आई चिड़िया".....प्रतिभा जी बहुत ही रोचक व मंत्रमुग्ध करने वाली यह रचना है...ऐसी ही दिलचस्प रचनाएँ आप शब्दनगरी में भी प्रकाशित कर सकती है.....
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