मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

कुछ लोकरंग देवी को अर्पण -

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मइया पधारी मोरे अँगना,
मलिनिया फुलवा लै आवा,
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ऊँचे पहारन से उतरी हैं मैया,
छायो उजास जइस चढ़त जुन्हैया.
रचि-रचि के आँवा पकाये ,
 कुम्हरिया ,दीपक के आवा.
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सुन के पुकार मइया जाँचन को आई  ,
खड़ी दुआरे ,खोल कुंडी रे माई !
वो तो आय हिरदै में झाँके ,
घरनिया प्रीत लै के आवा ,
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दीपक  कुम्हरिया ,फुलवा  मलिनिया   ,
चुनरी जुलाहिन की,भोजन किसनिया.
मैं तो  पर घर आई - 
दुल्हनियाँ के मन पछतावा.
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 उज्जर हिया में समाय रही जोती .
रेती की  करकन से  ,निपजे रे   मोती.
काहे का सोच बावरिया,
मगन मन-सीप लै के आवा !
हिया जगमग हुआ जावा !
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10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर ! नवरात्रि सभी को शुभ हो शुभकामनाऐं ।

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  2. माँ को नमन..हृदय में ज्योति बन समाती सुंदर रचना..शुभकामनायें

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2130 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. बहुत सुन्दर देवी गीत!
    नवरात्र की हार्दिक मंगलकामनाएं!

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  5. बहुत सुन्दर स्तुति .... बहुत बहुत शुभकामनायें

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  6. बहुत सुन्दर। दुर्गा पूजा और दशहरे की शुभकामनाएँ।

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  7. देवी-वंदन के इस लोकरंग की शुचिता हृदय को स्पंदित करती है ।

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  8. बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुति। मेरे ब्‍लाग पर आपका स्‍वागत है।

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  9. शब्द शब्द जैसे ज्योति बन के चहक रहा है ... सीधे मन में प्रकाश के आगमन जैसे भाव ... अति सुन्दर ...

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