(यह कविता आप सबसे शेयर करना चाहती हूँ -
रचनाकर्त्री को आभार सहित - प्रतिभा.)
*
हम भिंचे हैं दो पीढ़ियों के बीच
बुरी तरह ।
पुरानी पीढ़ी की आशाओं को फलीभूत करने में
बिता दी उम्र सारी ।
उनके आदेशों को शिरोधार्य करते रहे ,
जीते रहे ,लगभग जैसा चाहा उन्होंने ।
भागीदार बनाया उन्हें जीतों में , हारों में ।
*
पर आज का ये धर्म-संकट !
दिखाता है कुछ नया रंग, नया ख़ून ।
नई माँगें , नये मानदण्ड,
कुछ उचित , कुछ अनुचित ।
एक बड़ा सा प्रश्नचिह्न , प्रतिक्षण , प्रतिपल
मुँह फाड़े खड़ा है ।
*
नीवें हिलने सी लगी हैं ।
क्या घर को बनाए रखने के लिये
हम समझौते ही करते जाएँगे ?
हाय ! कैसी विडम्बना है यह भाग्य की ?
*******
पुष्पा सिंह राव
मुम्बई
रचनाकर्त्री को आभार सहित - प्रतिभा.)
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हम भिंचे हैं दो पीढ़ियों के बीच
बुरी तरह ।
पुरानी पीढ़ी की आशाओं को फलीभूत करने में
बिता दी उम्र सारी ।
उनके आदेशों को शिरोधार्य करते रहे ,
जीते रहे ,लगभग जैसा चाहा उन्होंने ।
भागीदार बनाया उन्हें जीतों में , हारों में ।
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पर आज का ये धर्म-संकट !
दिखाता है कुछ नया रंग, नया ख़ून ।
नई माँगें , नये मानदण्ड,
कुछ उचित , कुछ अनुचित ।
एक बड़ा सा प्रश्नचिह्न , प्रतिक्षण , प्रतिपल
मुँह फाड़े खड़ा है ।
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नीवें हिलने सी लगी हैं ।
क्या घर को बनाए रखने के लिये
हम समझौते ही करते जाएँगे ?
हाय ! कैसी विडम्बना है यह भाग्य की ?
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पुष्पा सिंह राव
मुम्बई
सच कहा है..
जवाब देंहटाएंयही सच होता है । हर पीढ़ी को लगता है ऐसा ही महसूस होता है ।
जवाब देंहटाएंआभार, कुलदीप जी !
जवाब देंहटाएंजायज प्रश्न?
जवाब देंहटाएंजायज प्रश्न?
जवाब देंहटाएंशायद ये सच है ... पर क्या हर पीढ़ी को ऐसा नहीं लगता होगा अपने समय में ... हाँ प्रश्न तो फिर भी बाकी है ...
जवाब देंहटाएं