कितने रूप ,कितने नाम,
तुम्हें समझना कहाँ आसान !
*
कभी भान भुलाती बाँसुरी की तान ,
तोड़ सारी वर्जनायें
रीति-नीति -मर्यादा ,
रास की रस- मग्नता में .
आत्मविस्मृति के लोकान्तरों तक ,सब हो गईं तुम्हारे नाम .
*
कहता रहे जिसे जो कहना हो ,
निपटता रहे संसार
अपनी मिथ्या मान्यताओँ से,
सोलह हज़ार अपहृताओं के माथे से
धो-पोंछ लांछन के दाग़.
ब्याह लिया अनायास !
मान-सम्मान , पत्नीत्व का गौरव दे ,
सार्थक कर नारी -जीवन,
रह गये निरे तटस्थ स्वयं,
निर्लिप्त ,निष्काम ,निर्बाध !.
* ,
न दैन्य,न पलायन ,
जय-पराजय , यश-अपयश ,सुख-दुख, से.
निस्पृह-निर्भय .
सारे सिद्धान्त,सारे आचार-व्यवहार ,
प्रेम ,भक्ति, ज्ञान ,
कर्मशीलता का संपूर्ण मर्म
जीवन- व्यवहार का निराडंबर धर्म
व्यक्त कर आचरण में,
तुम्हीं तो रहे प्रतिमान !
*
अनवरत मंथन का सार तत्व ,
गीता का संपूर्ण निरूपण ,
साक्षात तुम्हारा जीवन ,
रे माखन चोर,
समेटते ,संचित करते रहे थे जो,
विपत-काल में
विषादमग्न पार्थ को सौंप
चुका दिया सारा उधार ,
ब्याज समेत !
*
सिर धर गान्धारी का शाप
देखते रहे वंश-नाश ,
निरुद्विग्न ,शान्त,!
रे गिरधारी ,
ग्रहण कर सभी के शोक-ताप
हो गये स्वयं विश्वात्म ,विश्व-रूप ,
आकुल मन-मृग के पूर्ण -विश्राम !
*
सिर धर गान्धारी का शाप
जवाब देंहटाएंदेखते रहे वंश-नाश ,
निरुद्विग्न ,शान्त,!
रे गिरधारी ,
ग्रहण कर सभी के शोक-ताप
हो गये स्वयं विश्वात्म ,विश्व-रूप ,
आकुल मन-मृग के चिर-विश्राम !
*बढ़िया पोस्ट.... समय मिले तो आयेगा कभी मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
कृष्ण की अद्भुत स्तुति, आपको भी प्रणाम।
जवाब देंहटाएंकृष्ण के पूरे जीवन के दर्शन हो गए ..साधुवाद
जवाब देंहटाएंसारगर्भित रचना आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंbahut dino se intzar thi aapki nayi post ki. aabhar apne ye post dali. bahut kuchh seekhne ko milta hai aapke lekhan se.
जवाब देंहटाएंsampoorn jeewn ko chitrit kar baandh liya aapne apne shabdo me. ek bhar fir se aabhar.
कृष्ण के विराट, कल्याणमय स्वरुप के दर्शन कराती है ये कविता, इसका आभार व्यक्त करना आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंशब्दों और प्रतीकों का अद्भुत प्रयोग रहता है आपकी रचनाओं में। मैं तो अभिभूत हूं।
जवाब देंहटाएंराधे राधे राधे राधे..
जवाब देंहटाएंअद्भुत कृष्ण स्तुति। ..आभार।
अलग ही अंदाज़ में याद किया है आपने श्री कृष्ण को....
जवाब देंहटाएंरीति-नीति -मर्यादा ,
रास की रस- मग्नता में .
आत्मविस्मृति के लोकान्तरों तक ,
सब हो गये तुम्हारे नाम .
sundar सादर नमन..
आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (९) के मंच पर प्रस्तुत की गई है आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप हमेशा अच्छी अच्छी रचनाएँ लिखतें रहें यही कामना है /
जवाब देंहटाएंआप ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर सादर आमंत्रित हैं /
हरे कृष्ण!
जवाब देंहटाएंसोलह हज़ार अपहृताओं के माथे से
जवाब देंहटाएंधो-पोंछ लांछन के दाग़.
ब्याह लिया अनायास !
मान-सम्मान , पत्नीत्व का गौरव दे ,
सार्थक कर नारी -जीवन,
रह गये निरे तटस्थ स्वयं,
बहुत सुन्दर पोस्ट
प्रतिभा जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
बहुत सारगर्भित रचना
जवाब देंहटाएंआशा
विनीत जी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
आदरणीया और प्रिय प्रतिभाजी, आपकी कवितायेँ मुझ पे जादू सा करती हैं. लगता है केवल पढ़ नहीं रही देख रही हूँ सब, चित्र उतर रहे हैं मानस में. जानती हैं आपकी अपहृताओं वाली बात पढ़ के गूगल किया तो आदरणीया रंजना जी के ब्लॉग पे जा के महानायक नाम से एक सुन्दर आलेख अभी अभी पढ़ के आई हूँ ( ये हुआ सत्संग...!! :).
जवाब देंहटाएंनिम्न अतिसुन्दर:
आत्मविस्मृति के लोकान्तरों तक ,
सब हो गईं तुम्हारे नाम .
*
निपटता रहे संसार
अपनी मिथ्या मान्यताओँ से,
*
न दैन्य,न पलायन ,
जय-पराजय , यश-अपयश ,सुख-दुख, से.
निस्पृह-निर्भय .
*
ग्रहण कर सभी के शोक-ताप --- यहाँ मुझे गर्म खीर वाली कहानी भी याद आ जाती है...बार बार जिद करके सुना करती थी बचपन में!
हो गये स्वयं विश्वात्म ,विश्व-रूप ,
आकुल मन-मृग के पूर्ण -विश्राम !
एक बात कहिएगा, या तो ख़त में या यहीं , आपने ऐसा क्यों लिखा है :
समेटते ,संचित करते रहे थे जो, विपत-काल में --- यानि जो गीता ज्ञान पार्थ को दिया वह कृष्ण के जीवन के अनुभवों से संचित हुआ? या कुछ और कहना चाह रही हैं आप यहाँ?
सादर, स्नेहाकंक्षिनी... शार्दुला
'गीता ज्ञान पार्थ को दिया वह कृष्ण के जीवन के अनुभवों से संचित हुआ'.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही समझा प्रिय शार्दुला!
उनका जीवन आद्योपान्त कठिन संघषों से भरा रहा ,और अविचलित रह कर ,शान्त मन से वे अपना कर्तव्य करते रहे!
यह मुझे लगता है है.वैसे सबका अपना मत !