गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

चलती बार ..



प्रस्थान की बेला,

चिर-प्रतीक्षित गंतव्य की ओर,

उत्तर दिशि वन-पगडंडियाँ ,

मन शान्त ,पुलकित !

*

सारा कुरुक्षेत्र बीता ,

राज पाट निरर्थक.

मान-अपमान ,शाप-ताप, सुख-दुख ,

सारे मनस्ताप छूटें यहीं .

इन्द्रियों के पाँच पाण्डव ,

अंतराग्नि-संभवा द्रौपदी सहित चलते हैं

देवात्मा हिमालय का

अपरिमित विस्तार है जहाँ !

*

अनायास होते रहे

मोहमयी मानसिकता के

दोष-अपराध,क्षमा कर

बिदा दो मीत ,

और आशीष भी

कि इस यात्रा का पुनरावर्तन न हो !

*

18 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो बिल्कुल अन्तिम यात्रा जैसे शब्दचित्र लग रहे हैं । उत्तम भावाभिव्यक्त...

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  2. आपका अंदाज़ सबसे अलग है ! शुभकामनायें आपको !

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  3. मोहमयी मानसिकता को समझाना कठिन है।

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  4. सारा कुरुक्षेत्र बीता ,

    राज पाट निरर्थक.
    सारी बातें ये दो पंक्तियां कह गईं।
    और कुछ कहने को शेष नहीं रह गया।

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  5. अनायास होते रहे

    मोहमयी मानसिकता के

    दोष-अपराध,क्षमा कर

    बिदा दो मीत ,

    और आशीष भी

    कि इस यात्रा का पुनरावर्तन न हो !

    Beautiful expression.

    .

    जवाब देंहटाएं
  6. आध्यात्म।चिर प्रतीक्षित गन्तव्य। सब कुछ छूट गया । पंचेन्द्रिय को पांच पाण्डव अच्छी उपमा ।वैसे भी प्रस्थान की वेला जिसकी चेतावनी धीरे धीरे मिलने लगती है -होशो हवास तावो तवां दाग जा चुके- अब हम भी जाने वाले है सामान तो गया ।आज एक अच्छी आध्यात्मिक रचना पढने को मिली । धन्यवाद

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  7. अच्छा होता यदि किसी व्यक्ति के अपने मोह पर विजय प्राप्तकर लेने के बाद...उस व्यक्ति विशेष के लिए उसके प्रियजनों के ह्रदय में पनपने वाला स्नेह और मोह भी स्वत: ही समाप्त हो जाया करता....?
    तब विदा की आकांक्षा और उसकी पूर्ती कितनी सरल हो जाती.........!!!

    खैर, बहुत अच्छी रचना है प्रतिभा जी...कई तरह के प्रस्थानों और विदा से जोड़ कर देखा....हर बार निखर कर एक सम्पूर्ण अर्थ के साथ सामने आई.....

    आभार इस अर्थपूर्ण रचना के लिए...!!

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  8. मन कितना निर्मल हो कर कह पाता होगा न ये?
    शांत, धीर, पुलकित मन माँगता है विदा, नए पथ पर गमन को।

    शुभकामनाएँ प्रतिभा जी!

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  9. वाह...किन शब्दों में इस अप्रतिम रचना की प्रशंशा करूँ...बेजोड़..
    मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !!

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  10. पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
    कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/

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  11. प्रतिभा जी , बहुत दिनों से आपको देखा नहीं । आप कैसी हैं ?

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  12. दिव्या जी ,
    इन दिनों भारत में हूँ ,आप सबसे कुछ कट गई हूँ ,अंतर्जाल की दुर्लभता के कारण .जब भी मौका लगता है ,कोशिश करती हूँ जानने की कि क्या चल रहा है .कुछ अस्वस्थता भी और टेंपरेरी-सी अव्यवस्था भी. शीघ्र ही सब पूर्ववत् हो जाय ऐसा प्रयत्न कर रही हूँ .
    आप ने याद किया बहुत अच्छा लगा .

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. सारे मनस्ताप छूटें यहीं .

    इन्द्रियों के पाँच पाण्डव ,

    अंतराग्नि-संभवा द्रौपदी सहित चलते हैं

    देवात्मा हिमालय का

    अपरिमित विस्तार है जहाँ !

    सारा कुरुक्षेत्र बीता ... सुन्दर गहन बात .. यह समझ जाएँ तो बात ही क्या ..अंतिम समय तक कुरुक्षेत्र में डटे रहते हैं ...

    आप कैसी हैं ? भारत भ्रमण पर हैं ..अच्छा लगा यह जानकार ..आभार

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  15. प्रतिभा जी ,
    आश्वस्त हुयी आपको पुनः देखकर। अपने स्वास्थ का ख्याल रखियेगा।

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