बुधवार, 15 अप्रैल 2020

दिगम्बरी.

कोई तोहमत जड़ दो औरत पर ,
कौन है रोकनेवाला ?
कर दो चरित्र हत्या ,
या धर दो कोई आरोप !
सब मान लेंगे .
बहुत आसान है  रास्ते से हटाना.
*
हाँ ,वे दौड़ा रहे हैं सड़क पर
'टोनही है यह ',
'नज़र गड़ा चूस लेती है बच्चों का ख़ून!'
उछल-उछल कर पत्थर फेंकते ,
चीख़ते ,पीछे भाग रहे हैं ,
खेल रहे हैं अपना खेल !
अकेली औरत ,चीख रही है 
भागेगी कहाँ भीड़ से ?
चोटों से छलकता खून
प्यासे हैं लोग .

सहने की सीमा पार ,
जिजीविषा भभक उठी खा-खा कर वार !
भागी नहीं ,चीखी नहीं ,
धिक्कार भरी दृष्टि डालती
सीधी खड़ी हो गई.
मुख तमतमाया क्रोध-विकृत !
आँखें जल उठीं दप्-दप् ,
लौट पड़ी वह !
नीचे झुकी, उठा लिया वही पत्थर
आघात जिसका उछाल रहा था रक्त.
भरी आक्रोश
तान कर मारा पीछा करतों पर .
'हाय रे ',चीत्कार उठा ,
'मार डाला रे !'
भीड़ हतबुद्ध, भयभीत .
और  वह दूसरा पत्थर उठाये दौड़ी.

अब पीछा वह कर रही थी ,
भाग रही थी भीड़ .
फिर फेंका उसने ,घुमा कर पूरे वेग से !
फिर चीख उठी .
उठाया एक और 
भयभीत, भाग रहे हैं लोग .
कर रही है पीछा,
अट्टहास करते हुये
प्रचंड चंडिका .

धज्जियां कर डालीं थीं वस्त्रों की
उन लोगों ने ,
नारी-तन बेग़ैरत करने को .
सारी लज्जा दे मारी उन्हीं पर !
पशुओं से क्या लाज ?
ये बातें अब बे-मानी थीं .
दौड़ रही है ,निर्भय उनके पीछे ,हाथ में पत्थर लिये.
जान लेकर भाग रहे हैं लोग ,
भीत ,त्रस्त ,
सब के सब ,एक साथ गिरते-पड़ते ,
अंधाधुंध इधर-उधर .
तितर-बितर .

थूक दिया उसने 
उन कायरों की पीठ पर !
और -
श्लथ ,वेदना - विकृत,
रक्त ओढ़े दिगंबरी ,
बैठ गई वहीं धरती पर .
पता नहीं कितनी देर .
फिर उठी , चल दी एक ओर .

अगले दिन खोज पड़ी
कहां गई चण्डी ?
कहाँ गायब हो गई?
पूछ रहे थे एक दूसरे से ।
कहीं नहीं थी वह !
उधर कुएँ में उतरा आया था मृत शरीर .

दिगंबरा चण्डी को वहन कर सके जो
वहां कोई शिव नहीं था ,
सब शव थे !
*
[एक मनोरंजन: एक कौतुक !
स्त्री के नाक-कान काटते वीरों की जय-जयकार !
 साल दर साल मंचन ,रक्त बहते तन की  भयंकर पीड़ा से  रोमांचित  भीड़ !
मानी हुई बात  -औरत है, अवगुन आठ सदा उर रहहीं -सतत ताड़ना की अधिकारी !
शताब्दियाँ साक्षी हैं इस लीला की !]


8 टिप्‍पणियां:

  1. वहाँ कोई शिव नहीं था
    सब शव थे

    अदभुद।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (17-04-2020) को "कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?" (चर्चा अंक-3674) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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  3. उफ़ ! 'औरत है' कहकर कितने अत्याचार और अन्याय का भागी बनाता है समाज, मार्मिक रचना !

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  4. उफ़ ... कितनी पीड़ा और छोभ है शब्दों में .... भीड़ जिसमें ज्यादातर मर्द ... अपनी मर्दानगी मजलूम पर ही उतारते हैं ... दर्द को जीया शब्दों में ... नमन है आपको ...

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  5. मन को झझकोरती भावपूर्ण रचना

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