शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

देखो न -

 देखो न -
अंततः इन जीवों को पता चल गया 
विस्तृत पटल पर उनका भी पूरा हिस्सा है ,
धरती की नियामतों में,  
वे बराबर के भागीदार हैं.
इस इन्सान ने ,
छीन लिया है,बरजोरी से जो,
अधीन समझ कर सबको.
जो बदल डालना चाहता है ,
सृष्टि के नियम .

 लो,
एक झटका दे, स्वंतत्र हो गए वे.
धरती मुक्त,वायु निर्मल, दर्पण सा जल, 
दिशाएँ दीप्त और गगन उज्ज्वल,
चाँद-तारे खिल उठे .
वनस्पतियाँ लहर-लहर गुनगुनाईं .
अरसे बाद विश्व स्वास्थ लाभ करने लगा . 

पर अब इन्सान क्या करे?
कैसे बचे,
जाए, तो जाए कहाँ ?
भयभीत ,भाग कर
दुबक गया अपनी ही खोह में ,
बन्दीखाने में पड़ा ,
लाचार छटपटा रहा है.

नहीं, अब नहीं!
बदलेगा खुद को,
बदलना पड़ेगा.
सही कहा है -
भय बिन होय न प्रीत!
- प्रतिभा.

5 टिप्‍पणियां:

  1. लो,
    एक झटका दे, स्वंतत्र हो गए वे.
    धरती मुक्त,वायु निर्मल, स्वच्छ दर्पण सा जल,
    दिशाएँ प्रसन्न और गगन उज्ज्वल,
    चाँद-तारे खिल उठे .
    वनस्पतियाँ लहर-लहर गुनगुनाईं .
    अरसे बाद विश्व स्वास्थ लाभ करने लगा .....
    - सच कहा आपने । तरक्की की इस अंधे दौर में मानव खुद को नियंत्रक व सर्वश्रेष्ठ मानने लगा था। परन्तु, प्रकृति के एक प्रहार ने हमें ऐसी पटखनी दी है कि हम दिन में ही तारे देखने को विवश हैं ।
    बहुत-बहुत धन्यवाद व साधुवाद आदरणीया प्रतिभा जी।

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  2. सटीक अभिव्यक्ति।
    आशा है आप सपरिवार स्वस्थ होंगी। अपना ख्याल रखें। शुभकामनाएं।

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  3. सही है, अब हर बदलाव मानव को ही करना है

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  4. मैंने, कतिपय कारणों से, अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सूचना, सिर्फ मेरे ब्लॉग
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