*
घर आँगन में चहकते,
माटी की गंध सँजोये
वे महकते शब्द,कहाँ खो गये !
सिर-चढ़े विदेशियों की भड़कीली भीड़ में ,
अपने जन कहाँ ग़ायब हो गये !
धरती के संस्कारों में रचे-बसे ,
वे मस्त-मौला कैसे गुम गये !
*
लौट आओ प्रिय शब्दों ,
पीढ़ियों की निजता के वाहक,
सहज अपनत्व भरे तुम,
जो जोड़ देते हो
उन सुनहले -रुपहले अध्यायों से,
हमें कालातीत करते .
*
लौट आओ
खो मत जाना,
कोश के गहरे गह्वरों में .
अभिव्यक्ति की तृष्णा
अतृप्त है तुम्हारे बिना.
अंतरंग ,आत्मीय बन भावातिरेक में
अऩायास उमड़ आते ओ मन-मित्र !
*
लौट आओ,
साथ देने,
कि उत्सव फीका न रह जाय
तुम्हारी आत्मीय उपस्थिति बिन .
चार चांद जड़ते
वांछितार्थ संपन्न करने
लौट आओ.
*
विवादी घुसपैठी दौड़ से अलिप्त,
ओ मेरे परम संवादी शब्दों,
वयःप्राप्त परिपक्वताधारे,
भाषा को संपूर्णता प्रदान करने ,
शीष उठा अपनी उसी भंगिमा में,
चले आओ !
कोश के बंद पृष्ठों से उतर ,
आँगन की खुली हवा में
लौट आओ !
*
घर आँगन में चहकते,
माटी की गंध सँजोये
वे महकते शब्द,कहाँ खो गये !
सिर-चढ़े विदेशियों की भड़कीली भीड़ में ,
अपने जन कहाँ ग़ायब हो गये !
धरती के संस्कारों में रचे-बसे ,
वे मस्त-मौला कैसे गुम गये !
*
लौट आओ प्रिय शब्दों ,
पीढ़ियों की निजता के वाहक,
सहज अपनत्व भरे तुम,
जो जोड़ देते हो
उन सुनहले -रुपहले अध्यायों से,
हमें कालातीत करते .
*
लौट आओ
खो मत जाना,
कोश के गहरे गह्वरों में .
अभिव्यक्ति की तृष्णा
अतृप्त है तुम्हारे बिना.
अंतरंग ,आत्मीय बन भावातिरेक में
अऩायास उमड़ आते ओ मन-मित्र !
*
लौट आओ,
साथ देने,
कि उत्सव फीका न रह जाय
तुम्हारी आत्मीय उपस्थिति बिन .
चार चांद जड़ते
वांछितार्थ संपन्न करने
लौट आओ.
*
विवादी घुसपैठी दौड़ से अलिप्त,
ओ मेरे परम संवादी शब्दों,
वयःप्राप्त परिपक्वताधारे,
भाषा को संपूर्णता प्रदान करने ,
शीष उठा अपनी उसी भंगिमा में,
चले आओ !
कोश के बंद पृष्ठों से उतर ,
आँगन की खुली हवा में
लौट आओ !
*
लौट आओ।
जवाब देंहटाएंवाह।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-12-2018) को "कल हो जाता आज पुराना" (चर्चा अंक-3180) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार,शास्त्रीजी.
जवाब देंहटाएंलौट आओं शब्द मेरे ...
जवाब देंहटाएंआपके शब्दों की तो बहुत लम्बे समय से प्रतीक्षा है ... आज शब्दों से आह्वान भी एक हवन सा है आपका ... पीढ़ी का भार है माटी के गंध भरे शब्दों में ... जादू है आपके शब्दों में ...
कोष के जिल्द बंधे पृष्ठों से निकल ,
जवाब देंहटाएंआँगन की खुली हवा में लौट आओ -बेहतरीन अभिव्यक्ति प्रतिभा जी की -
अपशिष्ट संस्कृति से मुक्त हो ,राजनीति की सनातन संस्कृति में ,,
एक बार फिर लौट आओ ,
घर दुआरे की सांकल बिना खटकाये ,
बे -धड़क चले आओ ,
शब्दों की सौंधी आंच बिना चूल्हे की रोटी बे -स्वाद है।
veerujan.blogspot.com
veerusa.blogspot.com
kabirakhadasaraimen.blogspot.com
आप जैसी शब्दों की धनी के सिवा शब्दों को इस तरह ममताभरी पुकार से भला कौन बुलाएगा..वाकई आज की पीढ़ी उन सहज प्रेम भरे कोमल शब्दों के संग से दूर होती जा रही है, जो पुरानी पीढ़ी को सहज ही प्राप्य थे
जवाब देंहटाएंसाधुवाद दीदी।
जवाब देंहटाएंVery Nice.....
जवाब देंहटाएंबहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत...