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यों बोला , कुछ उदास हो कर दुनिया से चलता हुआ वर्ष
मैं भी था अतिथि ,एक दिन तुम सा ही आदृत,स्वीकृत, समर्थ.
यों बोला , कुछ उदास हो कर दुनिया से चलता हुआ वर्ष
मैं भी था अतिथि ,एक दिन तुम सा ही आदृत,स्वीकृत, समर्थ.
मैने कुछ सपने पाले थे अपने अनुकूल लगा जब रुख ,
तीन सौ पचास से अधिक शेष दिन कर लेंगे कमाल हम कुछ .
जीवन के मान मूल्यों का होगा कुछ ऊँचे तक चढना
चाहे थे मानव की जययात्रा के पड़ाव अंकित करना
संचित कर लेगा मुदित हृदय मंगल श्रेयस्कर भावों को
सौंपूँगा तुमको जन मन के सद्भाव भरे विश्वासों को
जड़ से सत्-चित् तक का विधान जिसके हित सारी घूमघाम ,
इस कर्म-योनि में हो समर्थ , मानव पायेगा ऊर्ध्वमान .
पर फलें कि जो सिंचित हो कर वे मन के शुभ-संकल्प कहाँ?
नव आगत को अर्पित कर दें ऐसे सत्कर्म विकल्प कहाँ?
बारहों मास यों बीत गये ढूँढे न जुड़े उजले आखर,
अब महाकाल की महाबही में क्या लिक्खूँगा मैं जाकर !
जाता हूँ ,जाना होगा ही,अब रुकने का अवकाश कहाँ
मुझसे ऊबे लोगों में बाकी बचा ,धैर्य- सहभाव कहाँ .
मानव मानवता खो ,अपनी ही मृगतृष्णाओं में भूला,
सदियों की लब्धि लुटा कर अपनी क्षणिक ऐषणा में झूला,
अब कथा-सूत्रता आगे की ओ मित्र, तुम्हारे हाथ रही,
ऊर्ध्वारोहण की शुभ-यात्रा यों कुहर-जाल में भटक गई
कह दिया बहुत कुछ थोड़े में,अब कर लेना पूरा विमर्ष .'
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तीन सौ पचास से अधिक शेष दिन कर लेंगे कमाल हम कुछ .
जीवन के मान मूल्यों का होगा कुछ ऊँचे तक चढना
चाहे थे मानव की जययात्रा के पड़ाव अंकित करना
संचित कर लेगा मुदित हृदय मंगल श्रेयस्कर भावों को
सौंपूँगा तुमको जन मन के सद्भाव भरे विश्वासों को
जड़ से सत्-चित् तक का विधान जिसके हित सारी घूमघाम ,
इस कर्म-योनि में हो समर्थ , मानव पायेगा ऊर्ध्वमान .
पर फलें कि जो सिंचित हो कर वे मन के शुभ-संकल्प कहाँ?
नव आगत को अर्पित कर दें ऐसे सत्कर्म विकल्प कहाँ?
बारहों मास यों बीत गये ढूँढे न जुड़े उजले आखर,
अब महाकाल की महाबही में क्या लिक्खूँगा मैं जाकर !
जाता हूँ ,जाना होगा ही,अब रुकने का अवकाश कहाँ
मुझसे ऊबे लोगों में बाकी बचा ,धैर्य- सहभाव कहाँ .
मानव मानवता खो ,अपनी ही मृगतृष्णाओं में भूला,
सदियों की लब्धि लुटा कर अपनी क्षणिक ऐषणा में झूला,
अब कथा-सूत्रता आगे की ओ मित्र, तुम्हारे हाथ रही,
ऊर्ध्वारोहण की शुभ-यात्रा यों कुहर-जाल में भटक गई
कह दिया बहुत कुछ थोड़े में,अब कर लेना पूरा विमर्ष .'
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बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-05-2017) को "इंतजार रहेगा" (चर्चा अंक-2961) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ.
हटाएंसुंदर और सही आकलन...फिर भी हर बार नया वर्ष कुछ नई आशा भर जाता है और उदासी के बादल कुछ देर के लिए छंट जाते हैं
जवाब देंहटाएंनए वर्ष को जानेवाले वर्ष का सुंदर संदेश।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०७ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आपका आभार, ध्रुव सिंह जी.
हटाएंकुछ भी कहो नये साल पर नई उमंगे भर ही जाती है दिलोदिमाग में.
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख
खैर
निमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
जाता हुआ वर्ष तो बहुत कुछ मौन ही कह जाता है पर नया उमंग भरा वर्ष आधी बातें उमंग आवेश में सुनता ही कहाँ है ... फिर भी जब जागता है नव वर्ष बहुत कुछ करने को आतुर हो जाता है और करता भी है ...
जवाब देंहटाएंगहरी अभुव्यक्ति ...
bahut innovation hai aapki writing mein...please keep it up!
जवाब देंहटाएंDo visit my blog https://successayurveda.blogspot.com/