*
राह तीर पनघट पे गागर को धोय माँज,
सीस साधि इँडुरी ,जल धारि पनिहारिया
पंथी से पूछि रही, 'कौन गाम तेरो ,
तोर नाम-काम कौन, कहाँ जात रे बटोहिया ?'
*
'जनम से चलो जात ,मरण की जातरा पे,
मारग में धूप-छाँह आवत-है जात है !
कोई छाँह भरो थान देखि बिलम लेत कुछू ,
कोई थान ,घाम- ताप गात अकुलात है !
बेबस चलो जात कोऊ रोके को दिखात नाहीं
मारग पे जात लोग साथ रे बटोहिया !
*
'जाने कहां ते ई धरती पे आय पड़्यो
जाने कइस ,जाने कहाँ ,जाने काहे जानो नाहिं
कोऊ नाहीं हुतो, कोऊ जान ना पिछान
खाली हाथ रहे दूनौ, आप हू को पहचानो नाहिं
मारो-मारो फिरत हूँ दुनियाँ की भीर
चलो जात हूँ अकेलो कहात हूँ बटोहिया !
*
'साथ लग जात लोग ,और छूट जावत हैं
नाम मोय नायं पतो ,लोग धर दीनो है
जातरा में पतो कौन, आपुनो परायो कौन
सुबे से चलो हूँ संझा तक गैल कीन्हों है .'
पूछति है बार-बार कौतुक से भरी नार,
'पथ को अहार कहा लायो रे, बटोहिया?'
*
'माथे धरी पोटली में धर्यो करम को अचार ,
रोटी तो पोय के इहाँ ही मोहे खानी है ।
मोह-नेह भरे चार बोल तू जो बोल रही
ताप और पियास हरि जात ऐसो पानी है.'
'आगे को रँधान हेत करम समेट मीत,
बाँध साथ गठरी में गाँठ दै बटोहिया !'
*
राह अनबूझी सारे लोग अनजाने इहाँ ,
आय के अकेलो सो परानी भरमात है
वा की रची जगती के रंग देखि देखि मन
ऐसो चकियायो अरु दंग रहि जात है !
धोय-माँज मन की गगरिया में नेह पूरि
पल-पल सुधि राख, जिन पठायो रे बटोहिया!'
*
'उहै ठौर जाए बे पूछिंगे कौन काम कियो ,
सारो जनम काटि, कहो लाए का कमाय के?'
पनिहारी हँसै लागि , 'ऐ हू बताय देहु
बात को जवाब कइस देहुगे बनाय के ?
भूलि गयो भान काहे भेजो हैं इहाँ पे ठेल
ओटन को लाय के कपास रे बटोहिया!'
*
राह तीर पनघट पे गागर को धोय माँज,
सीस साधि इँडुरी ,जल धारि पनिहारिया
पंथी से पूछि रही, 'कौन गाम तेरो ,
तोर नाम-काम कौन, कहाँ जात रे बटोहिया ?'
*
'जनम से चलो जात ,मरण की जातरा पे,
मारग में धूप-छाँह आवत-है जात है !
कोई छाँह भरो थान देखि बिलम लेत कुछू ,
कोई थान ,घाम- ताप गात अकुलात है !
बेबस चलो जात कोऊ रोके को दिखात नाहीं
मारग पे जात लोग साथ रे बटोहिया !
*
'जाने कहां ते ई धरती पे आय पड़्यो
जाने कइस ,जाने कहाँ ,जाने काहे जानो नाहिं
कोऊ नाहीं हुतो, कोऊ जान ना पिछान
खाली हाथ रहे दूनौ, आप हू को पहचानो नाहिं
मारो-मारो फिरत हूँ दुनियाँ की भीर
चलो जात हूँ अकेलो कहात हूँ बटोहिया !
*
'साथ लग जात लोग ,और छूट जावत हैं
नाम मोय नायं पतो ,लोग धर दीनो है
जातरा में पतो कौन, आपुनो परायो कौन
सुबे से चलो हूँ संझा तक गैल कीन्हों है .'
पूछति है बार-बार कौतुक से भरी नार,
'पथ को अहार कहा लायो रे, बटोहिया?'
*
'माथे धरी पोटली में धर्यो करम को अचार ,
रोटी तो पोय के इहाँ ही मोहे खानी है ।
मोह-नेह भरे चार बोल तू जो बोल रही
ताप और पियास हरि जात ऐसो पानी है.'
'आगे को रँधान हेत करम समेट मीत,
बाँध साथ गठरी में गाँठ दै बटोहिया !'
*
राह अनबूझी सारे लोग अनजाने इहाँ ,
आय के अकेलो सो परानी भरमात है
वा की रची जगती के रंग देखि देखि मन
ऐसो चकियायो अरु दंग रहि जात है !
धोय-माँज मन की गगरिया में नेह पूरि
पल-पल सुधि राख, जिन पठायो रे बटोहिया!'
*
'उहै ठौर जाए बे पूछिंगे कौन काम कियो ,
सारो जनम काटि, कहो लाए का कमाय के?'
पनिहारी हँसै लागि , 'ऐ हू बताय देहु
बात को जवाब कइस देहुगे बनाय के ?
भूलि गयो भान काहे भेजो हैं इहाँ पे ठेल
ओटन को लाय के कपास रे बटोहिया!'
*
"बटोहिया" के गीत बचपन में सुना करते थे. आज भी उन गीतों की स्वरलहरी की स्मृति मात्र से मन भर आता है. जीवन पथ का यह बटोहिया, न जाने कितनी सीख, कितने सन्देश बस चलते-चलते दे जाता था.
जवाब देंहटाएंआज आपके इस बटोहिया ने प्रभु की गीता का सम्पूर्ण ज्ञान खोलकर रख दिया है. यात्रा, पथ, पाथेय, सहयात्री और पनिहारी - जीवन-पथ के महत्वपूर्ण संकेत.
याद आ रहा है "लागा चुनरी में दाग़" और मुग्ध हूँ आपके इस काव्य-कौशल से माँ!! प्रणाम!!
आपकी लिखी रचना बुधवार 23 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
अति सुन्दर .... उत्कृष्ट काव्य रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : दहकते शोलों पर जिंदगी
बटोहिया ...
जवाब देंहटाएंइस उत्कृष्ट काव्य को पढ़ने के बाद नमन है आपकी कलम को ... आश्चर्य चकित होता हूँ आपकी छुपी प्रतिभा को देख कर ... बहुत कुछ सीखना बाकी है, जानना बाकी है आपके लेखन से ...
एक एक शब्द गहन अर्थ छुपाये...एक गहन और शाश्वत सत्य को कितने प्रभावी और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है...आभार..
जवाब देंहटाएंएक अलग सा नेह जुड़ जाता है आपकी रचनाओं से.. शब्द नहीं है..
जवाब देंहटाएंसत्यता का आभास करवाती हुई रचना
जवाब देंहटाएंमाथे धरी पोटली में धर्यो करम का अचार......
जवाब देंहटाएंवाह !!
क्या कहूँ...नमन आपके लेखन को.
सादर
अनु
आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास.गठरी में लागा चोर मुसाफिर देख चाँद की ओर..रहना नहीं देस बिराना है..और भी कई पंक्तियाँ याद हो आयीं आपकी इस सुंदर रचना को पढकर..आभार !
जवाब देंहटाएंधोय-मांज मन की गगरिया में नेह पूरि,
जवाब देंहटाएंपल-पल सुधि राख जिन पठायो रे बटोहिया।
बटोहिया का सही रास्ता यही है !
प्रेरणादायी रचना।
जन्म से पहले जीव परमात्मा के सामने कितने संकल्प करता है पर जन्म लेने के बाद सब भूल जाता है यही माया है । माया से परे होकर परमात्मा को ही अन्तिम सत्य मानना ही जीवन का सत्य है ।
जवाब देंहटाएंएक अप्रतिम रचना। ....
जवाब देंहटाएंज्ञानपूर्ण बटोहिया गीत, जीवन दर्शन सामान्यों की भाषा में सब के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।